✪ आदमी सोचता है. चलो ये वाला काम किया जाएगा. बहुत दिन हो गए टालते-टालते. फिर आदमी उसे पूरा करने का प्लान भी बना लेता है. उसके हिसाब से चलने भी लगता है. लेकिन फिर कहीं से नीली छतरी वाला आता है. कहता ना बेटा ना. ये इतना जरुरी नहीं. ये वाला काम ज्यादा जरुरी है, पहले इस काम को पूरा कर. फिर आदमी पहले काम को छोड़कर दूसरे जरुरी काम को करने लगता है. वक्त जैसा कहता है वह वैसे ही करने भी लगता है. ये जिंदगी ऐसे ही उलझाए रखती है एक काम से दूसरे काम और दूसरे से फिर तीसरे. और आदमी इन्हीं में सुलझा रहता है बस...
✪ जैसे शब्दों की अंतिम व्याख्या तक पहुंचते-पहुंचते उनके अर्थ बदल जाते है. ठीक वैसे ही उम्र के आखिरी पड़ाव तक आते-आते जिंदगी के मायने बदल जाते हैं.
✪आपकी तकलीफ में बगल से गूंगे की तरह निकल जाते हैं. वहीं अपनी जरूरत में यही गूंगे बोलने लग जाते हैं.
✪जिंदगी तकलीफों का समंदर है. वो अलग बात है दिल बहलाने को कभी-कभी ठंडी हवाओं का झोंका भी आता है.
✪ख़त सिर्फ कागज पर उतरे अक्षर नहीं होते हैं. वे दो जिंदगियों के साझे दस्तावेज होते हैं.
✪कभी-कभी वक्त बुढ़ापे में कहता है बेटा जवान हो जा. बिना जवान हुए तकलीफें दूर नहीं होगीं.
✪अच्छा यार एक बात तो बता.
पूछ.
तुम पति-पत्नी में कभी झगड़ा नही होता?
हा हा!
मैं सवाल कर रहा हूं. और तू हंस रहा है. जैसे मैंने कोई चुटकला सुनाया हो.
ये चुटकला ही तो है. भला कौन मियां-बीबी हैं जो झगड़ते नही.
लेकिन तुम दोनों को झगड़ते तो कभी देखा नहीं.
भई किसी के सामने नहीं झगड़ते तो इसका मतलब ये नहीं कि हम लड़ते नहीं. हम भी झगड़ते हैं. बस यार सालों से एक सहमति-सी बन गई. वो भी बिना बात-वात किए कि जब भी कोई किसी बात पर ग़ुस्सा होगा या नाराज होगा. दूसरा उस वक्त ज्यादा अपनी बात नहीं रखेगा. बहस नहीं करेगा. बस जितना संभव हो सकेगा मामले को शांत करेगा. चाहे उसके लिए गलती ना होने के बाद भी माफी मांगनी पड़े. उस वक्त वो मामला ठंडा ही करेगा. बाद में जब मामला शांत होगा. उस विषय पर फिर से बातचीत होगी. या फिर गुस्सा करने वाले को गलती का अहसास हो जाए. सही में जो गलत होगा वो माफी मंगेगा. माफी के बीच ईगो नहीं आएगी. हम दोनों में एक बात ये भी है कि गलती का अहसास होते ही माफी मांग लेते हैं. चाहे वो हो या फिर मैं. पता है जब कोई दिल से माफी मांगता है तो उसका चेहरा मासूम-सा हो जाता है. उस वक्त उस मासूम से चेहरे को प्यार करने का मन करने लग जाता है. और फिर माथे का बोसा लेने में हम दोनों में से कोई पीछे नहीं रहता. वो अलग बात है कि कभी-कभी हम प्यार में इतना डूब जाते हैं कि एक दूसरे चेहरों को देखते हुए दोनों की आंखों में आंशू आ जाते है. फिर हम बात या बहस नहीं करते बस प्यार करते हैं. ऐसे हमारा प्यार का संबंध और मजबूत हो जाता है !
ये तेरी बातें किताबों की बातों-सी लग रही हैं. असल जीवन मे ऐसा भला होता है क्या !
ऐसा जीवन में होना चाहिए कि नहीं??
ऐसा जीवन में होना चाहिए कि नहीं??
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