तेरी याद
बहुत देर हुई, जलावतन हो चुकी
मैं नहीं जानती
वह जीती है या मर गई...
पर एक बार एक घटना हुई
ख्यालों की रात बहुत गहरी थी
और इतनी खामोश थी
कि एक पत्ता हिलने से भी
बरसों के कान चौंक जाते थे ...
फिर तीन बार लगा
कोई छाती का द्वार खटखटाता है
नाखूनों से दीवार को खरोंचता है
और लगता है, कोई दबे पांव
घर की छत पर जा रहा है ...
तीन बार उठकर - मैंने सांकल टटोली
अंधेरा -कभी कुछ कहता-सा लगता था
और कभी बिल्कुल खामोश हो जाता था
फिर एक आवाज आई
" मैं एक स्मृति हूं
बहुत दूर से आई हूं
सब के आंख से बचती हुई
अपने बदन को चुराती हुई
सुना है - तेरा दिल आबाद है
पर कहीं कोई सूना-सा कोना मेरे लिए होगा...
[ ये रचना अमृता प्रीतम द्वारा लिखित " अज्ञात का निमंत्रण'' नामक किताब से ली गई हैं। इस किताब को प्रकाशित किया है " किताब घर" ने। आज अमृता प्रीतम जी का जन्मदिन भी है। ]
3 comments:
Kya gazab likhtee theen Amritaji!Bahut sundar rachana!
अच्छी है
behtareen......
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