नाटक- मंगू और बिक्कर ( 7 मई, मगंल वार शाम 7 बजे, स्थान श्री राम सेंटर, सफदर हाशमी मार्ग, मंडी हाउस दिल्ली)
सरसरी नजर से देखने पर, यह नाटक बूढे माँ-बाप तथा जवान बेटी-बेटों के बारे में दिखेगा। पर इस विषय के साथ मैं ने और कई जरुरी थीम मिलाने की कोशिश की है।
एक इंसान की दूसरे इंसान की तरफ जिम्मेदारी, शहरों की देहात की तरफ जिम्मेदारी-- "मंगू और बिक्कर" बंदे की जिदंगी के बंधनों के साथ जूझने की कोशिश करता है।
पच्चहतर बरसों के रिटाइर्ड मास्टर मंगू राम की शिक्षा अभी अधूरी है। टूटी हुई टाँग ने उसे झकझोर डाला है। मंगू जिदंगी भर की नींद से जाग रहा है। जिंदगी-मौत, शरीर-आत्मा, किस्मत-कोशिश, आजादी-बंधन, अपने-पराए, जैसे मुशिकल लफ्जों के सही मानों की तरफ बढ रहा है।
क्या शहर-निवासी सोहन लाल और ओम प्रकाश ने देहाती मंगू और बिक्रम चंद से ज्यादा तरक्की की है? क्या अमरीकन पीएच.डी. प्रोफेसर ओम प्रकाश के पास अनपढ पहलवान निशान सिंह से अधिक ज्ञान है? ज्यादा सुख है?--- सच्चा ज्ञान क्या होता है? सच्चा सुख किसे कह्ते है?
उम्मीद है,"मंगू और बिक्कर" इन सवालों को आप तक पहुचाँने में कामयाब होगा। और आप अपने आप को, ओस पडोस को, थोडा हट कर, देख सकेंगे।
चरणदास सिद्धू
1 comment:
काश, देख पाते.
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