किसी को फसल के अच्छे दाम की तलाश,किसी को काम की तलाश,किसी को प्यार की तलाश, किसी को शांति की तलाश, किसी को खिलौनों की तलाश,किसी को कहानी की तलाश,किसी को प्रेमिका की तलाश, किसी को प्रेमी की तलाश,................ तलाश ही जीवन है
Friday, November 18, 2022
सर कविता क्या होती? शेक्सपीयर से पूछकर बताऊंगा!
Saturday, November 5, 2022
चलती बस में दिल्लीवालों को चढ़ने की आदत ना हो. ऐसा हो नहीं सकता- मनोज पाहवा
खैर एक बार छुट्टी से पहले स्कूल को बंक करके हम तीनों घर जा रहे थे. हमेशा की तरह तीनों चढ़ती बस में ही चढ़े. ये याद नहीं कि बस 234 नंबर थी या फिर कोई और. लेकिन ये याद है वजीराबाद के आने से पहले हम दो ( मैं और सिख यार.) में शर्त लग गई कि बस को बिना छुए जो घर के स्टॉप तक जाएगा वो जीत जाएगा. डीटीसी बस खाली-सी थी. बस फिर क्या था. मैं पिछले गेट से थोड़ा पीछे खड़ा हो गया. तब डीटीसी की कुछ बसों में पीछे सीट नहीं हुआ करती थीं. पिछ्ला हिस्सा खाली हुआ करता था. सरदार जी मेरे से आगे. जाट यार अंपायर बने हुए थे. जैसे ही बस ने वजीराबाद पुल क्रॉस किया वैसे ही पता नहीं क्या हुआ. बस ड्राईवर ने एकदम से ब्रेक लगा दिए. और मैं बस के अंदर आगे-पीछे करते हुए ऐसे गिरा कि बस के सभी लोग हंसने लगे थे. मेरी सारी हेकड़ी निकल गई थी. और चेहरे पर 12 बज गए थे.
[ पाहवा जी की बात सुनकर ये वाकया याद हो आया. सोचा याद के लिए लिख दूं. बाकी फोटो गूगल से ली गई है.]