Monday, April 7, 2025

पिताजी और इनका कबाड़खाना


दरअसल अभी काजल जी ने कबाड़खाने की बात की. और उनका मानना है कि इस कबाड़ में से कुछ ना कुछ काम का जरुर निकल जाता है, जोकि सच बात है. और कबाड़खाने की बात पढ़कर मुझे भी बहुत कुछ याद आने लगा.


अंकलजी, कोई छोटा-सा लकड़ी का गुटका है.

क्या करना है. 

बस यहां सपोर्ट के लिए चाहिए.

अच्छा देखता हूं.

ये लो. 

ऐसा ही तो चाहिए था.


चाचा एक तीन एक फुट का पाइप है क्या? 

क्या करना है?

यहां जोड़ना है.

देखता हूं. 

ये लो. 


अंकलजी.

हां. 

एक तार चाहिए. 

कितना बड़ा?

हो कोई तीन-एक मीटर का. 

देखता हूं.वैसे करना क्या है?

कम पड़ गया तार.

अच्छा देखता हूं. 

ये लो.



अंकलजी.

हां 

एक नट चाहिए था. एक-दो इंच का. 

देखता हूं. 

ये देखो. इससे काम बन जाएगा. 

हां बन जाएगा. 


जब भी कोई मिस्त्री हमारे घर आता है. तब इस प्रकार की बातचीत हमारे घर में सुनने को जरुर मिल जाती है.  वैसे हर घर की तरह एक कबाड़खाना हमारे घर में भी है, जिसके इंचार्ज हमारे पिताजी हैं. मजाल है कि कोई भी सामान बाहर फैंकने दें. उनका मानना है कि हर बेकार चीज का इस्तेमाल हो सकता है. बस फर्क इतना सा है कि उसका इस्तेमाल आज नहीं लेकिन एक ना एक दिन तो जरुर होगा. और यह बात सच है. और एक बार मुझे भी महसूस हुई. 

शायद कोरोना के समय 2020 के आखिर दिनों की बात है. घर में एक नई रसोई का निर्माण होना था.और उसकी जगह बननी थी हमारे कमरे में से, जिसकी वजह से हमारा कमरा छोटा होना था.  इसी वजह से हमारी किताबों की अलमारी को हटाना पड़ा था. तब मुझे ख्याल आया कि इस अलमारी को कबाड़ी को देने से अच्छा है कि इसे बेटी के स्कूल को दे दिया जाए. और इसके साथ कुछ किताबें भी. पिताजी कहते रह गए कि इसे स्टोर रूम में रख दो. बाद में काम आ जाएगी. माना करो मेरी बात.वे कहते रहे.लेकिन मैं नहीं माना. मुझे लगा कि स्कूल में अलमारी और किताबें जाएंगी तो ज्यादा अच्छा होगा. खैर अलमारी और किताबें स्कूल को दे दी गईं. लेकिन पिछले साल की बात है. जब किसी काम के लिए एक अलमारी की बेहद आवश्यकता हुई तो मुझे उस अलमारी की बहुत याद आई. नई अलमारी के लिए पैसे नहीं थे. तब पिताजी की कही बात भी याद आई कि इसे स्टोर रूम में रख दो. बाद में काम आ जाएगी. खैर! 

बल्कि एक बात और नमूने के तौर बताता हूँ कि एक लोहे का बहुत मजबूत, बड़ा पाइप था, जो हमारे घर तब आया था जब हमारे घर पहली बार बिजली आई थी. तब इस लोहे के पाइप के अंदर से बिजली के केबल के तार गए थे खंभे तक. ये पाइप इतना मजूबत है कि दो दिन पहले ही सबसे नीचे के लेंटर के सपोर्ट में काम आया है. सोचकर देखूं तो ये पाइप 45 साल से भी ज्यादा पुराना है, जोकि आजतक केवल पिताजी के कारण घर में रखा हुआ था.हमने कितनी बार कहा कि इसे बेच दो. इसे किसी को दे दो. लेकिन वे नहीं माने और आज ये घर के सपोर्ट में काम आया. ऐसे ही ना जाने कितने उदाहरण होंगे मेरे पास.बाकी आप तस्वीरों से भी अंदाजा लगा सकते हैं. वैसे तो पिताजी और इनके कबाड़ख़ाने पर लिखने के लिए बहुत कुछ है और बहुत मन भी है लेकिन फिलहाल इतना ही. बाकी फिर कभी.


 

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