भीड़ से भरे बस स्टेड़ पर, भीड़ से दूर बस का इंतजार करता कोई लड़का,
हो या ना हो वो मेरा दोस्त ही होगा।
रुकी बस में ना चढ़कर, चलती हुई बस में ही चढ़ता हुआ कोई लड़का
हो या ना हो वो मेरा दोस्त ही होगा।
बस की खाली सीटें होने के बावजूद पीछे खिड़की के पास खड़ा कोई लड़का,
हो या ना हो वो मेरा दोस्त ही होगा।
सड़क की चढ़ाई पर रिक्शे से उतर कर, पीछे से धक्का लगाता कोई लड़का,
हो या ना हो वो मेरा दोस्त ही होगा।
ज़िंदगी की भूलभुलैया सी गलियों में अगर कहीं टकरा जाए तो उसे कहना
"बुढ़िया माई की गली के नुक्कड़ पर एक छोकरा उसका इंतजार करता है।"
ये दोस्त दो साल तक साथ रहा मेरे रुपनगर के स्कूल में। नया स्कूल था, नए टीचर थे, नए साथी थे। पर ये नया नही लगता था। ऐसा लगता था जैसे इसे पहले कहीं देखा है। ना जाने कभी किसी को देखकर लगता है कि इससे तो पिछले जन्म का कोई रिश्ता है। पहली मुलाकात में ही दोस्ती हो गई। जैसे पहली नजर में प्यार होता है। पता लगा ये भी 234 नम्बर बस से आता है। बस फिर क्या था टाईम फ़िक्स कर लिया एक बस स्टेड़ पर मिलने का। जैसे कोई प्यार करने वाले लड़का लड़की मिलने का टाईम फ़िक्स करते है। साथ-साथ जाते थे साथ-साथ आते थे। तब रेड लाईन बसें हुआ करती थी। और उनमें लड़ाकू छात्रों का ( आप चाहे तो पढ़ाकू भी कह सकते है) स्टाफ़ चला करता था। और ये महानुभाव टिकट लिया करते थे। हम इन्हें डरपोक कहा करते थे। पर इसे डरपोक बनने रहना ही पसंद था। पर किसी दिन कडंक्टर की बदतमीजी देख लेता था उस दिन पता नही क्यों स्टाफ़ बोला करता था। अगर कडंक्टर से बहस नही हुई तो जानबूझकर गेट पर जाकर खड़ा हो जाता था। तब कंड्क्टर उससे जरुर लड़ता था क्योंकि उसकी सवारियों को दिक्कत होती थी। तब कडंक्टर से खूब लड़ता था। समझ नही आता था कि वो गाँधी का प्रशंसक था या भगत सिंह का।
एक साउथ इंडियन टीचर थे गणित के। बस पढ़ाने से मतलब, बैशक चार छात्र पढे या तीस। हमारी क्लास में दो गेट हुआ करते थे। एक आगे और एक पीछे। सर ब्लैक बोर्ड पर सवाल हल कर रहे होते थे, और अधिकतर बच्चें पीछे के गेट से बाहर निकल रहे होते थे। बस चार पाँच बच्चे रह जाते थे पढाकू टाइप के, उनमें से एक ये लड़ाकू भी होता था टेन ठीठा बराबर होता है साईन ठीठा / कोस ठीठा, पढ़ते हुए। और हम कमला नगर की मार्किट में घूम रहे होते थे। पर कभी खुद मुझे उठाकर कहता यार मन नही लग रहा चल कमला नगर चलते है छोले बठूरे खाने। फिर साधु बेला में बैठकर खूब बातें करेंगे। अपना खाना बाहर आकर किसी भिखारी को दे देता था। मैं कई बार मना करता था कि सा.. आज जाट ने( हमारे क्लास टीचर) सख्ती कर रखी है। पता नही उसे सख्ती के दिन ही खुजली क्यों होती थी, स्कूल से भागने की? पर वो जिद्दी था जिद करके ले जाया करता था। मैं कहता यार तू जिद बहुत करता है तो कहता था " जिद करता हूँ तो लगता है कि मैं जीव हूँ नही तो दोस्त निर्जीव सा महसूस करता हूँ।"
