15.
सुनो
पता है तुम्हें
बीती रात के अंतिम पहर में
मैंने तुम्हारे सारे खतों के
पुर्जे-पुर्जे कर दिए
पुर्जे करने से पहले
मैं उन्हें एक-एक कर पढ़ता रहा
पढ़कर
कभी खुश होता
कभी उदास
और
कभी तो ऐसा लगता
जैसे तुम ही कमरे में बैठी
एक-एक ख़त को पढ़कर सुना रही हो
'आज मैंने तुम्हारे लिए
पूरे-पूरे दो पेज भर दिए हैं
है ना
क्या इनाम दोगे!'
क्या इनाम दिया था मैंने
याद है कुछ तुम्हें?
कुछ देर बाद
फिर तुम कहती हो
'पढ़ लिया कि नहीं
मैं आ जाऊं क्या
बुला ले ना
मैं पढ़कर सुना दूंगी
आऊं मैं!'
और
तुम आजतक ना आ सकीं
और अब
ये ख़त भी नजर नहीं आएंगे
बिल्कुल तुम्हारी तरह
वैसे कितने साल हो गए
हम दोनों को मिले हुए?
याद है कुछ तुम्हें?
वैसे तुम्हें पता है
इन खतों के टुकड़े मैंने क्यों किए
दरअसल
शरीर साथ नहीं देता अब
एक दर्द को सुलाता हूं
तो दूसरा जाग जाता है
दूसरे को बहलाता हूं
तो तीसरा नाराज हो जाता है
आखिर किस-किस दर्द की दवा करूं मैं अब
बस इन्हीं में उलझा कभी-कभी
हाथ की रेखाओं को देखा करता हूं
अब तो ये भी टूटने लगी हैं
अपनी राह से भटकने लगी हैं
बल्कि पता है तुम्हें
जीवन रेखा तो कब की दो टुकड़े हो चुकी
उस टूटी रेखा को देख
डर-डर जाता हूं मैं अब
पहले तो डरा सहमा तुम्हारे लिखे ख़त
पढ़ लिया करता था
थोड़ा बहुत अपने आपसे
हंस बोल लिया करता था
फिर एक दिन अपने डर से ही
तुम्हारा डर याद आया
जो तुमने किसी रोज एक ख़त में लिखा था
'ये ख़त कभी किसी के हाथ लग गए तब क्या होगा?'
सच में तब क्या होगा
मैंने भी ये सोचा था
इसलिए
सारे ख़तों के टुकड़े-टुकड़े कर दिए
बीती रात मैंने
क्या पता
जीवन रेखा पर चल रहा मेरी सांसों का पहिया
कब टूटी जीवन रेखा के पास आकर थम जाए
कब मेरा जीवन खत्म हो जाए
लेकिन
जिंदगी के इस अंतिम पहर में
आखिरी ख्वाहिश की तरह
दिल चाहता है एक बार फिर से
तुमसे मिलना
मुझसे मिलने तुम जरुर आना
और फिर
पहले की तरह
चुपके से मेरे हाथ में
एक छोटा-सा ख़त थमा जाना
जिससे जान जाऊं मैं हाल तुम्हारा
और फिर
निकल जाऊं मैं अकेले ही
यह दुनिया छोड़कर कहीं दूर
बहुत दूर.
यूं भी तुम्हीं ने तो एक ख़त में लिखा था
'सब अकेले ही इस दुनिया में आते हैं
और अकेले ही जाते हैं
आज तक कितनों ने साथ मरने की कसम खाई होगी
किसी से भी पूछ के देख
कौन किसके साथ जिया
और किसके साथ मरा
ये तो किसी को पता नहीं
हम साथ-साथ मरेंगे नहीं
केवल साथ-साथ जिएंगे
बस
और कुछ नहीं
तू मरने का नाम मत लिया कर
क्योकिं मरने के बाद सब भूल जाते हैं
साथ मरने की नहीं
बस साथ जीने की दुआ मंगाकर
समझा
अब खाएगा मरने की कसम.'
याद है कुछ तुम्हें?
मुझे यकीन है
तुम्हें सब याद होगा
मन के किसी कोने में
सब कुछ छुपाकर रखा होगा
मगर फिर भी
एक बात तो बताओ
मेरे मरने के बाद
मुझे भूल तो नहीं जाओगी ना तुम?
सच-सच बताना
तुम्हें मेरी कसम.
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