सआदत हसन मंटो का जन्मदिन
कल यानि 11 मई को एक महान लेखक सआदत हसन मंटो का जन्मदिन था। उनके लेखन में एक सच था अपने समय का। ज़िस सच से मुँह चुराना मुमकिन नही है। उनकी याद में दो छोटी छोटी कहानी दे रहा हूँ। उम्मीद है आप साथियों को पंसद आऐगी।
करामात
लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरू किए। लोग डर के मारे लूटा हुआ माल रात के अंधेरे में बाहर फेंकने लगे, कुछ ऐसे भी थे, जिन्होने अपना माल भी मौका पाकर अपने से अलहदा कर दिया, ताकि क़ानूनी गिरफ़्त से बचे रहें।
एक आदमी को बहुत दिक्कत पेश आई। उसके पास शक्कर की दो बोरियां थी, जो उसने पंसारी की दुकान से लूटी थी। एक तो वह जूं-तूं रात के अंधेरे में पास वाले कुंए में फेंक आया, लेकिन जब दूसरी उसमें डालने लगा, तो खुद भी साथ चला गया।
शोर सुनकर लोग इकटठे हो गए। कुंए में रसिसयाँ डाली गई।
जवान नीचे उतरे और उस आदमी को बाहर निकाल लिया गया।
लेकिन वह चंद धंटो के बाद मर गया। दूसरे दिन जब लोगों ने इस्तेमाल के लिए उस कुंए में से पानी निकाला, तो वह मीठा था।
उसी रात उस आदमी की क़ब्र पर दीए जल रहे थे।
घाटे का सौदा
दो दोस्तों ने मिलकर दस-बीस लडकियों में से एक लड्की चुनी और बयालीस रुपए देकर उसे खरीद लिया।
रात गुजारकर एक दोस्त ने उस लड्की से पूछा " तुम्हारा नाम क्या है?"
लड्की ने अपना नाम बताया, तो वह भिन्ना गया " हमसे तो कहा गया था कि तुम दूसरे मज़हब की हो।"
लड्की ने जवाब दिया " उसने झूठ बोला था।"
यह सुनकर वह दौडा-दौडा अपने दोस्त के पास गया और कहने लगा - "उस हरामजादे ने हमारे साथ धोखा किया हैं हमारे ही मज़हब की लड्की थमा दी। चलो , वापस कर आंए।
नोट- जिन प्रकाशनो ने इनकी किताबें प्रकाशित उन्हें मेरी तरफ से धन्यवाद।
11 comments:
बहुत ही मार्मिक हैं दोनो अफ़साने.
सामयिक संकलन के लिये साधुवाद.
आज मंटो साहब को पहली बार पढने का मौका मिला...इसके लिए शुक्रिया
इन दोनों कहानियों में हमारे समाज की कुरीतियों को उभारा गया है
कहानी को आखिर में अलग सा...अप्रत्याशित मोड़ देने का उनका अन्दाज़ बहुत पसन्द आया
मंटो को बहुत पढ़ा है. ज़ाती तौर पे बहुत पसंद करता हूँ. लेकिन उनकी तकरीबन १०० से भी ज्यादा कहानियां पढने के बाद आज भी उन के बारे में बस ये कह सकता हूँ कि उन्हें समझना मुश्किल है .... और उन पे कोई टिपण्णी करना और भी ज़्यादा मुश्किल. बहरहाल मुझे हमेशा से बहुत पसंद रहे हैं वो. शुक्रिया फिर से उन्हें पढ़वाने का.
मंटो की कहानियो को नाटक के रूप में कई बार देखा है.. ये दोनो ही लघुकथाए भी मूज़े पसंद है.. यहा बाँटने के लिए धन्यवाद
मण्टो साहब के क्या कहने? इस पृष्ठ पर उन्हे लाकर आपने हमें अमृतपान करा दिया।
धन्यवाद।
मन्टो साहब को याद करने के लिए धन्यवाद। वे जहीन लेखक थे। इन दोनों कहानियों में इंन्सान के मिजाज को उन्हों ने सलीके से रखा है, जो नायाब तंज (व्यंग्य) की मिसाल हैं।
धन्यवाद इन्हें प्रस्तुत करने के लिये ।
मंटो : अंदाजे बयां
आनन्द आ गया. बहुत आभार इन्हें यहाँ प्रस्तुत करने का.
ये दोनो अफसाने पढ़े नहीं थे, इन्हें यहां प्रस्तुत करने के लिए शुक्रिया दोस्त....
शुक्रिया !
शुक्रिया !
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