सुनो
पता है तुम्हें
आजकल परमात्मा मुझसे
खफा-खफा रहते हैं
और
मैं उनसे
डरा-डरा रहता हूं.
पता है तुम्हें
आजकल परमात्मा मुझसे
खफा-खफा रहते हैं
और
मैं उनसे
डरा-डरा रहता हूं.
फिर कभी कुछ ऐसा घटता है
लगता है बेशक वे खफा हैं पर
राह भी तो दिखाते हैं
काम भी तो बनाते हैं.
फिर कभी पता नहीं
उन्हें क्या हो जाता है
बिल्कुल दूसरी ही राह ले जाते हैं
मैं परेशां
कर भी क्या सकता हूं
उन्हीं की राह पर चलने लग जाता हूं.
अकेले चलते-चलते
अब थक भी जाता हूं मैं
थक-हारकर
बैठ जाता हूं
बैठकर
उनसे गिले-शिकवे करता हूं
तुम्हें याद करता हूं
ना जाने क्या-क्या सोचता रहता हूं.
फिर उठकर
चल पड़ता हूं
इस उम्मीद में
कभी तो इनकी नाराजगी दूर होगी
कभी तो दर्द-तकलीफों से राहत होगी
क्या पता कभी
किसी राह चलते-चलते
तुमसे भी मुलाकात होगी.
No comments:
Post a Comment