आपको किसी दिन सुबह जल्दी उठना होता है तो आप मोबाइल में अलार्म लगाते हैं. आप अलार्म लगा देते हैं. लेकिन आपकी आंखें अलार्म से पहले जाग जाती है. आपके साथ ऐसा होता है या नहीं ये मुझे नहीं पता लेकिन मेरे साथ अक्सर होता है. अपने को एम्स जाना था. सुबह 5.30 का अलार्म लगाया था. 5.15 बजे ही आंखें खुल गईं. 6.40 पर घर से निकला. 7.15 बजे एम्स के एक नंबर गेट पर पहुंच गया. राजकुमारी OPD अब दूर बन गई है. जल्दी से शेयरिंग वाले ऑटो में बैठा. वो खाली था. मन ही मन बोला कि पहले से देर हो गई है. और सवारी के इंतजार में और देर हो जाएगी. खैर ऑटोवाले ने एक दो बार आवाज तो लगाईं कि राजकुमारी OPD-राजकुमारी OPD. लेकिन वे जल्द ही एक ही सवारी बैठाकर चल दिए. लेकिन बीच में ऑटो रोककर पैदल चलते मरीजों को देखकर एक दो बार आवाज लगाईं राजकुमारी OPD-राजकुमारी OPD. इसी बीच में हम बोल दिए कि यहां से कौन जाएगा राजकुमारी OPD. खैर कोई नहीं चढ़ा. पीछे हम दो लोग ही बैठे रहे. ऑटोवाले कुछ दूर चले ही थे कि दूर से ही एक बुजुर्ग दंपति को देखकर बोले,' चलो फ्री में ही सवारी बैठा लेता हूं.' मैं बोला, 'हां बैठा लो.' ऑटोवाले ऑटो रोककर बोले,' आ जाओ बैठ जाओ. राजकुमारी OPD जाओगे ना.' वे बुजुर्ग पति-पत्नी मना करने लगे. या तो उनके पास पैसे नहीं थे. या फिर पैसे बचाना चाहते होंगे. लेकिन जब मैंने कहा कि ये फ्री में ले जाएंगे तो फटाफट से तैयार हो गए. मैं पीछे से उतरकर आगे बैठ गया जिससे वे दोनों पीछे बैठ सकें. जैसे ही राजकुमारी OPD आई मैं ऑटोवाले से पूछ बैठा, यहीं उतारेंगे कि गेट पर उतारेंगे? ' 'जब पैसे लिए हैं तो गेट पर ही उतारेंगे' ऑटोवाले बोले. खैर उन्होंने गेट के पास ही उतारा. हम झट से उतरे और फट से जेब से एक 50 रुपए का नोट निकालकर दे दिया. हमारा 20 रुपए किराया बना था. वे बैलेंस पैसे देने लगे तो हम बोले रहने दीजिए. समझिए ये पैसे फ्री सवारी वालों ने दिए हैं. वे बहुत खुश हुए. फिर ना जाने किन-किन शब्दों में दुआएं देने लगे. और हम भागकर लाइन में लग गए.
