Friday, December 12, 2025

सुनो मुझे भूल तो नहीं जाओगी ना तुम?

12.

सुनो 

पता है तुम्हें 

बीती रात के अंतिम पहर में 

मैंने तुम्हारे सारे खतों के 

पुर्जे-पुर्जे कर दिए 

पुर्जे करने से पहले 

मैं उन्हें एक-एक कर पढ़ता रहा 

पढ़कर

कभी खुश होता  

कभी उदास  

और 

कभी तो ऐसा लगता 

जैसे तुम ही कमरे में बैठी 

एक-एक ख़त को पढ़कर सुना रही हो

'आज मैंने तुम्हारे लिए 

पूरे-पूरे दो पेज भर दिए हैं

है ना

क्या इनाम दोगे!' 

क्या इनाम दिया था मैंने 

याद है कुछ तुम्हें?


कुछ देर बाद 

फिर तुम कहती हो 

'पढ़ लिया कि नहीं 

मैं आ जाऊं क्या

बुला ले ना

मैं पढ़कर सुना दूंगी 

आऊं मैं!'

और 

तुम आजतक ना आ सकीं

और अब 

ये ख़त भी नजर नहीं आएंगे 

बिल्कुल तुम्हारी तरह

वैसे कितने साल हो गए 

हम दोनों को मिले हुए? 

याद है कुछ तुम्हें?

 

वैसे तुम्हें पता है 

इन खतों के टुकड़े मैंने क्यों किए 

दरअसल  

शरीर साथ नहीं देता अब 

एक दर्द को सुलाता हूं 

तो दूसरा जाग जाता है

दूसरे को बहलाता हूं 

तो तीसरा नाराज हो जाता है

आखिर किस-किस दर्द की दवा करूं मैं अब 

बस इन्हीं में उलझा कभी-कभी  

हाथ की रेखाओं को देखा करता हूं 

अब तो ये भी टूटने लगी हैं 

अपनी राह से भटकने लगी हैं 

बल्कि पता है तुम्हें 

जीवन रेखा तो कब की दो टुकड़े हो चुकी 

उस टूटी रेखा को देख 

डर-डर जाता हूं मैं अब

पहले तो डरा सहमा तुम्हारे लिखे ख़त 

पढ़ लिया करता था

थोड़ा बहुत अपने आपसे 

हंस बोल लिया करता था  

फिर एक दिन अपने डर से ही 

तुम्हारा डर याद आया

जो तुमने किसी रोज एक ख़त में लिखा था 

'ये ख़त कभी किसी के हाथ लग गए तब क्या होगा?' 

सच में तब क्या होगा

मैंने भी ये सोचा था 

इसलिए 

सारे ख़तों के टुकड़े-टुकड़े कर दिए 

बीती रात मैंने 

क्या पता 

जीवन रेखा पर चल रहा मेरी सांसों का पहिया 

कब टूटी जीवन रेखा के पास आकर थम जाए 

कब मेरा जीवन खत्म हो जाए

लेकिन 

जिंदगी के इस अंतिम पहर में  

आखिरी ख्वाहिश की तरह 

दिल चाहता है एक बार फिर से 

तुमसे मिलना 

मुझसे मिलने तुम जरुर आना 

और फिर 

पहले की तरह 

चुपके से मेरे हाथ में 

एक छोटा-सा ख़त थमा जाना 

जिससे जान जाऊं मैं हाल तुम्हारा 

और फिर 

निकल जाऊं मैं अकेले ही 

यह दुनिया छोड़कर कहीं दूर 

बहुत दूर.


