कोई-कोई फिल्म प्यार-सी मीठी, प्रेमिका-सी सुंदर और बच्चे-सी मासूम होती है. कुछ ऐसी ही मीठी,सुंदर और मासूम फिल्म है 'मेरी निम्मो'. यूं तो इस फिल्म की कहानी एक छोटे से गांव में जन्मी प्रेम की साधारण-सी कहानी है लेकिन यह साधारणता ही इस फिल्म की खूबसूरती है.इस सादी कहानी में गांव के एक नाबालिग लड़के 'हेमू' को एक बालिग लड़की 'निम्मो' से 'वैसा' वाला नहीं 'वो' वाला प्यार हो जाता है. फिल्म 'वैसे वाले प्यार' से शुरू होकर 'वो वाले प्यार' तक चलती है. और आखिर में गांव के एक बाहरी मोड़ से होकर एक दूसरे ही मोड़ को मुड़कर खत्म जाती है. बस इतनी-सी कहानी है इस फिल्म की. परंतु इस फिल्म में 'वैसे' और 'वो' वाले प्यार के बीच जो खट्टा-मीठा घटता है वो दिल को छू लेता है. ऐसा लगता है कि आप मासूमियत की नदी में रुक-रूककर डूबकी लगा रहे हैं. डूबकी से जो आनंद मिल रहा है. वो अद्भूत है. आपको इस फिल्म में गांव के खाली पड़े खेतों में क्रिकेट खेलने से पहले टॉस के लिए सूखे-गिले का इस्तेमाल करते बच्चे नजर आ जाएंगे. गांव की किसी गली के नुक्कड़ पर बच्चे पिठ्ठू खेलते दिख जाएंगे. गांव की एक सीधी गली में कुत्ते से डरता मेरे जैसा एक बच्चा मिल जाएगा. गांव के एक बड़े से घर से कोई लड़की लोकगीत 'झटपट डोलिया उठाओ रे कहरवा' गाते हुए मिल जाएगी. गांव में आई शहरी बारात में कोई शहरी 'एक्स्चुसे मी' कहता हुआ मिल जाएगा. फिल्म के इस गांव में घूमते हुए आपको कुछ ना कुछ अवश्य मिल जाएगा. जैसे मुझे ये सब मिला. आखिर में जब आप इस फिल्म को देखकर उठेंगे तो आपकी झोली खाली नहीं अलग-अलग एहसासों से भारी होगी. और ये एहसास ही ‘मेरी निम्मो’ फिल्म की जान हैं.
नोट- फोटो गूगल से.
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