Saturday, March 14, 2009

मुझे किस किस ने बिगाड़ा और जीवन संवारा।



मैं तो प्रतिदिन यही अनुभव करता हूँ कि मेरे भीतरी और बाहरी जीवन के निर्माण में कितने अगणित व्यक्तियों के श्रम और कृपा का हाथ रहा हैं और इस अनूभूति से उददीत मेरा अंतक:करण कितना छटपटाता है कि मैं कम से कम इतना तो दुनिया को दे संकू जितना मैंने उससे अभी तक लिया है।  - आंइस्टीन 
अभी 8 मार्च को कंचन जी ने एक पोस्ट की थी। जिसे पढ़कर आंइस्टीन जी का यह कथन याद आ गया। कंचन जी ने उस पोस्ट में पूछा था कि " उन तीन पुरुष और तीन महिलाओं का नाम बताईए जिनका आपके व्यक्तित्व निर्माण में बहुत बड़ा हाथ है।" वैसे ये सच में ही बड़ा मुश्किल काम हैं। पर ज्यादा गहराई में ना जाकर बस चंद पल सोचकर जो दिमाग में आया वही लिख रहा हूँ।  

सबसे पहले बेझिक पहला नाम ले सकता हूँ, वो हैं मेरे गुरु चरण दास सिधू जी । जिनसे मैं बहुत प्रभावित रहा हूँ। जिनके बारें में जितना लिखा जाए उतना कम है। पर यहाँ एक चीज का जिक्र करुँग़ा। उन्होंने अपनी एक किताब में कहीं कहा था कि " अगर सैल्फ ऐक्सप्रेशन न मिले, घुटन अंदर से न निकले, दिल की गांठे न खुलें, तो लड़के लड़कियाँ नशे पीने लग जाते हैं। क़ातिल बन जाते हैं। पगला जाते हैं। कट्टरपंथी मौत के फरिशते बन जाते हैं। इसका एक ही इलाज है: आत्म अभिव्यक्ति।" इसी आत्म अभिव्यक्ति की लौ इन्होंने ही जगाई थी मेरे अंदर। दिल में बहुत गुबार होते थे जिन्हें मैं नही निकाल पाता था। लोगों ने मजाक बनाया मेरा। एक यही थे जिन्होंने लिखने के लिए प्रोत्साहित किया। शायद अवसाद में जाने से बचा लिया। उनका सीधा, सादा, नम्र जीवन जीना मुझे हमेशा आकर्षित करता रहा है। आज इनका जन्मदिन भी हैं। और आज के ही दिन मैं इनसे मिला भी था। आज के दिन इस पोस्ट को करने का कारण भी। दूसरा नाम मैं अपने पिता जी का लूँगा। जिन्होंने जिदंगी में लड़ना सिखाया। मुसीबत में भी जीने का ज़ज़्बा बनाए रखना सिखाया। जब भी कभी हमारे घर में कोई मुसीबत आई हमेशा पिता जी ने कहा कि " हाथ नहीं गड़े जमीन में अभी मेरे।" तीसरा नाम मैं एक लड़के का लूँगा जिसका मुझे नाम भी नही पता। पर कुछ पल के लिए आया था मेरी जिदंगी में। वह मुझे एक दिन लाईब्रेरी के बाहर मिला। एक फटी सी कमीज पहने। मेरे पास आकर एक रुपया माँगने लगा शायद उसे बहुत भूख लगी थी और मैंने उसे दो रुपये का सिक्का दे दिया। वह भागकर ब्रेडपीस ले आया और एक रुपया मेरी हथेली पर रखकर, मुझे ईमानदारी का पाठ पढ़ा गया।  वह मुझे बता गया कि भुखमरी और गरीबी में भी ईमानदारी नही मरती। और हम हैं कि ईमानदारी का बस ढोल ही पीटते रहते हैं। उस लड़के पर एक पोस्ट की थी एक सात आठ साल का लड़का और भूख   के नाम से। 

पहला नाम मैं यहाँ अपनी मम्मी जी का लूँगा। जिन्होंने सबसे प्यार करना सिखाया। गिले शिकवे चंद पल के लिए होने चाहिए। आखिर एक इंसान ही तो एक इंसान के काम आता है। "कोई तुम्हारें लिए क्या करता है यह मह्त्वपूर्ण नही हैं बल्कि तुम क्या करते किसी के लिए यह महत्वपूर्ण।" दूसरा नाम एक लड़की का। इस लड़की से भी एक ही बार मिला। उन्होंने बात ही बात में एक बात कही थी कि " अगर भगवान या इंसान तुम्हें दुख देकर अंचभित करें तो तुम भी उस दुख में खुश रह कर उसे अंचभित कर दो। मतलब हमेशा खुश रहो बस।" तीसरा नाम मैं अपनी बेटी का लूँगा। सुनयना ( यह नाम सिधू सर जी ने रखा था हमारी नैना के लिए) जो मुझे यह सिखाती है कि जो चीज जहाँ से उठाओ उसको वही रखों। यह आदत उसे किसने सीखाई मुझे पता नही पर वह मुझे जरुर सिखाती हैं।  

