Thursday, July 3, 2008

बुढ़ापा हमारा तुम्हारा

बुढ़ापा

गुम-सुम सा बैठा सोचता वह रहता हैं
हाथ की लकीरों में अतीत को वह देखता रहता हैं

चेहरे की झुर्रीयों में मुस्कान उसकी कहीं छिप जाती हैं
सांसो की धड़कनों में दिल की बात उसकी कहीं रुक जाती हैं

स्कूल जाते बच्चों में अपना चेहरा वह ढूढ़ता हैं
चिडियों की चहचाहटों में मन उसका उछलने को करता हैं

जो मिला खाया पीया पहना, वह करता है
कभी कभी बच्चों सी फरमाईश भी वह करता हैं

उठता हैं चलता हैं रुकता हैं फिर से चलता हैं
कांपते हाथों से चीजें बड़े करीने से वह रखता हैं

जो कभी करता था अपने मन की
आज सपनो को तकिये के नीचे छुपाया वह करता हैं

एक छोटे से कमरे में बैठा अपनो की वह राह तकता हैं
फिर भगवान से भावुक हो कर गिले शिकवे खूब वह करता हैं

जब नींद नही आती उसकी आँखो में
तब रात को उठ-उठ कर बैठा वह करता हैं



10 comments:

महेन said...

इस सब को बुढ़ापे तक स्थगित करते चलें। ये दिन तो आने ही हैं। आशा है बुरे नहीं होंगे। :)
शुभम।

राजीव तनेजा said...

अभी तो कुछ और साल अपनी मर्ज़ी से मस्ती में जी लें...बाद में तो यही दिन आने हैँ...यही दिन देखने हैँ

कुश said...

एक और सच्चाई से सामना कराया है आपने..

जो कभी करता था अपने मन की
आज सपनो को तकिये के नीचे छुपाया वह करता हैं

ये पंक्तिया बहुत कुछ बयान करती है

art said...

honi to aani hi hai...

Anonymous said...

एक सच्‍चा चित्र
जो दर्पण बनता है
एक दिन
वास्‍तविकता में
घटता है
एक दिन
जीवन में
जुड़ता है
दिन दिन.

-अविनाश वाचस्‍पति

Anonymous said...

vakai bahut aachi rachana ki hai. badhai ho.

रंजू भाटिया said...

बुढापा .सच में ठीक ऐसा ही होता है जैसा आपने अपने लफ्जों में ढाला है ..पर यही जिंदगी की नियति है ..खूब भावों में पिरोया है आपने इस सच को

Udan Tashtari said...

कठोर सत्य.

डॉ .अनुराग said...

स्कूल जाते बच्चों में अपना चेहरा वह ढूढ़ता हैं
चिडियों की चहचाहटों में मन उसका उछलने को करता हैं

जो मिला खाया पीया पहना, वह करता है
कभी कभी बच्चों सी फरमाईश भी वह करता हैं

उठता हैं चलता हैं रुकता हैं फिर से चलता हैं
कांपते हाथों से चीजें बड़े करीने से वह रखता हैं

जो कभी करता था अपने मन की
आज सपनो को तकिये के नीचे छुपाया वह करता हैं



पता नही क्यों भावुक हो गया हूँ....पढ़कर ..बहुत कुछ दिल में उतर गया है.......क्या कहूँ......आपने ....बस.......

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

उठता हैं चलता हैं रुकता हैं फिर से चलता हैं
कांपते हाथों से चीजें बड़े करीने से वह रखता हैं
Bahut sundar baat kahi hai. Badhayi.

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