यूं भी तुम्हीं ने तो एक ख़त में लिखा था 

'सब अकेले ही इस दुनिया में आते हैं 

और अकेले ही जाते हैं

आज तक कितनों ने साथ मरने की कसम खाई होगी

किसी से भी पूछ के देख  

कौन किसके साथ जिया

और किसके साथ मरा 

ये तो किसी को पता नहीं

हम साथ-साथ मरेंगे नहीं 

केवल साथ-साथ जिएंगे

बस

और कुछ नहीं

तू मरने का नाम मत लिया कर 

क्योकिं मरने के बाद सब भूल जाते हैं

साथ मरने की नहीं 

बस साथ जीने की दुआ मंगाकर

समझा

अब खाएगा मरने की कसम.'

याद है कुछ तुम्हें? 


मुझे यकीन है

तुम्हें सब याद होगा

मन के किसी एक कोने में

सब कुछ छुपाकर रखा होगा

फिर भी

एक बात तो बताओ  

मेरे मरने के बाद 

मुझे भूल तो नहीं जाओगी ना तुम?

सच-सच बताना 

तुम्हें मेरी कसम.

Thursday, December 11, 2025

आधे-अधूरे ख्याल-2

4.
आदमी सोचता है. चलो ये वाला काम किया जाएगा. बहुत दिन हो गए टालते-टालते. फिर आदमी उसे पूरा करने का प्लान भी बना लेता है. उसके हिसाब से चलने भी लगता है. लेकिन फिर कहीं से नीली छतरी वाला आता है. कहता ना बेटा ना. ये इतना जरुरी नहीं. ये वाला काम ज्यादा जरुरी है, पहले इस काम को पूरा कर. फिर आदमी पहले काम को छोड़कर दूसरे जरुरी काम को करने लगता है. वक्त जैसा कहता है वह वैसे ही करने भी लगता है. ये जिंदगी ऐसे ही उलझाए रखती है एक काम से दूसरे काम और दूसरे से फिर तीसरे. और आदमी इन्हीं में सुलझा रहता है बस...

5.
जैसे शब्दों की अंतिम व्याख्या तक पहुंचते-पहुंचते उनके अर्थ बदल जाते है. ठीक वैसे ही उम्र के आखिरी पड़ाव तक आते-आते जिंदगी के मायने बदल जाते हैं.

6.
आपकी तकलीफ में बगल से गूंगे की तरह निकल जाते हैं. वहीं अपनी जरूरत में यही गूंगे बोलने लग जाते हैं.

7.
जिंदगी तकलीफों का समंदर है. वो अलग बात है दिल बहलाने को कभी-कभी ठंडी हवाओं का झोंका भी आता है. 

8.
ख़त सिर्फ कागज पर उतरे अक्षर नहीं होते हैं. वे दो जिंदगियों के साझे दस्तावेज होते हैं.

9.
कभी-कभी वक्त बुढ़ापे में कहता है बेटा जवान हो जा. बिना जवान हुए तकलीफें दूर नहीं होगीं.

10.
अच्छा यार एक बात तो बता.
पूछ.
तुम पति-पत्नी में कभी झगड़ा नही होता?
हा हा!
मैं सवाल कर रहा हूं. और तू हंस रहा है. जैसे मैंने कोई चुटकला सुनाया हो.
ये चुटकला ही तो है. भला कौन मियां-बीबी हैं जो झगड़ते नही.
लेकिन तुम दोनों को झगड़ते तो कभी देखा नहीं.
भई किसी के सामने नहीं झगड़ते तो इसका मतलब ये नहीं कि हम लड़ते नहीं. हम भी झगड़ते हैं. बस यार सालों से एक सहमति-सी बन गई. वो भी बिना बात-वात किए कि जब भी कोई किसी बात पर ग़ुस्सा होगा या नाराज होगा. दूसरा उस वक्त ज्यादा अपनी बात नहीं रखेगा. बहस नहीं करेगा. बस जितना संभव हो सकेगा मामले को शांत करेगा. चाहे उसके लिए गलती ना होने के बाद भी माफी मांगनी पड़े. उस वक्त वो मामला ठंडा ही करेगा. बाद में जब मामला शांत होगा. उस विषय पर फिर से बातचीत होगी. या फिर गुस्सा करने वाले को गलती का अहसास हो जाए. सही में जो गलत होगा वो माफी मंगेगा. माफी के बीच ईगो नहीं आएगी. हम दोनों में एक बात ये भी है कि गलती का अहसास होते ही माफी मांग लेते हैं. चाहे वो हो या फिर मैं. पता है जब कोई दिल से माफी मांगता है तो उसका चेहरा मासूम-सा हो जाता है. उस वक्त उस मासूम से चेहरे को प्यार करने का मन करने लग जाता है. और फिर माथे का बोसा लेने में हम दोनों में से कोई पीछे नहीं रहता. वो अलग बात है कि कभी-कभी हम प्यार में इतना डूब जाते हैं कि एक दूसरे चेहरों को देखते हुए दोनों की आंखों में आंशू आ जाते है. फिर हम  बात या बहस नहीं करते बस प्यार करते हैं. ऐसे हमारा प्यार का संबंध और मजबूत हो जाता है !
ये तेरी बातें किताबों की बातों-सी लग रही हैं. असल जीवन मे ऐसा भला होता है क्या !
ऐसा जीवन में होना चाहिए कि नहीं??

