Wednesday, June 9, 2021

मोहन राकेश और उनके किस्से, भाग-2

 
भारतीय डेलीगेशन का अपना लीडर चुना जा रहा है। कोई साहब कहते है‌- मिनिस्ट्री की राय है कि अमुक को चुना जाये। वह अमुक अभी अनूस्थित है। आने वाला है। मोहन राकेश भन्नाता हुआ सिगरेट का पैकेट निकालता है। उसमें सिगरेट नहीं है। एक क्षण वह सिगरेट के लिए झुंझलाता है, फिर वहीं से बहुत ऊंची आवाज में नाराजी से बोलता है:"अगर सरकार ही सब तय करेगी तो हम यहां किसलिए है? हम जो लीडर चुनेगे वह लीडर होगा। अगर इस तरह सरकार के डिक्टेटस माने जायेगे तो इसके विरोध में वाकआउट करता हूँ" मैं उसे हाथ के दवाब समझाकर बैठा लेता हूँ। धीरे से कहता हूँ " सिगरेट लाने के लिए वाकआउट करने की जरुरत नहीं हैं। वह यों भी आ सकती हैं।"
वह हँस देता है- "तू नस पकड़ लेता है, पर यहां दूसरा मसला है।"
['अपनी निगाह' नामक किताब में- कमलेश्वर]

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