और जाते जाते सिधू सर जी को जन्मदिन की ढेरों मुबारकबाद और शुभकामनाएं देते हुए उनकी एक रचना जो उन्होंने नौवीं या दसवीं जमात में पढते हुए लिखी थी, आप साथियों के लिए प्रस्तुत करना चाहूँगा।  

उठ जाग अंधेरे में से तू, 
तेरा प्रीतम तेरे दिल बसता। 
नहीं स्वर्ग कोई आसमानों में, 
धरती को स्वर्ग बना, बंदे। 
कर ख़त्म ग़ुलामी, बंदर-बाँट, 
बंदे को रब्ब बना,बंदे। 
तू कामगार ही सिर्जनहार, 
क्यों पत्थरों पंडों में फंसता? 

उठ जाग अंधेरे में से तू, 
तेरा प्रीतम तेरे दिल बसता। 
सब भरम भुलावे छोड़ दे अब, 
तू सीधे रस्ते चल, बंदे। 
रब्ब ढूंढने के ढंग बदल गए, 
रब्ब इक दूजे को कह, बंदे। 
क़ादर क़ुदरत क़ुदरत क़ादर,
हर पीर पैग़ंबर है कहता। 


नोट- ऊपर की गई पोस्ट में पाँच लिंक है हरे रंग में, अगर समय हो तो उस लिंक पर क्लिक करके उस पोस्ट को भी पढ सकते हैं। और अपना अमूल्य कमेंट दे सकते है। शुक्रिया। 









29 comments:

Anonymous said...

रब्ब ढूंढने के ढंग बदल गए,
रब्ब इक दूजे को कह, बंदे।
क़ादर क़ुदरत क़ुदरत क़ादर,
हर पीर पैग़ंबर है कहता।


" जीवन मे कोई कोई न किसी ना किसी मोड़ पर हमे अचानक ऐसी सीख दे जाता है जो जीवन भर काम आती है ...आपने जिन जिन को अपने मार्गदर्शन हेतु आभार प्रकट किया है आपका ये भाव सराहनीय है और उन सब के प्रति आपकी श्रद्धा को दर्शाता है......"

Regards

vijay kumar sappatti said...

priy susheel ji , abhi net khola aur aapki post par nazar gayi . itni dilchasp aur seekh deti hui post thi ki , main aapko dil se dhanywad dena chahta hoon is post ke liye , ye maatr post hi nahi ,balki ek choti si kitaab hai ,jinme likhi gayi neeti-vaakya , kisi bhi insaan ke liye ,uske career aur uske personal life ke liye behad mahatvpoorn ho sakte hai ..

mujhe us ladke ki aur us aldki ki baaton ne bahut prabhavit kiya , main ye bhi kahna chahunga ki aap bade bhaagyashaali hai , ki aapko aise guru mile.. mera bhi unhe pranaam , aur aapke maata-pitaji ko bhi pranaam , ki unhone itne sadgun aapko seekhayen..

rahi baat meri bitiya naina ki .. to betiyaan hi baap ko sudhaarti hai ji ..ha ha

aapka
vijay

कुश said...

गहरे तक उतरती हुई बाते लिखी है आपने.. कंचन जी की पोस्ट के बाद कमोबेश सबका यही हाल हुआ था.. देखते है और कितनी पोस्ट आती है

विवेक सिंह said...

सिधू सर जी को जन्मदिन की ढेरों मुबारकबाद और शुभकामनाएं !

आप एक नरम दिल के मालिक हैं ! बधाई !

रंजू भाटिया said...

हमारी ज़िन्दगी अक्सर मिलने वाले लोगों से अक्सर प्रभावित होती है ..आपने बहुत खुले मन से इसके बारे में लिखा है ...कभी कभी किसी का कहा एक लफ्ज़ भी ज़िन्दगी का नजरिया बदल देता है .. .. सिधू सर जी को जन्मदिन की बधाई ...

ओम आर्य said...

The boy who taught you the lesson of honesty, I salute him and hope that the he could have saved his fire during his journey of life. Thanks.

मीत said...