सुबह चाहे कितनी ही ठंड हो। माल रोड़ से रुपनगर तक पैदल ही खींच कर ले जाया करता था। दोपहर में जब स्कूल की छुट्टी होती थी तो हम कोशिश करते थे कि स्कूल की छुट्टी से एक पिरिअड़ पहले निकले या फिर आधा घंटा बाद, क्योंकि स्टेड पर बहुत भीड़ हो जाती थी। पर कभी स्कूल की सख़्ती की वजह से छुट्टी के समय पर ही निकलना पड़ता तो मुझे रिक्शे से जाना पड़ता था, वो भी उसकी पसंद का रिक्शे वाले से। वो रिक्शे वाले से ये नही पूछता था कि माल रोड के कितने पैसे लेगा। बल्कि ये पूछता था कि आज कितने कमा लिये अगर कोई कहता कि कमा लिये होगे 30 या 40 चालीस रुपये तो वो उसमें नही जाऐगा। जिसने ज्यादा नही कमाए उसके चेहरे को गौर से देखेगा और बोलेगा "चल माल रोड छोड़ दे।" फिर माल रोड़ पहुँच कर जानबूझकर खुले पैसे नही देगा और चार या पाँच रुपये फ्री में देकर चलता बनेगा। मैं कहता था "सा.. तू मूर्ख है" वो कहता था "सा.. जब दुकान वाला दस की चीज बीस में देता है तो झट से दे आते हो और जब मेहनत करने वाले को ज्यादा मिल जाए तो शोर मचाते हो। फिर थोड़ा चुप रहकर बोलता था "लोग अनजाने में मूर्ख बनते है मैं जानबूझकर मूर्ख बनता हूँ।" "
शैतानी करने में, मैं सोचता था कि मैं ही बादशाह हूँ। पर एक दिन तो वो मेरा ही गुरु निकला। हुआ यूँ था कि एक हमारे उपप्रधानाचार्य थे अग्रवाल जी, जिनको बच्चें अक्सर बाऊ कहते थे। क्योंकि सर इस नाम से चिढ़ते थे। अक्सर बच्चें क्लास में कही भी बाऊ लिख दिया करते थे। वो दाँत पीसकर रह जाते थे। एक दिन क्लास खत्म करते ही सर मेरे से बोले "तुम मेरे कमरे में आओ।" मेरी साँसे रुक गई,दिल धड़कने लगा और सोचने लगा कि बेटा आज गया तू। कमरे में पहुँचा तो वो बोले "एक काम दे रहा हूँ तुम्हें, जरा ये पता करो कि क्लास में कौन लिखता है बाऊ।" तब जाकर साँस में साँस आई। मैंने वापिस आकर बताया कि यारों अब लिखना छोड़ दो बाऊ, सी.बी.आई लगा दी बाऊ ने तुम्हारे पीछे। वो बोला मैं कहता था ना कि फँसोगे एक दिन। सा.. मानते कहाँ हो तुम। फिर हमारे ग्रुप ने फैसला कर लिया कि अब नही लिखेंगे। पर अगले ही दिन क्लास में सर ने खलबली मचा दी यह कहकर कि जिस भी लड़के ने उनके गेट पर "बाऊ" लिखा है। पता चलते ही मैं उसका स्कूल से नाम काट दूँगा। हम अचम्भे में कि कौन हमारा भी गुरु निकल आया। जिसने बाऊ के कमरे के गेट पर ही लिखा दिया। सब टीचरों में चर्चा। छुट्टी में स्टेड जाते हुए धीरे से बोला "सुबह आते ही सबसे पहले यही काम किया था आज यार।" उसके चेहरे पर डर था पर फिर बोला "सा.. मजा बड़े बम फोड़ने में आता है नाकि छोटे बम फोड़ने में।" और अगले हफ्ते एक डायरी और एक पेन ले लाया और कहने लगा "यार बाऊ को गिफ़्ट करने जा रहा हूँ।"
दिल का साफ था। उदार विचारों को अपने दिमाग की टोकरी में रखता था। कुछ चीजें पसंद नही थी उसे। जैसे झूठ, पीठ पीछे बुराई........। जब कभी इन्हीं कारणों से किसी से उसकी लड़ाई हो जाती तो वह भी लड़ पड़ता था। लड़ता ऐसे था जैसे बस आज के बाद उसका और उस लड़के का रिश्ता खत्म हो जाऐगा। पर अगले ही दिन वह उस लड़के को Cash Account , Trial Balance, Balance Sheet आदि समझा रहा होता था। या फिर मजे से गप्पे लडा रहा होता था। मैं कहता "कल तो वो तेरे से लड़ रहा था और आज तू उसे पढ़ा रहा है।" वो कहता था " कल उसने अपनी समझ से अपना काम किया, आज मैं अपनी समझ से अपना काम रहा हूँ।" और जाते जाते एक बात जो आज तक मेरी समझ नही आई अगर आपको समझ आए तो लिख देना और नहीं आई तो ये भी पूछना उससे अगर कभी टकरा जाए किसी रास्ते, कि उसकी अधिकतर कापियों के दूसरे पेज पर ये लाइन क्यों लिखी होती थी?
