कुछ रातें
कुछ रातें प्रिय के बिना
कुछ रातें अप्रिय के बिना
कुछ बड़े बड़ॆ तारे
दहकते हुए सिर के ऊपर
और कुछ हाथ
बढ़ते हुए उसकी तरफ जो सदियों से रहा नहीं और न होगा
जो सम्भव नहीं पर जिसे होना चाहिए ...................
बच्चे का एक आँशू
नायक के लिए
और नायक का एक आँशू बच्चे के लिए
पत्थरीलें पहाड़ हैं उसकी छाती में
उसे उतर आना चाहिए अब नीचे
जानती हूँ-जो हुआ
जानती हूँ-जो होगा,
जानती हूँ पूरी तरह
गूंगे-बहरे उस रहस्य को
तुतली और अबोध भाषा में जिसे
कहा जाता है जीवन
रुसी कवयित्री- मरीना त्स्वेतायेवा
साभार- वरयाक सिंह ( आधार प्रकाशन हरियाणा)
14 comments:
गूंगे-बहरे उस रहस्य को
तुतली और अबोध भाषा में जिसे
कहा जाता है जीवन
रुसी कवियत्री मरीना' की अनुवादित कविता समझने के लिए दो बार पढ़ी.
इस भावपूर्ण कविता हेतु सुशील जी आप को धन्यवाद
गूंगे-बहरे उस रहस्य को
तुतली और अबोध भाषा में जिसे
कहा जाता है जीवन
बहुत गहरे भाव हैं इस रचना के इसको पढ़वाने का शुक्रिया
अत्यंत गहन बोध की कविता पढवाने के लिये आपका बहुत आभार.
रामराम.
जानती हूँ-जो हुआ
जानती हूँ-जो होगा,
जानती हूँ पूरी तरह
गूंगे-बहरे उस रहस्य को
तुतली और अबोध भाषा में जिसे
कहा जाता है जीवन
यह स्वर्ण शब्द हैं...
मीत
jeevan ko vyakat karte gambhir aur bahut gahre bhav padhvane ke liye shukriya.
वाह! जबरदस्त है.. पढ़वाने के लिए आभार आपका.
bahut gehre bhav bahut achhi rachana
दिलचस्प !
गहरी भावनाएं लिए शशक्त रचना
बहुत ही सुन्दर।
पढ़वाने के लिए आभार आपका.
काफी दिनों के बाद आपका ब्लाग पढा । आपके लेखन का कायल हूं मै । इसी तरह लिखते रहिए आभार
कई बार पढ़ गया....शब्द संयोजन-अनुवादित शब्द-संयोजन पर चमत्कृत हूँ,मगर पूरी कविता समझ नहीं पा रहा...
फिर से पढ़ता हूँ बाद में
कविता जीवन को
वन से बाहर
लाने
और प्रभाव जमाने
में पूर्णत: सफल।
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