मंटो का जन्मदिन
आज मंटो जी का जन्मदिन हैं सोचा आप साथियों के साथ मनाया जाए। कहानियाँ तो आपने पढ़ी ही होगी इसलिए आज कहानी ना देकर उनसे जुड़ॆ किस्से दे रहा हूँ जो कृशन चन्दर जी ने लिखे है। "मंटो: मेरा दुश्मन " किताब में। मैं मंटो के लेखन के लिए बैचेन इसी किताब को पढकर हुआ था। और फिर जब कहानियाँ पढ़ी तो मंटो के मुरीद हो गए हम। तो पेश हैं वो किस्सें। आप भी कमेंट देते वक्त अपने अनुभव लिख सकते है मंटो के बारे में। शायद पोस्ट बडी हो गई है उसके लिए माफ़ी।
पहला किस्सा
मंटो के पास टाइपराईटर था और मंटो अपने तमाम ड्रामे इसी तरह लिखता था कि काग़ज़ को टाइपराईटर पर चढ़ा कर बैठ जाता था और टाइप करना शुरु कर देता था। मंटो का ख्याल है कि टाईपराइटर से बढ़कर प्रेरणा देने वाली दूसरी कोई मशीन दुनिया में नहीं है। शब्द गढ़ॆ-ग़ढाये मोतियों की आब लिए हुए, साफ़-सुथरे मशीन से निकल जाते है। क़लम की तरह नहीं कि निब घिसी हुई है तो रोशनाई कम है या काग़ज़ इतना पतला है कि स्याही उसके आर-पार हो जाती है या खुरदरा है और स्याही फैल जाती है। एक लेखक के लिए टाइपराइटर उतना ही ज़रुरी है जितना पति के लिए पत्नी। और एक उपेन्द्र नाथ अश्क और किशन चन्दर है कि क़लम घिस-घिस किए जा रहे है। " अरे मियाँ, कहीं अज़ीम अंदब की तखलीक़ (महान साहित्य का सृजन) आठ आने के होल्डर से भी हो सकता है। तुम गधे हो, निरे गधे।" मैं तो ख़ैर चुप रहा, पर दो-तीन दिन के बाद हम लोग क्या देखते है कि अश्क साहब अपने बग़ल में उर्दू का टाईपराईटर दबाये चले आ रहे है और अपने मंटो की मेज़ के सामने अपना टाइपराइटर सजा दिया और खट-खट करने लगे। " अरे, उर्दू के टाइपराइटर से क्या होता है? अँग्रेजी टाइपराइटर भी होना चाहिए। किशन, तुमने मेरा अँग्रेज़ी का टाइपराइटर देखा है? दिल्ली भर में ऐसा टाइपराइटर कहीं न होगा। एक दिन लाकर तुम्हें दिखाऊँगा।" अशक ने इस पर न केवल अँग्रेजी का, बल्कि हिन्दी का टाइपराइटर भी ख़रीद लिया। अब जब अशक आता तो अकसर चपरासी एक छोड़ तीन टाइपराइटर उठाये उसके पीछे दाखिल होता और अश्क मंटो के सामने से गुज़र जाता, क्योंकि मंटो के पास सिर्फ दो टाइपराइटर थे। आख़िर मंटो ने ग़ुस्से में आकर अपना अँग्रेजी टाइपराईटर भी बेच दिया और फिर उर्दू टाईपराइटर को भी वह नहीं रखना चाहता था, पर उससे काम में थोड़ी आसानी हो जाती थी, इसलिए उसे पहले पहल नहीं बेचा- पर तीन टाइपराइटर की मार वह कब तक खाता। आख़िर उसने उर्दू का टाइपराइटर भी बेच दिया। कहने लगा, " लाख कहो, वह बात मशीन में नहीं आ सकती जो क़लम में है। काग़ज़, क़लम और दिमाग में जो रिश्ता है वह टाइपराइटर से क़ायम नहीं होता। एक तो कमबख़्त खटाख़ट शोर किए जाता है- मुसलसल, मुतवातिर- और क़लम किस रवानी से चलता है। मालूम होता है रोशनाई सीधी दिमाग़ से निकल कर काग़ज की सतह पर बह रही है। हाय, यह शेफ़र्स का क़लम किस क़दर ख़ूबसूरत है। इस नुकीला स्ट्रीमलाईन हुस्न देखो, जैसे बान्द्रा की क्रिशिचयन छोकरी।" और अश्क ने जल कर कहा, " तुम्हारा भी कोई दीन-ईमान है। कल तक टाइपराइटर की तारीफ़ करते थे। आज अपने पास टाइपराइटर है तो क़लम की तारीफ़ करने लगे। वाह। यह भी कोई बात है। हमारे एक हजार रुपये ख़र्च हो गये।"
मंटो ज़ोर से हँसने लगा।
दूसरा किस्सा