सबसे पहले गुरु जी को जन्मदिन की ढेरो शुभकामनायें
इस पोस्ट में एक एक बात सही और मार्गदर्शन करती हुयी है...
जीवन में ना जाने कितने ही उतर चढाव आते हैं... जो हारने को मजबूर करते हैं... पर हर हार के बाद जीत जरुर होती है...
अपनी यादें बाँटने के लिए शुक्रिया...
रब्ब ढूंढने के ढंग बदल गए,
रब्ब इक दूजे को कह, बंदे।
मीत

डॉ .अनुराग said...

उस दिन बनारस निकल रहा था जब कंचन की पोस्ट देखी जल्दी में था ओर यो ही कमेन्ट नहीं करना चाहता था इसलिए उस पोस्ट पर कमेन्ट नहीं किया .आज तुम्हारी पोस्ट पढ़ी लगा कंचन का लिखना सार्थक हुआ ..मेरा मानना है की मनुष्य जीवन में बचपन के कुछ पल ओर कुछ लोग बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है आपके जीवन में....आपमें इमानदारी ओर सवेदना कूट कूट कर भरी है जाहिर है ये लोग वाकई अलग होगे....

अनिल कान्त said...

सच में इस जिंदगी में अगर सही जीवन जीने का तरीका अगर कोई सिखा देता है तो वो हमेशा याद रहता है .....और प्रेरणा देने वाले लोगों में गिना जाता है .........आपकी कही हुई बातें दिल तक पहुंची ....आपके गुरु जी को जन्म दिन की बधाई

नीरज मुसाफ़िर said...

सुशील जी,
समझ नहीं आ रहा क्या कमेन्ट करूँ?
आज कंपनी में हाफ डे था तो बैठ गया नेट पर. नहीं तो कल इस पोस्ट को पुरानी समझकर पढता ही नहीं.

bhuvnesh sharma said...

सिधू सर को जन्‍मदिन की शुभकामनाएं....आपके चिट्ठे पर उनके बारे में पढ़ना अच्‍छा लगता है

नीरज गोस्वामी said...

सिंधू सर जी को हमारा नमन....आजकल ऐसे इंसान कहाँ मिलते हैं जिनके विचार इतने महान हो...आपके प्रेरणा स्रोत्र स्तुत्य हैं...बिटिया सहित जिसने जो चीज जहाँ से उठाओ वहीँ रखने का पाठ पढाया...जिसे हम अभी नहीं अपना पाए...
नीरज

vandana gupta said...

sushil ji,
aapne to ye post likhkar sabhi ke liye zindagi jeene ke tarike sikha diye.......agar sabko guru ji jaise margdarshak mil jayein to jeevan safal ho jaye basharte shishya bhi aap jaisa ho jisne guru ki baat ki gahrayi ko samjha aur jeevan mein utara.
sahi kaha aapne jeevan mein insaan bahut se guru banata hai .........jisse bhi sikh mile wo hi guru hota hai phir chahe wo apna bachcha hi kyun na ho.Dattatrey ji ne to 24 guru banaye the.

रंजना said...

आपकी यह पोस्ट पढ़ी तो लगा अपने ही मन की बातें पढ़ रही हूँ.....
ईश्वर जब हमसे प्रेम करता है तो पहले तो वह बहुत सारी ऐसी कष्टमय परिस्थितियां देता है,जिसमे हमारे सीखने और मजबूत होने के लिए बहुत कुछ होता है और फिर अनेकों व्यक्तित्व में बसा हुआ हमारे जीवन में आकर हमें अपने स्नेह जल से आप्त कर जाता है और उद्धारक बनकर हमें मार्ग दिखलाते हुए हमारा ध्येय हमें निर्देशित कर जाता है...

ताऊ रामपुरिया said...

गुरुजी को हमारा प्रणाम और जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं

रामराम.

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

सब भरम भुलावे छोड़ दे अब,
तू सीधे रस्ते चल, बंदे।
काश! यह बात बन्दे मान भी पाते.

राज भाटिय़ा said...

सिधू जी आप को जन्मदिन की ढेरों मुबारकबाद और शुभकामनाएं

राजीव तनेजा said...

हम अपने दैनिक जीवन में रोज़ाना कुछ ना कुछ नया सीखते हैँ,उनमें से कुछ बातें तभी हमारे दिमाग में अपना घर बना लेती हैँ तथा कुछ बातें बाद में मौका पड़ने पर अपने आप याद आ जाती हैँ....अब बेशक उन सभी बातों का श्रेय हम किसी को दें या ना दें लेकिन सच्चाई यही है कि हम किसी ना किसी से...कभी ना कभी प्रेरित ज़रूर होते हैँ....


