मैं साल-छह महीने एम्स ना जाऊं तो वो खुद ही बुला लेता है. पता नहीं उसका मन नहीं लगता है या फिर मेरा. 20 साल का याराना जो ठहरा हमारा. ऐसा ही याराना पहले RML हॉस्पिटल के साथ होता था. खैर सुबह घर से 6.30 बजे निकले. 7.30 बजे एम्स. उधर देखे तो सब सुनसान . एकदम दिल घक्क से किया. कहीं आज छुट्टी तो नहीं. खैर पूछताछ के लिए आगे ही बढ़े थे कि एक लाइन दिखी. दुनिया लाइन से घबराती है. मैं लाइन देख आज खुश हो गया. लाइन का आख़िरी सिरा पकड़ में आ गया. और आगे का मुंह नजर भी आ गया. परंतु लोग चलते ही जाएं, लेकिन लाइन खत्म होने का नाम ही ना ले. वहीं पीछे खड़ा इंसान मेरे हौसले को खत्म करने पर उतारू था. भाई साहब एक साल हो गए यहां आते हुए. आजतक इतनी लंबी लाइन नहीं देखी. मैं अपना हौसला बनाने के लिए हंस पड़ा. और बोला,' भाई साहब हिम्मत रखो. अंदर जाकर लोग बंट जाएंगे. कोई किसी OPD में जाएगा और कोई किसी OPD में. लेकिन वो मेरी बात पर हां तो कर गए लेकिन जाते-जाते वही बात कहने से नहीं माने कि 'भाई साहब एक साल हो गए यहां आते हुए. आजतक इतनी लंबी लाइन नहीं देखी.'
खैर आधे घंटा या 35 मिनट में हम अपनी ENT OPD में पहुंचे. वहां भी लाइन लेकिन इतनी नहीं. होंगे करीब 60 एक मरीज. अपना हौसला बना हुआ था. अपना शुरू से मानना रहा है कि सरकारी अस्पताल में आए हो तो समझो 2 तो बजेंगे ही. हमारा हौसला उस आदमी के टूटे से भी नहीं टूटा था. कुछ देर में एक पीली जैकेट पहने एक आदमी पास आए और बोले कि मोबाइल से स्कैन करके टोकन ले लो. हम बोले, 'सर जी हम स्मार्ट फोन नहीं रखते. आप ही स्कैन करके टोकन नंबर दे दो.' उन्होंने टोकन नंबर तो नहीं दिया लेकिन कार्ड पर कुछ लिख दिया. लेकिन मुझे आज तक ये समझ नहीं आया कि इस टोकन नंबर होता किसलिए है. टोकन नंबर लो या ना लो. काउंटर से जाकर ही सबको कार्ड बनवाना होता है. ना ही आपके नंबर पर कुछ इसका फर्क पड़ता है. पता नहीं एम्स वालों ने ये सिस्टम क्यों बना रखा है. होगा कुछ. आपां तो लाइन में लगकर काउंटर पर जाकर कार्ड बनवाते हैं. और बन जाता है.
और फिर 8.35-40 तक कार्ड बन चुका था. 9.30 बजे के बाद डॉक्टर आए. शायद पांचवा नंबर था हमारा. डॉक्टर ने देखा और बोलीं कि एक महीने की दवा लिख दी है. सीटी करवाके एक महीने बाद दिखाना है. सीटी की तारीख लेने काउंटर पर गए तो काउंटर वाले बोले कि '15 जनवरी से पहले की डेट नहीं है. 15 जनवरी की चाहिए तो बोलिए.'
करीब तीन महीने बाद सीटी की डेट. सोचिए-सोचिए. एक बार जरुर सोचिए. सरकार के भक्त ना बनिए. इसलिए कहता हूं सरकारों से मांग कीजिए कि वो स्वस्थ सेवाओं पर ध्यान दे. खैर 15 जनवरी के डेट ले ली. हम तो जैसे तैसे कहीं बाहर से सीटी करवाके अगले महीने दिखा देंगे. लेकिन जो बाहर यानी प्राइवेट सीटी नहीं करवा सकते उनका क्या! सोचना चाहिए सरकारों को भी. और इस तरह 10.30 बजे फ़ारिग. 3 घंटे में एम्स में डॉक्टर को दिखाकर OPD से बाहर. सोचना एक बार. कहीं अच्छे प्राइवेट हॉस्पिटल में जाएँ तो वहां भी लगभग इतना टाइम लग जाता है. वैसे ऐसे एम्स हर राज्य में होने चाहिए. ध्यान दीजिए मेरे शब्दों पर 'ऐसे ही एम्स'. एक शख्स राजस्थान के मिले थे. हमने पूछा कि आपके राज्य में एम्स नहीं है. वो बोले कि वो बस नाम का एम्स हैं. ऐसा एम्स नहीं जैसा ये है. समझ रहे हैं ना मैं क्या कहना चाह रहा हूं...
नोट- दरअसल मेरी नाक में दोनों तरफ मांस बढ़ गया है. करीब दो एक साल से नाक से सांस लेने में दिक्कत हो रही थी. फिर भी मैं ऑपरेशन से बच रहा था लेकिन अब दिक्कत कुछ ज्यादा ही होने लगी तो एम्स की याद हो आई
देखते हैं एम्स पहले की तरह साथ देता है या फिर ऑपरेशन के लिए थोड़ा टाइम लगाता है. पिछली बार 2016 के पहले ही दिन गए थे. और पहले ही दिन फरवरी 3 की ऑपरेशन की डेट मिल गई थी और तीन फरवरी को ऑपरेशन हो भी गया था. देखते हैं अबकी बार क्या होता है!
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