"जा इंसान तेरी उम्मीद तेरा इंतजार करती हैं।"
27 comments:
""जा इंसान तेरी उम्मीद तेरा इंतजार करती हैं।" "
Ati sundar..
Sach yahi to sach hai...
~Jayant
क्योंकि उम्मीद से ही जीवन है ....उम्मीद से ही जिंदगी आगे चलती है ....उम्मीद से ही रिश्ते आगे बढ़ते हैं ....उम्मीद से ही टूटे हुए, बिखरे हुए को हौसला मिलता है ...और वो आगे बढ़ पाता है ....हाँ ये उम्मीद ही तो है ...
आपने अपने दोस्त का और बीते हुए दिनों का बहुत सजीव वर्णन किया है ...दिल उन पुरानी यादों में खो सा गया
स्कूल के बाद बिछूडे बहुत से दोस्तो की याद ताज़ा कर दी आपने।वो स्कूल से भागना वो दोस्तो की ज़िद,वो मास्टरो की सख्ती और न जाने क्या-क्या………… सालो पिछे पहुंचा दिया आपने।
ek anokhe hi shakhs se milwa diya aaj to aapne.......magar phir bhi laga jaise wo bhi ummeed par hi jeeta hai kyunki ummeed par hi to duniya kayam hai.......uski soch ,uske vichar sab bahut hi utkrist the jo aaj dhoondhne se bhi na milein shyad.
milega vo, to ye post padha dungi aur kahungi ki tum bahut achchhe ho aur ek doosara bahut achchha insaan tumhari saari achchhaiyo ko man me samete tumhara intazaar kar raha hai., is liye ye jaan lo ki tum bahut khushkismat bhi ho ki tumhari achchhaiyo ko aankane vala ek dil hai duniya me...! jaao..us se fir se gale mil lo us bus stop ke mod par, jahan pahale milte the, vo tumhara intazaar kar raha hai, shayad vahi tumhari ummeed bhi ho...!
सही बात है कि कुछ लोग जीवन पर्यंत साथ रहते हैं.
जा इंसान तेरी उम्मीद तेरा इंतजार करती हैं।"
सच है ....हमारे आस पास खेले बढे कितने विलक्षण चरित्र है....जिनकी महत्ता हमें उनसे दूर रहने के बाद अचानक बरसो बाद पता लगती है....मस्त मौजी किस्म के ऐसे लोग .....वाकई न जाने कितने लोगो के लिए चलता फिरता यादो का पिटारा है
सच ही आपने आस पास धूल जमी किताब के कुछ प्रष्ट खोल दिए ............सहज रूप से प्रस्तुति कमाल की है..........बीती हुयी छोटी छोटी यादों की आस पास बुनी लाजवाब पोस्ट
बहुत पीछे पहुंच दिया पुरानी यादों में.
रामराम.
बहुत पीछे पहुंच दिया पुरानी यादों में.
रामराम.
बहुत ही खूबसूरत एहसास लिखे हैं आपने...
वैसे इसमें एक पॉइंट है जो मुझे भी पसंद है और में लोगो के लिए वो करता हूँ...
बहुत सुंदर
मीत
तो आप भी शैतानियों के बादशाह थे!
और आप को मिला आप का गुरु!
संस्मरण पढ़ कर आनंद आया और साथ ही अंत में लिखी यह पंक्ति-जा इंसान तेरी उम्मीद तेरा इंतजार करती हैं।"
जीवन का एक सच बता गयी..
न जाने कितन अकुछ है यादों में संजोये रखने को..
