रात के एक बजे, एक आदमी कार से उतर कर, पार्किंग के 10 रुपये के लिए, पार्किंग वाले से पुलिस वाला होने का रोब देखाकर तू तू मैं मैं करता हुआ बिना पैसे दिए शान से चला जाता हैं।.............. रात के डेढ़ बजे, उस जगह से चंद कदम दूर एक आदमी आमलेट दो रुपये महँगा होने की वजह से भूख का गला दबा कर चुपचाप चला गया ........... लगभग पौने दो बजे, फिर वही आदमी सिगरेट के लिए यही आता है और सिगरेट लेकर आमलेट वाले के हाथ पर सिक्के रख देता है, आमलेट वाला एक रुपये और माँगता है वह आदमी एक रुपये की जगह सिगरेट ही उसके हाथ पर रख देता है और अपनी तलब को दफनाकर अपने मरीज के पास लौट जाता है.............आज पहली बार लगा कि सिगरेट पीनी ........ ढाई बजे कुछ आदमी बहस करते हुए, धर्मो की लड़ाई में उलझे हैं। पुराने जख़्मों को कुरेद कर अपनी अपनी बातों को सही ठहरा रहे हैं और चीजों का बँटवारा करते हुए ये..... तुम्हारी, ये..... उनकी, ये..... हमारी ............ रात को काट रहे है ......... चार बजे, एक आदमी मृत भाई की लाश के पास पत्थर की मूर्ति सा खड़ा है। पैसे नही है घर ले जाने को ...... पास से गुजरता एक आदमी वजह पूछता है और फिर सारा इंतजाम कर अपनी दिल की मरीज माँ के पास चला जाता है।.......... कभी कभी रातें इतनी लम्बी क्यों हो जाती है?...................पाँच बजे एक परिवार रो रहा है पास खड़े आदमी का मोबाईल बज उठता है 'हट जा ताऊ पाछे ने' ....... दौलत से मोबाईल खरीद लिया पर उसके रखने का शिष्टाचार नही खरीद सका।..................... ( निंदा जी से माफी माँगते हुए) "आओ दोस्तों एक ऐसा भी धर्म लाया जाए जिसमें जिदंगी की लड़ाई में हाँफते इंसानो का होंसला बढ़ाया जाए।"....................
दिल हो तो धरती माँ जैसा, प्यार दे सबको एक बराबर
भले बुरे सब माँ के जाये, फूल और काँटा एक बराबर
मिट्टी में जो बीज पनपता, धरती के लिए एक बराबर
कोख न हिंदू, कोख न मुसलिम, जीवन बख़्शे एक बराबर।
और हाँ कल भगत सिंह की शहादत का दिन था उनकी कुर्बानी को सलाम करते हुए उनकी याद में उन्हीं का शेर।
हवा में रहेगी मेरे ख़्याल की बिजली,
ये मुश्ते-ख़ाक है फानी, रहे न रहे।
भगत सिंह
नोट- यह पोस्ट अपने अनदेखे अनजाने( वैसे थोड़ा देखा, थोड़ा जाना भी है पर थोड़ा ही, पर मुलाकात नही हुई आजतक) दोस्त के लिए। ताऊ की पहेली तो रोज शनिवार को आती है पर यह छौक्कर की पहेली आज के लिए है बस, आपका बताना है वो दोस्त कौन है? सही जवाब देने वाले को ईनाम दिया जाएगा " प्यार भरा शुक्रिया" और हाँ ऊपर दी गई रचना मेरे गुरु श्री चरणदास सिंधू जी के नाटक " किस्सा पंडित कालू कुम्हार" से हैं जोकि "वाणी प्रकाशन" से छपा है।