11.
ना किसी को तलब होती हमारी
ना किसी को याद आते हम
सच-सच बताना तुम
क्या इतने बुरे थे हम
ना किसी को याद आते हम
सच-सच बताना तुम
क्या इतने बुरे थे हम
12.
श्रीराम सेंटर के बाहर खड़ी
वो सांवली-सी खड़ी लड़की
सिगरेट के छल्लों से
सिगरेट के छल्लों से
जिंदगी की उलझनें
सुलझा रही थी शायद.
13.
सुलझा रही थी शायद.
13.
गली के उस मोड़ पर
एक पल को ठहर जाता है वो
क्या पता आज भी
एक पल को ठहर जाता है वो
क्या पता आज भी
चाँद झांकता हो
उस घर के छज्जे से.
14.
वो भी क्या दिन थे लड़कपन के
जब फ्रेम जड़ी उनकी फोटो के पास
एक गुलाब का फूल रख दिया करते थे.
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