Saturday, August 30, 2008

व्यथा एक जीवन की

पेड़

धूप में तपता
ठंड में अकड़ता
बारिश में खिलता
ये पेड़ यू ही डटा रहता।

कोई थका मादा जब इसके पास आता
इसकी छाया में थकान मिटा, एक नई ऊर्जा लेकर जाता
जब भी माँगा किसी ने एक लकड़ी का टुकड़ा
अपने घर का चूल्हा जलाने को
खुशी-खुशी वह लकड़ियाँ देता रहता।

पर कोई नहीं पूछता उससे
उसके दिल की बातें
उसके अरमान
उसके सपने
उसके दुख

6 comments:

नीरज गोस्वामी said...

पेड़ के माध्यम से बहुत गहरी बात कर गए हैं आप अपनी रचना में...बहुत खूब
नीरज

मीत said...

पर कोई नहीं पूछता उससे
उसके दिल की बातें
उसके अरमान
उसके सपने
उसके दुख
sunder bahut sunder hai....
saxh mein pedho mein bhi to jaan hoti hai...
pr koi nahin sochta unke bare main...

डॉ .अनुराग said...

गुलज़ार ने भी कभी एक बेहद खूबसूरत नज़्म लिखी है इसी बात पार कभी मौका मिलेगा तो आपको पढ़वायूँगा ......

रंजू भाटिया said...

पेड़ के माध्यम से बेहद सच्ची बात कही आपने सुशील जी ..अच्छी लगी आपकी यह रचना

pallavi trivedi said...

kam shabdon mei behad gahri baat....sundar.

Smart Indian said...

बहुत सुंदर! यही तो देवत्व है एक पेड़ का!

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