इस बार पहली बार की अपेक्षा लाइन छोटी थी. थोड़ी देर में ही अपनी OPD में पहुंच गए. टाइम 7.45 हो चुका था. अपनी OPD में अपना नंबर छठा था. 8 बजे के करीब पीली जैकेट पहने पेशेंट केयर कोऑर्डिनेटर आए. जिनका काम मरीज को टोकन नंबर देना होता है. वे मरीज को कहते हैं कि अपने मोबाइल से सामने लगाए गए बार कोड को स्कैन करें. और फिर वे प्रोसेस पूरा करके टोकन नंबर ले लें. और जो मरीज ऐसा नहीं कर पाते हैं. उनकी वे सहायता करते हैं. मैं फिर से कह रहा हूं. मुझे ये टोकन नंबर का सिस्टम नहीं समझ आ रहा. इस टोकन नंबर से क्या होता है? अगर स्कैन करके टोकन नंबर दे रहे हैं तो फिर लाइन क्यों लगवा रहे हैं. या फिर जब लाइन लगवा रहे हैं तो टोकन नंबर क्यों दे रहे हैं. बहुत मरीजों ये सब करना नहीं आता. वे बेचारे परेशान होते हैं. खैर अपने पास स्मार्ट फोन नहीं होता. हम तो कह देते हैं कि फोन नहीं है. वे फिर हमारी अपॉइंटमेंट वाली पर्ची पर कुछ लिख देते हैं. क्या लिख देते ये वे ही जाने.खैर कार्ड पर स्टीकर लगवाने के बाद डॉक्टर के कमरे के बाहर हमारा पहला नंबर था. आज पहला नंबर पाकर हम खुश थे. कार्ड मेज पर रखकर सामने की कुर्सी पर बैठ गए. यह देखते रहे कि कहीं हमारा कार्ड कोई पीछे ना कर दे. जब भीड़ आई तो कार्ड को सही नंबर से लगाने का जिम्मा भी ले लिया. तीन डॉक्टर के तीन कमरे थे. उन्हीं कमरों के तीन जगह कार्ड जमा हो रहे थे. उन्हें संभालने के लिय कोई भी सरकारी कर्मचारी नहीं थी. लेकिन जब 9 बजे के पास एक लेडी सरकारी कर्मचारी आईं तो हम अपने सीट पर बैठकर डॉक्टर का इंतजार करने लगे. इंतजार लंबा होने लगा. अगल-बगल कमरे के डॉक्टर आ गए. बस हमारे ही डॉक्टर नहीं आए. खैर लंबे इंतजार के बाद पता लगा कि आज हमारे डॉक्टर नहीं आएंगे. दिमाग खराब हो गया. हमारे कार्ड दूसरे डॉक्टर के रूम में ट्रांसफर कर दिए. जहां पहले से काफी भीड़ थी. समझ नहीं आया. जिस डॉक्टर के पास 20 कार्ड के मरीज हैं. वहां कार्ड ना भेजकर, वहां कार्ड भेज दिए जहां डॉक्टर के पास करीब 50 कार्ड हैं. सच में गुस्सा आया. लेकिन हम गुस्सा पी गए. और अपना कार्ड वहां से वापिस ले आए.
11 बजे वहां से OPD कार्ड लेकर फ़ारिग हुए तो सोचा जब जल्दी खाली हो गए हैं तो क्यों ना सर्जरी की अपॉइंटमेंट के बारे में पता करके चले. घर से ऑनलाइन अपॉइंटमेंट लेने की 10 दिनों से कोशिशें जारी थीं लेकिन अपॉइंटमेंट नहीं मिल रहा था. 'स्लॉट नोट ओपन एट' बार-बार लिखा आ रहा था. रात को 12 बजे भी और फिर एक बार 3 बजे रात को भी कोशिश की लेकिन बात नहीं बनी. खैर जल्दी से 'सी-विंग' पहुंचे. 'सी-विंग' वो जगह से जहां अलग-अलग OPD के अपॉइंटमेंट लिए जा सकते हैं. वहां देखा भीड़ ना के बराबर थी. सर्जरी का पुराना कार्ड काउंटर पर दिया. दिल की धड़कने बढ़ने लगी क्योंकि सर्जरी का अपॉइंटमेंट बेहद जरुरी था. तब खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब सामने खिड़की से आवाज आई कि 13 का अपॉइंटमेंट दे दूं. हम दिल को थामे फ़टाफ़ट से बोले 13 नवंबर ना. वो बोले हां. फिर हम अपॉइंटमेंट की पर्ची लेकर खुशी से झूम उठे. और झूमते हुए 'सी-विंग' से बाहर निकले तो हमें सुबह उस ऑटोवाले की दी गईं दुआएं याद आने लगीं. ये उन्हीं दुआओं का असर था कि हमें सर्जरी की OPD का अपॉइंटमेंट मिल गया. हम मन ही मन नीली छतरी वाले और उस ऑटोवाले को शुक्रिया कहकर घर की ओर निकल पड़े. वो कहते है ना 'जिसे आप संयोग या इत्तेफ़ाक़ कहते हैं, हम उसे भगवान कहते हैं.'
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