Thursday, December 4, 2025

सुनो पता है तुम्हें, आजकल परमात्मा मुझसे खफा-खफा रहते हैं...

11.

सुनो 
पता है तुम्हें 
आजकल परमात्मा मुझसे 
खफा-खफा रहते हैं  
और 
मैं डरा-डरा रहता हूं.

फिर कभी कुछ ऐसा घटता है 
लगता है बेशक वे खफा हैं पर 
राह भी तो दिखाते हैं 
काम भी तो बनाते हैं.
 
फिर कभी पता नहीं 
उन्हें क्या हो जाता है 
बिल्कुल दूसरी ही राह ले जाते हैं 
मैं परेशां 
कर भी क्या सकता हूं 
उन्हीं की राह पर चलने लग जाता हूं. 

अकेले चलते-चलते 
अब थक जाता हूं
थक-हारकर
बैठ जाता हूं
बैठकर 
उनसे गिले-शिकवे करता हूं 
तुम्हें याद करता हूं 
ना जाने और
क्या-क्या सोचता रहता हूं.
 
फिर उठकर 
चल पड़ता हूं 
इस उम्मीद में  
कभी तो इनकी नाराजगी दूर होगी 
कभी तो दर्द-तकलीफों से राहत होगी
क्या पता कभी 
किसी राह चलते-चलते 
तुमसे भी मुलाकात होगी.

Saturday, November 8, 2025

आप जिसे संयोग या इत्तेफ़ाक़ कहते हैं, हम उसे भगवान कहते हैं...

