Friday, October 3, 2025

सुनो... हां आई...

 6.

सुनो

आज फिर आई थीं तुम 

सपने में 

जैसे हर बार आती हो.


लेकिन आज 

तुम हिम्मत का दुपट्टा ओढ़े थीं 

मैं डर का कुर्ता पहने था.


तुम मेरे नजदीक आ-आकर
बातें किए जा रही थीं 

बार-बार 

मेरा हाथ पकड़े जा रही थीं 

मैं दुनिया से डरा-सहमा 

बार-बार ही 

अपना हाथ छुड़ाए जा रहा था 

तुमसे फासले बनाए जा रहा था.

 

ठीक वैसे ही फासले 

जैसे पहले तुम बनाया करती थीं 

लेकिन आज मैं बेहद खुश था 

क्योंकि 

तुमने अब लोगों की परवाह करना छोड़ दिया था

अपने ख़्वाबों को प्यार करना शुरू कर दिया था.


7.


सुनो 

कभी-कभी सुबह 

सपने में सिर्फ तुम्हारा आना ही याद रहता है 

बाकी कुछ भी नहीं. 


याद करने पर भी

कुछ याद नहीं आता.


बस तुम्हारे आने का अहसास होता है 

अहसास भी ऐसा 

जैसे अभी-अभी तुम 

मुझसे मिलकर चली तो गई हो 

लेकिन 

अपनी खुशबू यहीं छोड़ गई हो

मेरे पास.


8.


सुनो 

पता है 

आज मेरे सपने में 

कौन आया?


अरे बाबा तुम नहीं

भोले बाबा.


वे कह रहे थे 

मेरे से पहले तुम 

'राम' का नाम लिया करो

बस ये कहकर वे चले.

 

क्यूं आया ऐसा सपना 

मुझे कुछ पता नहीं 

तुम्हें कुछ पता हो 

तो बताना.


9.


सुनो 

आज सपने में 

मैं कहीं अकेला 

उदास-सा बैठा था.


तुम मेरे पीछे से आईं 

और पूछने लगीं 

यूं अकेले क्यों बैठे हो?


मैं चौंका 

तुम्हारी आवाज सुनकर 

पीछे मुड़कर तुम्हें देखा 

बस एकटक देखता रहा 

और फिर 

रो पड़ा. 


ऐसे-जैसे कोई बच्चा 

जब तकलीफ में होता है तो 

मां को देखकर रो पड़ता है.


10.


'सुनो'

'हां, आई.' 

आखिर बार 

कब कहे गए थे 

ये तीन शब्द 

हम दोनों के बीच 

कुछ याद है तुम्हें!


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