एक जिदंगी यह भी
अगर आप आई.टी.ओ. के आसपास हैं और थकान से चूर-चूर हो रहे है। चाहते है कि थकान पल भर में दूर हो जाए और शरीर में थोड़ी फुर्ती भी आ जाए तो आप विष्णु दिगम्बर मार्ग की तरफ हो लीजिए। जब आप इस मार्ग पर आऐंगे तो आपको पंजाबी भवन और हिंदी भवन दिखेगा। आप रुकिए और पंजाबी भवन के गेट के पास से हिंदी भवन की तरफ बीच में एक सांवला सा आदमी कमीज़ पेंट पहने एक चाय की छोटी सी दुकान लगा कर बैठा होगा। दो स्टोव, कुछ प्लास्टिक के कप, दो कपड़े के थैले समान से भरे हुए, ग्राहकों को बैठने के लिए दो बडे सपाट पत्थर और खुद के बैठने के लिए एक सपाट पत्थर जिस पर एक दरी बिछी होगी और वह आदमी नंगे पैरों को मोड़ कर बैठा चाय बना रहा होगा। आप उन्हें एक चाय का आर्डर दीजिए। चंद ही मिनटों में एक कड़क चाय आपके सामने पेश हो जाऐगी। और चाय का एक घूंट पीते ही आपको नई ताज़गी का अहसास होगा। अब आप कहेगे कि चाय की दुकान तो देख ली पर लेखक जी से तो मिलाईए। अजी मिला तो दिया। यही लेखक भी है और चाय वाले भी। आप चौकिएं मत। इनका नाम श्री लक्ष्मण राव जी है। जिनकी कई किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। ये आपको चाय के साथ साथ साहित्य का रस भी पिलाऐंगे। जब आप पूछेंगे कि क्या आप अपनी लाईफ से संतुष्ट हैं। तो कहेंगे कि जनाब संतुष्ट हो या ना हो संतुष्ट होना पड़ता हैं। चाय बेचकर ठीक ठाक कमा लेता हूँ और अच्छी खासी रायल्टी मिल जाती है किताबों से, फिर क्यों छोडू इस चाय के पेशे को। खुद ही छपवाता हूँ और फिर खुद ही बेचता हूँ अपनी साईकिल पर किताबों के थैले टांग कर किताबों की दुकानों को , लाईब्रेरीयों को, और लोगों को। मैं लेखकों की तरह एक सफेद कुर्ता पाजामा पहन और एक थैला टांग कर नही रह सकता। मेरी पहली किताब रामदास पर थी जो हमारे गाँव का एक लड़का था एक दिन वह छुट्टियों में अपने मामा के गाँव गया । जब वह लोटने लगा तो रास्ते में एक नदी पड़ी और उसके चमकते हुए पानी में उसने छलांग लगा दी। वह फिर कभी लौट कर नहीं आया। मैं इस घटना पर लिखना चाहता था इसलिए रामदास पर मैंने पहली किताब लिखी एक उपन्यास के रुप में। बस वही से शुरुआत हो गई। आज सन 2008 में मेरी नई रचना आई है "रेणु" के नाम से। यह है मेरा सफर। नीचे दिया इनका जीवन परिचय उसी किताब से लिया गया है। जिसका प्रकाशन "भारतीय साहित्य कला प्रकाशन ने किया हैं। जीवन परिचय देने के लिए राव जी का दिल से शुक्रिया ।
जिदंगी के पन्नों पर कुछ ऐसा लिखा जाए, जो पवित्र पुस्तक की तरह सुबह शाम पढा जाए - स्वेट मार्डेन
श्री लक्ष्मण राव का जन्म 22 जुलाई, 1954 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले में एक छोटे से गाँव तडेगांव दशासर में हुआ। उन्होंने मराठी भाषा में माध्यमिक कक्षाएं, दिल्ली तिमारपुर पत्राचार विधालय से उच्चतर माध्यमिक व दिल्ली विश्वविधालय से बी.ए. उर्तीण किया। जब लक्ष्मण राव जी ने दसवीं कक्षा पास करके महाराष्ट के अमरावती शहर में, सूत मिल में टेक्सटाइल मज़दूर के रुप में काम किया तो कुछ दिनों के बाद वह मिल बिजली कटौती के कारण बंद हो गई। राव जी अमरावती से अपना सामान उठाकर गांव चले गए। वहाँ वे खेती का काम करने लगे। वे हमेशा मानसिक तनाव से ग्रस्त रहने लगे। एक महीने के बाद मई महीने में पिताजी से झूठ बोलकर 40 रुपये लिये और गांव से भोपाल आ गए। यहां तक 40 रुपये समाप्त हो गये। लक्ष्मण राव भोपाल में ही एक भवन पर पांच रुपये रोज़ से बेलदार का काम करने लगे। तीन महीने भोपाल में रहकर 30 जुलाई 1975 को जी.टी. एक्सप्रेस से दिल्ली आये। दिल्ली में दो तीन बिरला मंदिर की धर्मशाला में ठहरे। काम ढूंढ रहे थे पर मिल नहीं रहा था। जीवन के कठिनतम समय पर राव जी ने ढाबों पर बर्तन साफ करने का काम स्वीकार किया। दो वर्ष लगातार यही चलता रहा, कभी ढाबों पर बर्तन साफ करना, कभी भवनों पर मज़दूरी करना आदि। 1977 में दिल्ली जैसे भीड़ भरे शहर में आई. टी.