जे सुशील की किताब ‘जेएनयू अनंत जेएनयू कथा अनंता’ एक किताब ही नहीं बल्कि जेएनयू के अनगिनत किस्सों का एक दस्तावेज है. इस दस्तावेज में दर्ज किस्सों को आप पढ़ते ही नहीं बल्कि उन किस्सों की लहरों के साथ आप बहने लग जाते हैं या यूं कहें कि कई बार उन्हें जीने से लग जाते हैं. चाहे आप जेएनयू के छात्र रहे हों. या फिर उसके छात्र ना रहे हों. जेएनयू को कभी देखा हो या उसे नहीं देखा हो. बस आप इन किस्सों के साथ-साथ बहते चले जाते हैं. बहते-बहते कब ‘पार्थसारथी पहाड़ियां’ आ जाती हैं पता ही नहीं चलता. आप इन पहाड़ियों के पेड़ों पर बैठी जानी-अनजानी रंग-बिरंगी चिड़ियों की चहचहाहट को सुनने लग जाते हैं. उन्हें पहचाने की कोशिश करने लग जाते हैं. फिर थोड़ी देर बाद कहीं थोड़ी दूर किसी एक कोने में नाचते मोर देखने लग जाते हैं. कहीं-कहीं इन पहाड़ियों पर आपको बंदर हाय-हेल्लो करते भी मिल जाते हैं. जब आपको इन बंदरों के ‘हाय हेल्लो’ से डर लगने लगता है तो आप किसी सड़क पर निकले मार्च में लगे ‘मार्च ऑन’ के नारे को कुछ और ही समझकर ठहाकों पर ठहाके लगाने लग जाते हैं. कभी ‘खुल’ गए छात्रों के किस्से सुनकर अचंभित होते हुए ‘गर्मी में आग तापने लग जाते हैं’. या फिर कभी ‘आप अखबार को पानी में भीगोकर पढ़ने लग जाते हैं’. कभी कहीं ‘एलियन’ शब्द सुनकर चौंक जाते हैं. और सोच में पड़ जाते हैं कि यार जेएनयू में ‘एलियन’! ( इस किताब को पढेंगे तो ‘एलियन’ भी मिल जाएंगे. हैरान ना हो दोस्त!!) और फिर आप एलियन’ वाली बात को दरकिनार कर ‘चांदनी रात’ में थोड़ा-सा रूमानी होने निकल जाते हैं. वहां किसी के मुंह से निकले इन शब्दों में कि ‘जो मजा प्रेम का प्रक्रति में है वो कमरे में कहां.’ यह बात पढ़-सुनकर आप सहमति में धीरे से अपना सिर हिलाते हैं. और एक पल के लिए अपने प्रेम को भी याद करने लग जाते हैं. और पुराने दिनों के ख्यालों में खो से जाते हैं! अभी आप अपने पुराने ख्यालों में खोए ही रहते हैं कि किताब झट से आपको ‘पहला झटका’ देती है, फिर ‘दूसरा झटका’ देती है, ‘तीसरे झटके’ के बाद ‘चौथा झटका भी देती है. ये झटके ‘प्लेन’ या भूकंप आदि के नहीं होते हैं. ये झटके ‘अंग्रेजी’ के’, ‘चाय के’, और ‘सिगरेट के’ होते हैं. और इन झटकों के बाद आपके अंदर के आत्मविश्वास को बीज, खाद, पानी मिल जाता है. आत्मविश्वास से भरे आप फिर गुरुओं के संस्मरण पढ़ने लगते हैं. फिर चाहे वे ‘पुष्पेश पंत सर’ हों, ‘पुरुषोतम अग्रवाल सर’ हों, ‘निवेदिता मेनन मैडम’ हों, या फिर ‘चिनाय सर’ हों. वे कैसे छात्रों को ‘सही रास्ते’ दिखाते हैं. वे कैसे छात्रों का ‘हौसला’ बढ़ाते हैं. वे कैसे छात्रों को ‘सवाल करना सीखाते’ हैं. वे कैसे अपनी गलती मानते हुए छात्रों को उस गलती के बारे में बताते हैं. और वे कैसे जीवन में ‘सही फैसले लेना सीखते’ हैं. आप यह सब जान जाते हैं. मतलब आप ‘जेएनयू’ को पहचान जाते हैं.