बहुत खूब.. शब्दों का बेहतरी से इस्तेमाल किया आपने..
are waah SUSHILJI,
mazaa aagaya bhai, kya likhaa he, gadhy likhne ki bhi apni ek kalaa hoti he, shbdo ko silsilevaar rakhnaa hota he, knhi kram naa toote, vichaar jab tivra aate he to amooman shbdo ka yahi silsilaa toot jaayaa kartaa he, kintu aapne bakhoobi nibhaya, dharapravaah lekhan aour uskaa ant bhi itnaa satik ki bs dil se yahi nikltaa he ki WAAH.
darasal gadhyo ko padhhne vaale usme kho jaanaa chahte he, hota yeh he ki aajkal aadhe adhure gadhy padhhe jaate he kaaran bhi yahi ki paathko ko shbdo ke jaal me ese uljhaao ki vo poora padhhkar hi dam le, prarmbh jis gati se aapne kiyaa vo gati ant tak bani rahi/ aour ek ke baad ek jo bhi padaav aayaa vo agle padaav ko bhi padhhne ke liye baadhya kartaa gayaa...yahi saflta he is tarah ke lekhn ki,
badhaai.
"जा इंसान तेरी उम्मीद तेरा इंतजार करती हैं।"
Sach hai..
उनमें से एक ये लड़ाकू भी होता था टेन ठीठा बराबर होता है साईन ठीठा / कोस ठीठा, पढ़ते हुए। और हम कमला नगर की मार्किट में घूम रहे होते थे।
हूँ....तो जनाब काफी शरारती रह चुके हैं.......? गाँधी तो ऐसे नहीं थे.....??!!
हम अचम्भे में कि कौन हमारा भी गुरु निकल आया। जिसने बाऊ के कमरे के गेट पर ही लिखा दिया। सब टीचरों में चर्चा। छुट्टी में स्टेड जाते हुए धीरे से बोला "सुबह आते ही सबसे पहले यही काम किया था आज यार।" उसके चेहरे पर डर था पर फिर बोला "सा.. मजा बड़े बम फोड़ने में आता है नाकि छोटे बम फोड़ने में।
वाह...वाह...सुशीलजी ...आप तो इस कला में भी माहिर हैं.....!!
बहुत अच्छी पोस्ट...बधाई ....!!
"जा इंसान तेरी उम्मीद तेरा इंतजार करती हैं।"
सही बात है.
शब्दों का बेहतरी से इस्तेमाल किया आपने..और यादों को न केवल इतना पठनीय बना दिया, बल्कि मज़ा भी दिया.
बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जिन्दादिली इसे ही कहते है शायद.. इस बार तो कमल कर दिया आपने..
यारी है ईमान मेरा यार मेरी जिंदगी....
जाने कितनी स्मृतियां एकदम से उमड़ पड़ीं इस अद्भुत संस्मरण पढ़कर...
जा इंसान तेरी उम्मीद तेरा इंतजार करती हैं।" ... बेहद सकरात्मक सोच है यह ..दोस्ती की बेहतरीन यादें हैं यह ..बेहद पसंद आई आपकी यह पोस्ट ...
susheel ji
aapka aaj ka lekh padh kar sabse pahle maine apne kuch puranne doston ke numbers khoje aur unhe phone kiya .. unki khushi aur beete dino ki yaaden mujhe kareeb 2 ghante se mahka rahai hai ..
yaar, is baar to dil ko dhadkna se rukwa diya aur zindagi se mila diya ..
jiyo yaar
aapke is lekh ke liye , main aapki lekhni ko salaam karta hoon.
dhanyawad
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
पुराने दिनों की याद आ गई...
मेरे हिसाब से ये आपकी अब तक की सबसे बेहतरीन पोस्ट है...
bahut sundar......
मुझे पता था आपकी तरफ से कुछ ऐसी ही टिप्पणी आएगी ....आपने फिर आँखें नम कर दीं ......!!
ऐसे दोस्त किस्मत वालों को ही नसीब हुआ करते हैं...बहुत दिलचस्प वाकये सुनाये हैं आपने...
नीरज
बेहतरीन... बस्स....
सुशील भाई
जबरदस्त पोस्ट! मैं आपके मित्र का मुरीद हो गया और आपने जिन बारिकियों के साथ उन्हें याद किया है वो भी काबिल-ए-तारीफ़ है.
आपका शुक्रिया
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