चुप करके करीं गुज़ारे नूं।
सच
सुण के लोक न सैंहदे ने,
सच
आखिये तां गल पैंदे ने,
फिर
सच्चे पास न बैंहदे ने,
सच्च
मिट्ठा आशक़ प्यारे नूं।
सच
शरा करे बर्बादी ए,
सच
आशक़ दे घर शादी ए,
सच
करदा नवीं अबादी ए ,
जेहा
शरा तरीक़तहारे नूं।
चुप
आशिक़ तों ना हुंदी ए,
जिस
आई सच सुगंधी ए,
जिस
माहल सुहाग दी गुंदी ए,
छड
दुनिया कूड़ पसारे नूं।
- बाबा
बुल्लेशाह
अनुवाद- सत्य का कहना और सच सुनकर सह लेना, दोनों ही कठिन हैं। इसलिए साधक को बुल्लेशाह की सलाह है
कि चुप रहकर गुजर-बसर करो।
सच सुनकर लोग उसे सहन नहीं करते। सच कड़वा होता है, अत: आमतौर पर सच कहें, तो लोग झगड़ने लगते हैं। और सच कहने वाले के निकट बैठते तक नहीं। लेकिन साधक और प्रभु-प्रेमी को सच बहुत मीठा लगता है।
सच सुनकर लोग उसे सहन नहीं करते। सच कड़वा होता है, अत: आमतौर पर सच कहें, तो लोग झगड़ने लगते हैं। और सच कहने वाले के निकट बैठते तक नहीं। लेकिन साधक और प्रभु-प्रेमी को सच बहुत मीठा लगता है।
सच दुनियादारी को बर्बाद कर देता है, किंतु सच आशिक को प्रसन्न करता है। सच से व्यक्ति के भावना-जगत
में बहुत कुछ नया फूट उठता है। तरीकत के मुकाम पर पहुंचे हुए सूफी के लिए सच ही शाह
है।
आशिक चुप नहीं रह सकता। उसके पास सच सुगंध की तरह पहुंचता
है। उसने सुहाग ( प्रभु-मिलन) के लिए हार गूंथ
रखे हैं। सच की खातिर वह दुनिया को त्याग देता है, जो कि सर्वत्र फैला हुआ झूठ है।
नोट- यह रचना " हिंद पॉकेट बुक्स " की एक किताब " बुल्लेशाह " से ली गई है।
1 comment:
बुल्लेशाह बाबा की ये काफ़ियां अनुवाद सहित पढवाने के लिये बहुत आभार आपका.
रामराम.
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