आज से चौदह साल पहले मैंने और मंटो ने मिलकर एक फिल्मी कहानी लिखी थी, "बनजारा" । मंटो ने आज तक किसी दूसरे साहित्यकार के साथ मिलकर कोई कहानी नहीं लिखी- न उसके पहले, न उसके बाद। लेकिन वे दिन बडी सख्त सर्दियों के दिन थे । मेरा सूट पुराना पड़ गया था और मंटो का सूट भी पुराना पड़ गया था। मंटो मेरे पास आया और बोला-" ए किशन । नया सूट चाहता है?" मैंने कहा, हाँ। "तो चल मेरे साथ।" "कहाँ?" "बस, ज़्यादा बकवास न कर, चल मेरे साथ।" हम लोग एक डिस्ट्रीब्यूटर के पास गये। मैं वहाँ अगर कुछ कहता, तो सचमुच बकवास ही होता, इसलिए मैं ख़ामोश रहा। वह डिसृट्रीब्यूटर फ़िल्म प्रोडेक्शन के मैदान में आना चाहता था। मंटो ने पन्द्रह बीस मिनट की बातचीत में उसे कहानी बेच दी और उससे पाँच सौ रुपये नकद ले लिये। बाहर आकर उसने मुझे ढाई सौ दिये , ढाई सौ रुपये खुद रख लिये। फिर हम लोगों ने अपने-अपने सूट के लिए बढिया कपड़ा खरीदा और अब्दुल गनी टेलर मास्टर की दुकान पर गये। उसे सूट जल्दी तैयार करने की ताक़ीद की। फिर सूट तैयार हो गए। पहन भी लिये गए। मगर सूट का कपड़ा दर्ज़ी को देने और सिलने के दौरान में जो समय बीता, उसमें हम काफ़ी रुपये घोल कर पी गये। चुनांचे अब्दुल ग़नी की सिलाई उधार रही और उसने हमें सूट पहनने के लिए दे दिये। मगर कई माह तक हम लोग उसका उधार न चुका सके। एक दिन मंटो और मैं कशमीरी गेट से गुजर रहे थे कि मास्टर ग़नी ने हमें पकड़ लिया। मैंने सोचा, आज साफ-साफ बेइज़्ज़ती होगी। मास्टर ग़नी ने मंटो को गरेबान से पकड़ कर कहा, "वह 'हतक' तुमने लिखी है?" मंटो ने कहा, "लिखी है तो क्या हुआ? अगर तुमसे सूट उधार लिया है तो इसका मतलब यह नहीं कि तुम मेरी कहानी के अच्छे आलोचक भी हो सकते हो। यह गरेबान छोड़ो।" अब्दुल ग़नी के चेहरे पर एक अजीब-सी मुस्कराहट आयी। उसने मंटो का गरेबान छोड़ दिया और उसकी तरफ अजीब-सी नजरों से देखकर कहने लगा, " जा, तेरे उधार के पैसे माफ़ किये।" वह पलटकर चला गया। चंद लम्हों के लिए मंटो बिल्कुल ख़ामोश खड़ा रहा। वह इस तारीफ़ से बिल्कुल खुश नहीं हुआ। बड़ा संजीदा और दुखी और खफ़ा-ख़फ़ा सा नजर आने लगा, "साला क्या समझता है। मुझे सताता है। मैं उसकी पाई-पाई चुका दूँगा। साला समझता है 'हतक' मेरी अच्छी कहानी है। 'हतक'? 'हतक' तो मेरी सबसे बुरी कहानी है।"
पिछले जन्मदिन पर भी एक पोस्ट की थी आप चाहे तो उसे भी पढ सकते है। नीचे दिये लिंक में।
सआदत हसन मंटो का जन्मदिन और उनकी दो छोटी कहानियाँ
25 comments:
मंटो से अपनी कोई खास दोस्ती तो नहीं.. कोई कहानी पढ़ी तो नहीं मैंने पर हाँ दोस्तों से सुनी ज़रूर है.. आज के दोनों किस्से लाजवाब है.. उम्दा प्रतिभा के धनी लोग एक अलग मिजाज़ के ही होते है.. उन्हें कौन समझ सकता है.. मंटो के व्यक्तित्व के बारे में जानकार अच्छा लगा.. जन्मदिन के दिवस पर तो उन्हें याद किया ही जाना चाहिए..
मंटो को जब भी पढ़ा है बहुत अच्छा लगा है ..आपने आज रोचक किस्से ब्यान किये उनके .शुक्रिया
सआदत हसन मंटो गर आज होते तो ब्लॉग ज़रूर लिखते.
Nice info.
Thanks.
~Jayant
kabhi padhne ka mauka to nahi mila par suna kafi hai unke aur unke andaj ke bare me...
वाह वाह वाह...
मंटो और उसके किस्से.. क्या कहने...
बहुत अच्छे लगे... आपके ब्लॉग पर पढ़कर...
मीत
सआदत हसन मंटो..इनको पढकर तो आंनन्द आ जाता है. इनकी रचनाए और किस्से पढना भी एक अलग ही अनुभव है.
रामराम.
waah ye to mazedaar kitab lagti hai . aapne ise padhne ki utsukta jaga dee.