आपको किसी दिन सुबह जल्दी उठना होता है तो आप मोबाइल में अलार्म लगाते हैं. आप अलार्म लगा देते हैं. लेकिन आपकी आंखें अलार्म से पहले जाग जाती है. आपके साथ ऐसा होता है या नहीं ये मुझे नहीं पता लेकिन मेरे साथ अक्सर होता है. अपने को एम्स जाना था. सुबह 5.30 का अलार्म लगाया था. 5.15 बजे ही आंखें खुल गईं. 6.40 पर घर से निकला. 7.15 बजे एम्स के एक नंबर गेट पर पहुंच गया. राजकुमारी OPD अब दूर बन गई है. जल्दी से शेयरिंग वाले ऑटो में बैठा. वो खाली था. मन ही मन बोला कि पहले से देर हो गई है. और सवारी के इंतजार में और देर हो जाएगी. खैर ऑटोवाले ने एक दो बार आवाज तो लगाईं कि राजकुमारी OPD-राजकुमारी OPD. लेकिन वे जल्द ही एक ही सवारी बैठाकर चल दिए. लेकिन बीच में ऑटो रोककर पैदल चलते मरीजों को देखकर एक दो बार आवाज लगाईं राजकुमारी OPD-राजकुमारी OPD. इसी बीच में हम बोल दिए कि यहां से कौन जाएगा राजकुमारी OPD. खैर कोई नहीं चढ़ा. पीछे हम दो लोग ही बैठे रहे. ऑटोवाले कुछ दूर चले ही थे कि दूर से ही एक बुजुर्ग दंपति को देखकर बोले,' चलो फ्री में ही सवारी बैठा लेता हूं.' मैं बोला, 'हां बैठा लो.' ऑटोवाले ऑटो रोककर बोले,' आ जाओ बैठ जाओ. राजकुमारी OPD जाओगे ना.' वे बुजुर्ग पति-पत्नी मना करने लगे. या तो उनके पास पैसे नहीं थे. या फिर पैसे बचाना चाहते होंगे. लेकिन जब मैंने कहा कि ये फ्री में ले जाएंगे तो फटाफट से तैयार हो गए. मैं पीछे से उतरकर आगे बैठ गया जिससे वे दोनों पीछे बैठ सकें. जैसे ही राजकुमारी OPD आई मैं ऑटोवाले से पूछ बैठा, यहीं उतारेंगे कि गेट पर उतारेंगे? ' 'जब पैसे लिए हैं तो गेट पर ही उतारेंगे' ऑटोवाले बोले. खैर उन्होंने गेट के पास ही उतारा. हम झट से उतरे और फट से जेब से एक 50 रुपए का नोट निकालकर दे दिया. हमारा 20 रुपए किराया बना था. वे बैलेंस पैसे देने लगे तो हम बोले रहने दीजिए. समझिए ये पैसे फ्री सवारी वालों ने दिए हैं. वे बहुत खुश हुए. फिर ना जाने किन-किन शब्दों में दुआएं देने लगे. और हम भागकर लाइन में लग गए. 

इस बार पहली बार की अपेक्षा लाइन छोटी थी. थोड़ी देर में ही अपनी OPD में पहुंच गए. टाइम 7.45 हो चुका था. अपनी OPD में अपना नंबर छठा था. 8 बजे के करीब पीली जैकेट पहने पेशेंट केयर कोऑर्डिनेटर आए. जिनका काम मरीज को टोकन नंबर देना होता है. वे मरीज को कहते हैं कि अपने मोबाइल से सामने लगाए गए बार कोड को स्कैन करें. और फिर वे प्रोसेस पूरा करके टोकन नंबर ले लें. और जो मरीज ऐसा नहीं कर पाते हैं. उनकी वे सहायता करते हैं. मैं फिर से कह रहा हूं. मुझे ये टोकन नंबर का सिस्टम नहीं समझ आ रहा. इस टोकन नंबर से क्या होता है? अगर स्कैन करके टोकन नंबर दे रहे हैं तो फिर लाइन क्यों लगवा रहे हैं. या फिर जब लाइन लगवा रहे हैं तो टोकन नंबर क्यों दे रहे हैं. बहुत मरीजों ये सब करना नहीं आता. वे बेचारे परेशान होते हैं. खैर अपने पास स्मार्ट फोन नहीं होता. हम तो कह देते हैं कि फोन नहीं है. वे फिर हमारी अपॉइंटमेंट वाली पर्ची पर कुछ लिख देते हैं. क्या लिख देते ये वे ही जाने.खैर कार्ड पर स्टीकर लगवाने के बाद डॉक्टर के कमरे के बाहर हमारा पहला नंबर था. आज पहला नंबर पाकर हम खुश थे. कार्ड मेज पर रखकर सामने की कुर्सी पर बैठ गए. यह देखते रहे कि कहीं हमारा कार्ड कोई पीछे ना कर दे. जब भीड़ आई तो कार्ड को सही नंबर से लगाने का जिम्मा भी ले लिया. तीन डॉक्टर के तीन कमरे थे. उन्हीं कमरों के तीन जगह कार्ड जमा हो रहे थे. उन्हें संभालने के लिय कोई भी सरकारी कर्मचारी नहीं थी. लेकिन जब 9 बजे के पास एक लेडी सरकारी कर्मचारी आईं तो हम अपने सीट पर बैठकर डॉक्टर का इंतजार करने लगे. इंतजार लंबा होने लगा. अगल-बगल कमरे के डॉक्टर आ गए. बस हमारे ही डॉक्टर नहीं आए. खैर लंबे इंतजार के बाद पता लगा कि आज हमारे डॉक्टर नहीं आएंगे. दिमाग खराब हो गया. हमारे कार्ड दूसरे डॉक्टर के रूम में ट्रांसफर कर दिए. जहां पहले से काफी भीड़ थी. समझ नहीं आया. जिस डॉक्टर के पास 20 कार्ड के मरीज हैं. वहां कार्ड ना भेजकर, वहां कार्ड भेज दिए जहां डॉक्टर के पास करीब 50 कार्ड हैं. सच में गुस्सा आया. लेकिन हम गुस्सा पी गए. और अपना कार्ड वहां से वापिस ले आए. 


