13.
सुनो
कभी-कभी
यूं ही बैठे-बैठे
सोचता हूं मैं
तुम अपने मन की बातें
अब किससे कहती होंगी?
14.
सुनो
पता है तुम्हें
तुम मुझे इतनी अच्छी क्यों लगती थीं
दरअसल तुम मुझे समझती थीं
इसलिए इतनी अच्छी लगती थीं.
15.
सुनो
आखिर कब तक तुम
मेरे सपनों में आती रहोगी
कभी सपनों से निकलकर
मुझसे मिलने आओ
बहुत कुछ कहना है मुझे
कुछ तुम्हें भी तो कहना होगा.
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