बाकी यह ‘जेएनयू अनंत जेएनयू कथा अनंता’ नामक किताब-विताब किस्से, संस्मरण ही नहीं सुनाती बल्कि ‘जेएनयू’ के इतिहास के बारे में काफी कुछ कह जाती हैं. जेएनयू’ कब बना? कैसे बना? यह किताब इस संबंध में एक से एक नई जानकारी दे जाती है. मसलन 'फिक्की ऑडिटोरियम' के पीछे ‘गोमती हाउस’ की कैंटीन, जिसमें मैंने खुद काफी समय तक खाना खाया है, क्योंकि वो थोड़ा सस्ता होता था. वहां शुरू में इस यूनिवर्सिटी का कैंपस हुआ करता था. जब यह यूनिवर्सिटी शुरू हुई थी. और यह ‘गोमती हाउस’ आज भी अपने इतिहास के साथ वहां मौजूद है. जेएनयू की प्रवेश परीक्षा कितनी भाषाओं में दी जा सकती है इसका भी जवाब आपको इस किताब में मिल जाएगा. जेएनयू के छात्रावास के नाम किन-किन नदियों पर हैं. इस बात का जिक्र भी यह किताब करती है. ‘PIG शब्द’ का एक नया अर्थ इस किताब में मिल जाता है. यह किताब जेएनयू की ‘ढाबा संस्कृति’ यानि ‘गंगा ढाबा’ के बारे में भी बताती है. यह किताब यहाँ के छात्र चुनाव के बारे में, उनके जोरदार नारों के बारे में भी बताती है. माने यह जेएनयू के बारे में बेहद अच्छी और ज्यादा जानकारी देती है.
आखिर में इस किताब के किस्से, संस्मरण और जानकारी से अलग दो खूबसूरत बातें भी बताता चलूं. पहली कि इस किताब में कई जगह कविता-अकविता का भी इस्तेमाल किया गया है. जिसे पढ़कर सच में दिल खुश हो जाता है. और अगले पेज को पढ़ने से पहले एक बार फिर से उसे पढ़ने को दिल चाहता है! इसलिए इस लंबी कविता-अकविता की सिर्फ चार पंक्तियों को यहां लिखने से अपने को रोक नहीं पा रहा हूं.
‘आप अगर लड़कियों के साथ रिश्तों को बहन बेटी मां से इतर एक इंसान के तौर पर देख पाते हैं तो आप जेएनयू के हैं.
अगर आप सवाल उठा रहे हैं चाहे आप कहीं भी हों.
तो आप निश्चिंत रूप से जेएनयू के ही हैं.’
वहीँ दूसरी खूबसूरत बात ये है कि इस किताब में करीब ग्यारह इलस्ट्रेशन शामिल हैं, जिन्हें ‘मी जे’ ने बनाया है. जोकि बेहद ही खूबसूरत हैं. या यूं कहूं ये इलस्ट्रेशन इस किताब को चार चाँद लगाते हैं तो गलत ना होगा. हर सुंदर इलस्ट्रेशन मनोहर तरीके से किताब की कथाओं का हाथ पकड़े ‘जेएनयू अनंत जेएनयू कथा अनंता’ कह रहे हैं. बल्कि इन इलस्ट्रेशन के साथ इन किस्सों को पढ़कर मुझे ‘एम. एफ हुसैन’ जी की किताब ‘एम. एफ हुसैन की कहानी अपनी ज़ुबानी’ की याद हो आई.
और आखिर में...
‘जेएनयू उनमें ही नहीं बसा जो जेएनयू में पढ़े हैं बल्कि उनमें भी बसा हुआ जो उसे प्यार करते हैं.’
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