11 बजे वहां से OPD कार्ड लेकर फ़ारिग हुए तो सोचा जब जल्दी खाली हो गए हैं तो क्यों ना सर्जरी की अपॉइंटमेंट के बारे में पता करके चले. घर से ऑनलाइन अपॉइंटमेंट लेने की 10 दिनों से कोशिशें जारी थीं लेकिन अपॉइंटमेंट नहीं मिल रहा था. 'स्लॉट नोट ओपन एट' बार-बार लिखा आ रहा था. रात को 12 बजे भी और फिर एक बार 3 बजे रात को भी कोशिश की लेकिन बात नहीं बनी. खैर जल्दी से 'सी-विंग' पहुंचे. 'सी-विंग' वो जगह से जहां अलग-अलग OPD के अपॉइंटमेंट लिए जा सकते हैं. वहां देखा भीड़ ना के बराबर थी. सर्जरी का पुराना कार्ड काउंटर पर दिया. दिल की धड़कने बढ़ने लगी क्योंकि सर्जरी का अपॉइंटमेंट बेहद जरुरी था. तब खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब सामने खिड़की से आवाज आई कि 13 का अपॉइंटमेंट दे दूं. हम दिल को थामे फ़टाफ़ट से बोले 13 नवंबर ना. वो बोले हां. फिर हम अपॉइंटमेंट की पर्ची लेकर खुशी से झूम उठे. और झूमते हुए  'सी-विंग' से बाहर निकले तो हमें सुबह उस ऑटोवाले की दी गईं दुआएं याद आने लगीं. ये उन्हीं दुआओं का असर था कि हमें सर्जरी की OPD का अपॉइंटमेंट मिल गया. हम मन ही मन नीली छतरी वाले और उस ऑटोवाले को शुक्रिया कहकर घर की ओर निकल पड़े. वो कहते है ना 'जिसे आप संयोग या इत्तेफ़ाक़ कहते हैं, हम उसे भगवान कहते हैं.'


Wednesday, October 8, 2025

भाई साहब एक साल हो गए एम्स आते हुए. आजतक इतनी लंबी लाइन नहीं देखी...