कृशन चंदर और मंटो दोनों एक ही वक्त के लेखक हैं और दोनों की स्टाईल अलग है...लेकिन एक चीज़ दोनों में समान है...पाठक दोनों को पढ़ कर आनंदित होता है....मंटो की कहानियां चाहे जितनी बार पढो कभी पुरानी नहीं लगतीं...इन दो महान अफसाना निगारों की बात करके आप ने जी खुश कर दिया...ये दोनों बरसों से मेरे प्रिय लेखक रहे हैं और मैंने उनका लिखा लगभग हर लफ्ज़ पढ़ा है...
नीरज
नया ज्ञानोदय में पढ़ चूका हूँ .उनके ये किस्से ..वैसे उनका लिखा अपनी शादी का सच भी किसी किस्से से कम नहीं है...मंटो जैसे लोग सदी में एक बार ही पैदा होते है...ओर अश्लील ओर पागल करार दिए जाते है....उनकी खोल दो कहानी मैंने दसवी क्लास में पढ़ी थी.....सारिका मैगजीन में ....
जितना कुछ पढा और जाना है मोंटो साहब की शक्शियत के बारे में..........इतना ही कह सकता हूँ......ऐसे लोग बार बार नहीं पैदा होते ...... जो उन्होंने लिखा उसे जिया भी है
मंटो का मुरीद तो मैं भी हूँ। किस्सों को पढ़ कर बहुत सुकून मिला। धन्यवाद!
मंटो तो मेरे पसंदीदा लेखकों में हैं। हां ये कृश्न चंदर जी वाली किताब अभी पढ़ी नहीं है लेकिन अब पढ़ने से रोक नहीं पाऊंगा अपने आप को। अच्छी पोस्ट के लिये शुक्रिया।
manto ji ke bare mein to kabhi nhi padha par aapke dwara unke bare mein jankar padhne ki ichcha jaroor ho gayi hai.........dhanyavaad.
susheel ji ,
manto ke baaren me jaan kar bahut accha laga , ye baaten pahle malum nahi thi .. maine sirf unki kahaniya padhi hai ...
aapka aabhar is lekh ke liye
are kese chhoot gaya bhai aapka blog aour aapki nai post???kher der aayad durust aayad//
manto ko khoob padhha he sushil bhai par ese kisso se jyada parichit nahi hua tha///bahut khoob kiya jo kisse post kiye/ manto ki to baat hi kya he////unki lekhni me alag hi mazaa he//
aour jo 'hatak'ka ullekh kiya he vakai manto ki us kahaani me dil doob doob jataa he////aour dekho manto ko vo sabse buri lagti he///yahi to manto ki khasiyat thi//
dhnyavaad ke paatra he aap//
मंटो और उनके किस्से पठनीय हैं !
मंटो की कहानियों ने मन को अत्यंत आंदोलित किया है ! उनका बेजोड़ लेखन हमेशा प्रसांगिक रहेगा !
आपका आभार व्यक्त करता हूँ !
ईमानदारी से कहूँ तो मैं ने तो आज पहली बार मंटो की कहानियाँ पढीं है..[नाम ही पहली बार ही सुना है]
आप का आभार की आप ने यह बढ़िया किस्से पढ़वाए... .आप के दिए लिंक पर भी जा कर देखती हूँ..
मंटो की तमाम प्रतिबंधित कहानियां घर वालों से चुप कर दसवीं और ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ चुका था...
इस प्रस्तुति के लिये शुक्रिया सुशील जी
मंटो एक ऐसे रचनाकार हैं, जिनका सटीक मूल्यांकन नहीं किया गया। जन्मदिन पर उनको हार्दिक श्रद्धांजलि।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
सुशील जी,
मंटो महाराज अश्लील कहानियां लिखने के लिए बदनाम थे, एक बार मेरे भी हाथ लग गयी थी मंटो की एक किताब. जब पिताजी को पता चला और उन्होंने पढ़ी तो दो तीन कहानियां पढ़कर ही उस किताब को फाड़कर फेंक दिया था.
Dear RSushil Ji,
It's so kind of you to provide the link to my blog http://zen-katha.blogspot.com on your blog.
However, my blog has moved to its own site at http://hindizen.com
Please change the link of my blog in the list of your favourite blogs.
Thank you.
Yours, Nishant.
नया ज्ञानोदय ने भी मंटो के जन्मदिन पर विशेषांक निकाला था अब आपसे भी काफी जानकारी मिली शुक्रिया ....!!
मैं इक -दर्द के लिए जीतेन्द्र जी से फिर कहूँगी वैसे इतनी भी बेहतरीन नहीं है वो कि पढा ही जाये ...और फिर उसमें से कई नज्में तो मैं ब्लॉग में डाल ही चुकी हूँ .....!!
manto sa bebak lekhan kam hi padhne me aata hai. unke jeevan ke ye dono kisse dilchasp the, yahan post karne ka shukriya
मंटो और अश्क की इस मीठी चुहल से याद आया कि मेरे नाम अश्क जी का लिखा हुआ एक ख़त आज भी रखा है, किसी टाइपराइटर का नहीं बल्कि खालिस शेफर पेन से लिखा हुआ. तारीफ़ यह की उसमें उन्होंने अपनी गठियाती उँगलियों की शिकायत भी की है.
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