कुछ दोस्त साथ छूटते ही हाथ छोड़कर निकल जाते हैं. अनेक दोस्त साथ छूटने पर बीच-बीच में संपर्क बनाए रहते हैं. लेकिन कुछ दोस्त ऐसे भी होते हैं जिनका साथ भी छूट जाता है, हाथ भी छूट जाता है और संपर्क भी टूट जाता है परंतु वे याद हर दिन आते हैं. कमबख्त जिस दिन याद नहीं आते, सपने में चले आते हैं. कुछ तो ऐसा होता है, जिस वजह से वे याद आते हैं. ऐसा ही 'कुछ' था उसमें जो वो इतना याद आता है. अब आप कहेंगे कि भई तेरे जैसा होगा. इसलिए याद आ जाता है. अरे भई नहीं. वो मेरे जैसा नहीं था. वो तो मेरा उल्टा था. वो धरती था तो मैं आसमान. वो दिन था तो मैं रात. भारी असमानताओं के बाद भी हम दोस्त बने रहे. सालों साथ-साथ हाथ पकड़कर दोस्ती की राह पर चलते रहे. हम दोनों की मुलाकात स्कूल में हुई थी. यह मुझे शुरू में पसंद नहीं आया था. दरअसल बदमाशी का शौक पाले थे जनाब. जैसा उस उम्र में कुछ लड़कों के साथ हो जाता है. हाथ में कड़ा या उंगली में नुकली अंगूठी इसलिए नहीं पहनते थे कि इसका इन्हें शौक था बल्कि इसलिए कि किसी से लड़ाई हो जाए तो उसका थोबड़ा बिगाड़ने के काम में आ जाए. एक हम थे लड़ाई-वड़ाई से कोसों दूर लेकिन ना जाने फिर ऐसा क्या कुछ हुआ कि दोस्ती हो गई. दोस्ती भी ऐसी कि स्कूल में बच्चे हमारी दोस्ती की मिशाले देते थे. कोई जय-वीरू कहता था कोई कुछ और. एक बार तो क्लास के एक लड़के ने कहा, 'यार ये तुम्हारी दोस्ती तो ठीक है. लेकिन तुम दोनों को एक साथ पेशाब कैसे आ जाता है? एक साथ प्यास कैसे लग जाती. एक साथ भूख कैसे लग जाती है? दरअसल कुछ ऐसा नहीं था बस एक दूसरे का साथ देना था. जब दो इंसान एक दूसरे का साथ देने लगते हैं तो एक पुल-सा बन जाता है, फिर चाहे उस पुल को दोस्ती का नाम दे लो, या किसी रिश्ते का.
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