उठो बाबा
अब नहीं पूछूँगी
मेरी मम्मी कहाँ हैं ?
मेरे पापा कहाँ हैं ?
सबके तो हैं, मेरे कहाँ हैं ?
उठो बाबा।
अब कौन प्यारी आवाज लगा सुबह उठाऐगा ?
अब कौन बस्ता लेकर स्कूल छोड़कर आऐगा ?
अब कौन गोल गोल रोटी बना खिलाऐगा ?
अब कौन कहानी सुनाकर नींद को बुलाऐगा ?
उठो बाबा।
तुम कहते थे "तेरे बाप की याद आती हैं,
खुद चला गया मुझे जवान बनाकर"
क्या तुमको हमारी याद नहीं आऐगी ?
हमको यूँ बेसहारा छोड़कर
उठो बाबा।
तुम कहते थे "दुकान पर बैठा कर"
मैं कहती थी "अच्छा नहीं लगता"
अब मैं तुम्हें कुर्सी पर ऊँघने नहीं दूँगी
दुकान चलाकर खूब पैसा कमाऊँगी
उठो बाबा............................
37 comments:
बहुत उम्दा रचना..आभार प्रस्तुति का.
नमी ले आए आप तो आँखो में...
बहुत मार्मिक रचना.
रामराम.
रुला दिया आपने तो सुबह सुबह बहुत ही मार्मिक भावुक कर देने वाली रचना है
बहुत गहरी, मन को छूने वाली, मार्मिक कविता
मेरे पास शब्द नही हैं इस के लिए
स्तब्ध रह गया पढने के बाद, बहुत ही वेदना से भरी कविता
वेदना से भरी बहुत उम्दा रचना कविता..
बहुत सुंदर लिखा है... कुछ लोग इस तरह का दुःख अपने सीने में लिए ही दुनिया से विदा हो जाते हैं... आपने उन लोगो के दुःख से सबको परिचित कराया है इस रचना के जरिये...
बहुत सुंदर...
मीत
मार्मिक भाव विभोर कर देने वाली रचना... आभार
bahut hi marmik rachna............zamane bhar ke dard ko samet diya hai.
अच्छी भावपूर्ण रचना है.
बहुत ही मार्मिक भाव लिये है आप की यह कविता.
धन्यवाद
marmik rachna hai.
marmik rachna hai.
एकदम आसान से शब्दों में आपने सब कह दिया...इसे कहते हैं कविता
अब कौन प्यारी आवाज लगा सुबह उठाऐगा ?
अब कौन बस्ता लेकर स्कूल छोड़कर आऐगा ?
अब कौन गोल गोल रोटी बना खिलाऐगा ?
अब कौन कहानी सुनाकर नींद को बुलाऐगा ?
komal mun ki bhavnaon ko bkhubi utar diya hai aapne....!!
बहुत ही मर्म स्पर्शी रचना...
नीरज
काहे लिखते हो ये सब यार ..मुश्किल होती है....सच देखने पढने में ....
मार्मिक...दिल को छू लेने वाली रचना
मार्मिक कविता.
सुशील जी,आप की यह बोलती कविता मन को छू गई.
[रुला जाती हैं ऐसी कवितायें.]
तुम कहते थे "तेरे बाप की याद आती हैं,
खुद चला गया मुझे जवान बनाकर"
क्या तुमको हमारी याद नहीं आऐगी ?
हमको यूँ बेसहारा छोड़कर
उठो बाबा।
" मासूम सी आवाज अपने बाबा को पुकारती.....आंसू से बिलखती...मगर नन्ही जान क्या जाने की बाबा अब नही आयेंगे......नही सुन पाएंगे उसकी सिसकियाँ और उसका करूं रुदन......उफ़.... कितनी व्यथा है इन पंक्तियों मे......क्यूँ जाने वाले इतना दर्द दे जातें हैं.......क्यूँ.....व्याकुल क्र गये मन को ये शब्द.."
Regards
bahut hi achhi rachna hai sushil ji
-tarun
आपके ब्लाग पर आकर दिक्कत हुई दिल-दिमाग को। सोच कर आया था कि आज आपकी रचनाएं इत्मीनान से पढूंगा लेकिन इस दरिया के कुछ बूंदों ने ही आगे कुछ पढ़ने लायक नहीं छोड़ा।....लौटकर फिर कभी आउंगा बाबा!
bahut jyada marmsparshi kavita he..
nai kavita ki yahi ek visheshta hoti he ki usme arth apne unmukt bhaavo se nrutya karte dikhte he..esa nruty jo pooti tarah hindustaani he..bahut khoob..maza aagaya padh kar..
kyaa tippani du, kai tippanikaaro ne apni baat kah di..sabko milaa kar jo me dena chahta hu vo yah ki
laazavaab........
कितना सुंदर लिखती हैं आप..बहुत सुंदर भाव..बहुत अच्छा लगता है पढने पर।
शुभकामनाएं........ढेरो बधाई कुबूल करें....
बहुत सुंदर भाव बधाई.
मर्म स्पर्शी कविता कही है आपने। किसी का भी दिल भर आएगा इसे पढकर।
बहुत ही भावपूर्ण कविता...........
दिल को छू गयी आपकी रचना। बधाई।
Sanvedanheen hote ja rahe is samay me aapki kavita ne gahraiyon tak asar choda.
क्या कहू....सचमुच आँख भर आई!
मैं जल्दी भावुक नहीं होता, लेकिन आपने तो बना दिया..बस जी..
वाह.... बेहतरीन भावाभिव्यक्ति... बधाई स्वीकारें
बहुत ही मार्मिक पोस्ट ...दिल भर आया
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
पापा का बतला कर
आपने विभोर कर
दिया, मम्मी का
कब बतलाओगे
भोर के बाद
दूसरी कविता में।
जिज्ञासा जगाकर
छोड़ दिया है।
Susheel ji
sorry for late arrival , i was on tour.
maine aapse kaha bhi tha ki is nazm ne bahut udaas kar diya hai .. zindagi ki kuch yaaden bus hamesha dil ko tees pahunchati hai ..
aapka
vijay
main bhi kuch likha hai , jarur padhiyenga pls : www.poemsofvijay.blogspot.com
आपको और आपके परिवार को होली मुबारक
Post a Comment