ओ. के विष्णु दिगम्बर मार्ग पर राव जी पेड़ के नीचे बैठकर पान-बिड़ी, सिगरेट बेचने लगे। वस्तुत: उनकी छोटी सी दुकान दिल्ली नगर निगम व दिल्ली पुलिस अनेक बार उजाड़्ती रही पर उन्होंने एक सफल साहित्यकार बनने का सपना अधूरा नहीं छोड़ा। राव जी दरियागंज के रविवारीय पुस्तक बाज़ार में जाकर अध्ययन करने हेतु पूरे सप्ताह भर के लिए साहित्य खरीदकर लाते थे। उन्ही दिनों उन्हें साहित्य सम्राट शेक्सपीयर, यूनानी नाटककार सोफोक्लीज का पता चला। इसी तरह मुन्शी प्रेमचंद, शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय आदि साहित्यकारों की पुस्तकों का अध्ययन करने लगे। लक्ष्मण राव जी का पहला उपन्यास ' नई दुनिया की नई कहानी' 1979 में प्रकाशित हुआ। उस समय वे चर्चा का विषय बन गए। एक पानवाला उपन्यासकार, लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था। परंतु टाइम्स आफ इंडिया के संडे रिव्यू में उनका परिचय प्रकाशित हुआ। यह बात एक फरवरी 1981 की है। तब उनके कार्य पर लोगों को विश्वास होने लगा। साहित्यकार लक्ष्मण राव जी को अग्रेंजी भाषा का भी ज्ञान हैं। अग्रेंजी समाचार पत्र व पुस्तकें पढना उनका प्रतिदिन का नियम है। अमेरिका से प्रकाशित साप्ताहिक टाइम पत्रिका पढ़ना उनका शौक बन गया है।
सम्मान
भारतीय अनुवाद परिषद सहित लगभग 11 संस्थाओं से सम्मान।
अबतक का लेखन
साहित्य की रचनाएं
1. नई दुनिया की नई कहानी 2. रामदास 3. शिवअरुणा 4. सर्पदंश 5. साहिल 6. पत्तियों की सरसराहट 7. प्रात: काल 8. नर्मदा 9. रेणु
सामाजिक हिनी नाटक
1. राष्ट्पति 2. प्रधानमंत्री 3. प्रशासन
वैचारिक हिन्दी साहित्य
1. द्रषिटकोण 2. अंहकार 3. परम्परा से जुड़ी भारतीय राजनीति 4. समकालीन संविधान 5. अभिव्यक्ति 6. मौलिक पत्रकारिता
आत्मकथा एंव जीवनी
1. साहित्य व्यासपीठ ( आत्मकथा) 2. संयम ( राजीव गाँधी की जीवनी)
चर्चा
बहुत सारी देश-विदेश की प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में चर्चा
नोट: राव जी का फोटो www.tribuneindia.com से लिया गया है। इसके लिए उनका शुक्रिया।
आप इस लिंक से भी इनके बारें में पढ सकते हैं।
16 comments:
लक्ष्मण राव जी का परिचय बहुत अच्छा लगा जिसमें उनकी सादगी और संवेदनशीलता की झलक मिलती है.
pahchan karane ke tahedil se shukriya hai sushil ji...
वाह हिम्मत हो तो क्या नही हो सकता है .प्रेणादायक है यह जानकरी शुक्रिया
लक्ष्मण जी से परिचय करवाने का शुक्रिया।
एक आइना ये भी है जिंदगी का ......सच में कई लोग अपनी तरह के अलग लोग होते है.......अलग.....
लक्ष्मण राव जी का परिचय अच्छा है और साथ में ढेर सारी जानकारी देने के लिए शुक्रिया
बहुत साल पहले किसी अखबार में, शायद दैनिक भास्कर में लक्ष्मण रावजी के बारे में पढ़ा था. उसकी कटिंग शायद अब भी रखी हो.
लक्ष्मणजी जैसे लोग हमारे समाज के हीरो हैं और एसी कमरों में बैठकर साहित्यालोचना करने वालों के मुंह पर तमाचा
हमारी राष्ट्रीय संस्थाएं, संस्कृति मंत्रालय, साहित्य अकादमी केवल गिद्धों का जमावड़ा बन कर रह गई हैं जिन्हें साहित्य नहीं नोटों से मतलब है.....असली साहित्य साधना तो राव जैसे लोग कर रहे हैं
is sahitya sevi viral vinayi vyakti se parichay karwaane ke liye bahut bahut dhanyawaad.
Ye sach me karmayogi hain jinhone kisi kaam ko kam nahi samjha aur kisi haalaat ko apne sahitya seva par haavi nahi hone diya.
Is parichay hetu punashch dhanyawad
चाय पीकर लिखने वालों
चाय पिलाकर लिखने वाले
मौजूद हैं इस जहां में
और पूरी हिम्मत के साथ
अपनी बात रख रहे हैं
उस जज्बे को सलाम है
सुशील जी की पारखी नजर
के हम कायल हो गए हैं।
- अविनाश वाचस्पति
लक्षमण राव जी के बारे में पहले कहीं पढ़ा सुना था। फ़िर दिमाग से धुँधला गया था। ओ हेनरी जेल में बैठकर कहानियाँ लिख सकते थे यह अजीब नहीं लगता मगर कोई अपने यहाँ चाय बेचकर लिख सकता है यह अजूबा लगता है। पता नहीं क्यों। सोचने लायक बात है।
nice to meet laxman ji thru ur post.thanx
सुशील जी,
हम जैसे लोग जो तमाम सुविधाओं के बाद भी भुनभुनाते रहते हैं, उनके लिए लक्ष्मण राव जी प्रेरणा तो हैं ही , अपनी जिद को जीने का एक ज्वलंत उदाहरण भी हैं. सलाम है ऐसी शख्सियत को !!
तुषार धवल
बहुत सुंदर और प्रेरणादायक है लक्ष्मण जी का जीवन. पहले बी बी सी पर पढा था उनके बारे में. धन्यवाद!
प्रेरणादायक चरित्र
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