मैं साल-छह महीने एम्स ना जाऊं तो वो खुद ही बुला लेता है. पता नहीं उसका मन नहीं लगता है या फिर मेरा. 20 साल का याराना जो ठहरा हमारा. ऐसा ही याराना पहले RML हॉस्पिटल के साथ होता था. खैर सुबह घर से 6.30 बजे निकले. 7.30 बजे एम्स. उधर देखे तो सब सुनसान . एकदम दिल घक्क से किया. कहीं आज छुट्टी तो नहीं. खैर पूछताछ के लिए आगे ही बढ़े थे कि एक लाइन दिखी. दुनिया लाइन से घबराती है. मैं लाइन देख आज खुश हो गया. लाइन का आख़िरी सिरा पकड़ में आ गया. और आगे का मुंह नजर भी आ गया. परंतु लोग चलते ही जाएं, लेकिन लाइन खत्म होने का नाम ही ना ले. वहीं पीछे खड़ा इंसान मेरे हौसले को खत्म करने पर उतारू था. भाई साहब एक साल हो गए यहां आते हुए. आजतक इतनी लंबी लाइन नहीं देखी. मैं अपना हौसला बनाने के लिए हंस पड़ा. और बोला,' भाई साहब हिम्मत रखो. अंदर जाकर लोग बंट जाएंगे. कोई किसी OPD में जाएगा और कोई किसी OPD में. लेकिन वो मेरी बात पर हां तो कर गए लेकिन जाते-जाते वही बात कहने से नहीं माने कि 'भाई साहब एक साल हो गए यहां आते हुए. आजतक इतनी लंबी लाइन नहीं देखी.'

खैर आधे घंटा या 35 मिनट में हम अपनी ENT OPD में पहुंचे. वहां भी लाइन लेकिन इतनी नहीं. होंगे करीब 60 एक मरीज. अपना हौसला बना हुआ था. अपना शुरू से मानना रहा है कि सरकारी अस्पताल में आए हो तो समझो 2 तो बजेंगे ही. हमारा हौसला उस आदमी के टूटे से भी नहीं टूटा था. कुछ देर में एक पीली जैकेट पहने एक आदमी पास आए और बोले कि मोबाइल से स्कैन करके टोकन ले लो. हम बोले, 'सर जी हम स्मार्ट फोन नहीं रखते. आप ही स्कैन करके टोकन नंबर दे दो.' उन्होंने टोकन नंबर तो नहीं दिया लेकिन कार्ड पर कुछ लिख दिया. लेकिन मुझे आज तक ये समझ नहीं आया कि इस टोकन नंबर होता किसलिए है. टोकन नंबर लो या ना लो. काउंटर से जाकर ही सबको कार्ड बनवाना होता है. ना ही आपके नंबर पर कुछ इसका फर्क पड़ता है. पता नहीं एम्स वालों ने ये सिस्टम क्यों बना रखा है. होगा कुछ. आपां तो लाइन में लगकर काउंटर पर जाकर कार्ड बनवाते हैं. और बन जाता है.
और फिर 8.35-40 तक कार्ड बन चुका था. 9.30 बजे के बाद डॉक्टर आए. शायद पांचवा नंबर था हमारा. डॉक्टर ने देखा और बोलीं कि एक महीने की दवा लिख दी है. सीटी करवाके एक महीने बाद दिखाना है. सीटी की तारीख लेने काउंटर पर गए तो काउंटर वाले बोले कि '15 जनवरी से पहले की डेट नहीं है. 15 जनवरी की चाहिए तो बोलिए.'
करीब तीन महीने बाद सीटी की डेट. सोचिए-सोचिए. एक बार जरुर सोचिए. सरकार के भक्त ना बनिए. इसलिए कहता हूं सरकारों से मांग कीजिए कि वो स्वस्थ सेवाओं पर ध्यान दे. खैर 15 जनवरी के डेट ले ली. हम तो जैसे तैसे कहीं बाहर से सीटी करवाके अगले महीने दिखा देंगे. लेकिन जो बाहर यानी प्राइवेट सीटी नहीं करवा सकते उनका क्या! सोचना चाहिए सरकारों को भी. और इस तरह 10.30 बजे फ़ारिग. 3 घंटे में एम्स में डॉक्टर को दिखाकर OPD से बाहर. सोचना एक बार. कहीं अच्छे प्राइवेट हॉस्पिटल में जाएँ तो वहां भी लगभग इतना टाइम लग जाता है. वैसे ऐसे एम्स हर राज्य में होने चाहिए. ध्यान दीजिए मेरे शब्दों पर 'ऐसे ही एम्स'. एक शख्स राजस्थान के मिले थे. हमने पूछा कि आपके राज्य में एम्स नहीं है. वो बोले कि वो बस नाम का एम्स हैं. ऐसा एम्स नहीं जैसा ये है. समझ रहे हैं ना मैं क्या कहना चाह रहा हूं...
नोट- दरअसल मेरी नाक में दोनों तरफ मांस बढ़ गया है. करीब दो एक साल से नाक से सांस लेने में दिक्कत हो रही थी. फिर भी मैं ऑपरेशन से बच रहा था लेकिन अब दिक्कत कुछ ज्यादा ही होने लगी तो एम्स की याद हो आई 😍 देखते हैं एम्स पहले की तरह साथ देता है या फिर ऑपरेशन के लिए थोड़ा टाइम लगाता है. पिछली बार 2016 के पहले ही दिन गए थे. और पहले ही दिन फरवरी 3 की ऑपरेशन की डेट मिल गई थी और तीन फरवरी को ऑपरेशन हो भी गया था. देखते हैं अबकी बार क्या होता है!