संयत भाषा....बढिया आलेख...

दिगम्बर नासवा said...

रब्ब ढूंढने के ढंग बदल गए,
रब्ब इक दूजे को कह, बंदे।

गुरु जी को जन्म दिन की बधाई,aksar ऐसा होता है insaan के जीवन मैं, achanak ही कोई मिलता है और जीवन बदल जाता है. आपके जीवन के कुछ प्रसंग जान कर हर पढने वाले को prerna मिलेगी.

Alpana Verma said...

सुशील जी सच कहा है..जीवन से हम जिन से जो भी सीखते हैं भुला नहीं पाते--गुरूजी /पिता जी,/माता श्री हों या कोई सखा ..और आप तो अपनी बिटिया से भी सीख ले लेते हैं --कितनी अच्छी बात है!
आत्म अभिव्यक्ति वाली बात गुरूजी ने बहुत सच कही.
इमानदारी का वैसा सबक शायद कोई किताब भी न सिखा पाए जो वह बच्चा आप को सिखा गया!
आप से सिधु sir को हमारी भी शुभकामनायें.
आप के दियेतीनो लिंक भी पढूंगी.
आप ने नौवी कक्षा से भी बड़ी अच्छी कविता लिखी है..
बहुत अच्छी पोस्ट है यह आप की.बधाई.

हरकीरत ' हीर' said...

उठ जाग अंधेरे में से तू,
तेरा प्रीतम तेरे दिल बसता।
सब भरम भुलावे छोड़ दे अब,
तू सीधे रस्ते चल, बंदे।
रब्ब ढूंढने के ढंग बदल गए,
रब्ब इक दूजे को कह, बंदे।
क़ादर क़ुदरत क़ुदरत क़ादर,
हर पीर पैग़ंबर है कहता।

Sushil ji, aapme jitani masumiyat hai aapki lekhni me bhi wahi masumiyat jhlakti hai....tabhi to aapko insan me khubiyan nazar aatin hain varna koun kiski tarif karta hai....aapke guru ji ko janam din mubarak ho....!!

Smart Indian said...

आपके सिन्धु सर को जन्मदिन की बधाई, हमारी तरफ से भी. आप भाग्यशाली हैं कि नन्ही सुनयना सहित इतने सारे सक्षम शिक्षकों से मिल सके (और उनकी शिक्षा ग्रहण कर सके)

कंचन सिंह चौहान said...

१ हफ्ते से ब्लॉग जगत से दूर थी। आज देखी आपकी पोस्ट। आइंस्टीन की लाईने पढ़ कर वाक‌़ई अच्छा लगा। मैं चाहती थी की सभी लोग कहीं अपने मन को टटोलें और फिर एक बार कृतज्ञ हों उन लोगों के जिन्होने मन में चेतना की लौ जलाई और जीवन को सकरात्मक रूप से जीने लायक बनाया।

धन्यवाद आपकी इस पोस्ट का...! बहुत अच्छा लगा आपके गुरु जी और उस गरीब बच्चे के विषय में जानकर और उन कन्या के विषय में भी जिन्होने इतनी बड़ी बात कही।

गौतम राजऋषि said...

अच्छा लगा आपके शब्दों के जरिये इन भावनाओं को पढ़कर......कंचन जी के सवालों का आपने इतनी सहजता से जवाब दे दिया और एक हम हैं कि अभी तक उलझन में हैं

Anonymous said...

आपको जो विचार मिले हैं अब

उन्‍हें हम अपना रहे हैं मेरे रब

सबसे अच्‍छा है कर रहे हैं तप

लिख रहे हैं बांट रहे हैं ये यज्ञ।

गजेन्द्र सिंह भाटी said...

thanks...

रविकांत पाण्डेय said...

सबसे पहले तो क्षमाप्रार्थी हूँ इतनी देर से टिप्पणी के लिये। गुरूजी को हमारा नमन। पोस्ट की सहजता प्रसंशनीय है। सोचता हूँ कैसी विडंबना है कोई एकबार मिलकर भी प्रभावित कर जाता है और कोई रोज मिलकर भी करीब नहीं आ पाता। कंचन जी ने जो प्रश्न किया उसका उत्तर तो मेरे लिये काफ़ी मुश्किल है, जल्दी ही उसपर एक पोस्ट मैं भी लिखता हूँ।

Anonymous said...

Sushil ji purane geeton ki site ka link aap ko email ka rdiya tha.umeed hai mil gaya hoga.
thanks
-Alpana

Science Bloggers Association said...

अगर सभी लोग इस तरह आत्‍मविवेचन करने लगें, तो समाज सदगति को प्राप्‍त हो।

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