समाजवाद बबुआ धीरे धीरे आई
समाजवाद उनके धीरे धीरे आई
हाथी से आई, घोड़ा से आई
अंग्रेज़ी बाजा बजाई, समाजवाद बबुआ.....
आंधी से आई, गांधी से आई
बिरला के घर में, समाजवाद बबुआ.....
नोटवा से आई, वोटवा से आई
कुर्सी के बदली हो जाई, समाजवाद बबुआ.....
कांग्रेस से आई, जनता से आई
झंड़ा के बदली हो आई, समाजवाद बबुआ.....
रुबल से आई, डालर से आई
देसवा के बान्हे धराई, समाजवाद बबुआ.....
लाठी से आई, गोली से आई
लेकिन अंहिसा कहाई, समाजवाद बबुआ.....
मंहगी ले आई, गरीबी ले आई
केतनो मजूर कमाई, समाजवाद बबुआ.....
छुटवा के छुटहन , बड़्वा के बड़हन
हिस्सा बराबर लगाई, समाजवाद बबुआ.....
परसो ले आई, बरसो ले आई
हरदब अकासे तकाई, समाजवाद बबुआ.....
धीरे धीरे आई, चुप्पे चुप्पे आई
अंखियन पे पर्दा लगाई
समाजवाद बबुआ धीरे धीरे आई ................
गोरख पाण्डेय
कल कमाल खान जी ने एक स्टोरी में गोरख जी की लिखी दो लाईन कहीं तो एकदम मुझे उनकी लिखी पूरी रचना याद हो आई। फिर मन किया क्यों ना आप साथियों के साथ भी बांट दूँ। आप बताए कैसी लगी। वैसे अब तक जितना भी गोरख पाण्डेय जी का लिखा पढा है सब दिल को छुआ है। इसलिए उनको दिल से शुक्रिया।
24 comments:
बेहतरीन रचना पढ़वाई आपने ...पढ़वाने के लिए शुक्रिया
गोरख पाण्डे जी की अद्भुत रचना प्रस्तुत करने का आभार.
मुलायम ओर अमर सिंह का भी समाजवाद है.....
बेहद सामयीक और सटीक रचना लग रही है आज के परिपेक्ष्य में. आभार आपका पढवाने के लिये.
रामराम.
गोरख पांडे की इस कविता में आशावादिता थी. निराश होकर पिछले साल ज्योति बासु ने जो कुछ कहा था उसका सार था कि
समाजवाद बबुआ अब ना आई
गोरख पाण्डेय जी की यह रचना भी दिल को छु गयी...........
आभार है आपका
बहुत सच्ची रचना है...
इस से परिचय करने के लिए ढेर सारा शुक्रिया....
मीत
अच्छी तरह से आपने रचना के माध्यम से परिचय करवाया । धन्यवाद
कवि ने इस रचना में समाजवाद का खूब परिचय दिया.
लाठी से आई, गोली से आई
लेकिन अंहिसा कहाई, समाजवाद बबुआ.....
सही कहते हैं !
बहुत बढ़िया व्यंग्य रचना है.
श्री गोरख पाण्डेय जी की यह रचना आप ने पढ़वाई आप को भी धन्यवाद
आपके दिल से हमारे दिल तक ट्रांसफर हुआ भाव क..गोरख जी को पढ़वाने का आभार.. आपमे एक अच्छे पाठक के सभी गुण है.. सीखता जा रहा हू आपसे..
susheel ji , bahut acchi rachna .. man ko choo gayi ..
aapko dil se badhai ..
सुन्दर सामयिक रचना है ..इसको पढ़वाने के लिए आभार
समाजवाद को समर्पित एक सुंदर कविता। पर यह समाज धीरे धीरे ही सही, आ तो जाता।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
सचमुच बेहतरीन.....एकदम सही और समसामयिक रचना है....इतनी सुन्दर रचना पढने का सुअवसर देने हेतु आभार...
यह बेहतरीन रचना है। समाजवाद के लिए नाटक करने वाले लोगों को नंगा करने के लिए।
wah sushil bhai,achcha laga padh kar, gorakhji ko pahli baar padha he mene aour samazvaad ki jo badhiya udaai he vakai mazedaar he...
मुक्तिबोध की यह कविता पढ़वाने के लिए शुक्रिया।
रोशन भाई, ज्योति बसु और उनकी पार्टी का तो समाजवाद कब का आ गया है। गलतफहमी बनाए रखने के लिए बीच में मगरमच्छी आंसू बहा देते हैं। पर कहीं हम तो निराश नहीं हैं ना?
सामयिक रचना...
अब तो डंके की चोट पे समाजवाद का नारा बुलन्द करने वाले राज बब्बर सरीखे पंछी भी उसका घोंसला छोड़ काँग्रेसी उड़ान उड़ने लगे हैँ।
aaj ke halat par teekha kataksh hai..........bahut badhiya.
छुटवा के छुटहन , बड़्वा के बड़हन
हिस्सा बराबर लगाई, समाजवाद बबुआ.....
सुशिल जी ,
कुश जी ने सही कहा आपमें एक अच्छे पाठक सभी गुण हैं हर रचना को इतनी बारीकी से पढना ...समझना ...हर किसी के बस की बात नहीं ...नमन है आपको.....!!
जोरदार व्यंग्य.
छुअन दिल की
गहरे तक छू आई
गोरख पांडेय की
कविता याद दिलाने
के लिए दिली बधाई।
आपके सौजन्य से गोरख पांडेय की यह कालजयी रचना अरसे बाद एक बार फिर पढ़ी। आभार आपका।
रुबल से आई, डालर से आई
देसवा के बान्हे धराई, समाजवाद बबुआ.....
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