Friday, October 3, 2025

सुनो. हां आई...

 6.

सुनो

आज फिर आई थीं तुम 

सपने में 

जैसे हर बार आती हो.


लेकिन आज 

तुम हिम्मत का दुपट्टा ओढ़े थीं 

मैं डर का कुर्ता पहने था.


तुम मेरे नजदीक आ-आकर
बातें किए जा रही थीं 

बार-बार 

मेरा हाथ पकड़े जा रही थीं 

मैं दुनिया से डरा-सहमा 

बार-बार ही 

अपना हाथ छुड़ाए जा रहा था 

तुमसे फासले बनाए जा रहा था.

 

ठीक वैसे ही फासले 

जैसे पहले तुम बनाया करती थीं 

लेकिन आज मैं बेहद खुश था 

क्योंकि 

तुमने अब लोगों की परवाह करना छोड़ दिया था

अपने ख़्वाबों को प्यार करना शुरू कर दिया था.


7.


सुनो 

कभी-कभी सुबह 

सपने में सिर्फ तुम्हारा आना ही याद रहता है 

बाकी कुछ भी नहीं. 


याद करने पर भी

कुछ याद नहीं आता.


बस तुम्हारे आने का अहसास होता है 

अहसास भी ऐसा 

जैसे अभी-अभी तुम 

मुझसे मिलकर चली तो गई हो 

लेकिन 

अपनी खुशबू यहीं छोड़ गई हो

मेरे पास.


8.


सुनो 

पता है 

आज मेरे सपने में 

कौन आया?


अरे बाबा तुम नहीं

भोले बाबा.


वे कह रहे थे 

मेरे से पहले तुम 

'राम' का नाम लिया करो

बस ये कहकर वे चले.

 

क्यूं आया ऐसा सपना 

मुझे कुछ पता नहीं 

तुम्हें कुछ पता हो 

तो बताना.


9.


सुनो 

आज सपने में 

मैं कहीं अकेला 

उदास-सा बैठा था.


तुम मेरे पीछे से आईं 

और पूछने लगीं 

यूं अकेले क्यों बैठे हो?


तुम्हारी आवाज सुनकर 

मैं चौंका 

पीछे मुड़कर मैंने तुम्हें देखा 

बस एकटक देखता रहा 

और फिर 

रो पड़ा. 


ऐसे-जैसे कोई बच्चा 

जब तकलीफ में होता है तो 

मां को देखकर रो पड़ता है.


10.


'सुनो.'

'हां, आई.' 

आखिर बार 

कब कहे गए थे 

ये तीन शब्द 

हम दोनों के बीच 

कुछ याद है तुम्हें!


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