एक बार बेटी ने कहा था..
पापाजी आपने मेरी 'आप-आप' कहकर आदत खराब कर दी.
क्यूं भई. क्या हुआ?
पता है. अब कोई मुझे 'तू' बोलता है तो अच्छा नहीं लगता!
तब यह बात मैंने यूं ही हंसी-हंसी में सुनी-अनसुनी कर दी थी. लेकिन पिछले दिनों एक दोस्त के साथ एक वाक्य घटा देखा-सुना तो यह बात याद हो आई.
दरअसल पिछले दिनों जब वह (मेरा दोस्त) अपने दोस्तों से मिलने जा रहा था. तो अपने एक दोस्त के घर के पास से जानबूझकर गुजरा कि क्या पता उसका उसके दोस्त से आमना-सामना हो जाए. क्योंकि पिछले कुछ सालों से उसकी राहें और उसके दोस्त की राहें अलहदा-अलहदा हो गई थीं. राहें बेशक अलग-अलग हो गई थीं लेकिन शायद 'कुछ था' जो उसे और उसके दोस्त को जोड़े हुए था. वैसे भी उन दोनों के बीच 32 साल पुरानी दोस्ती जो थी. और इसी 'कुछ' की वजह से जब-जब भी उसके दिल से मुलाक़ात की आवाज निकलती. तब-तब बेशक उन दोनों मुलाकात ना हो पाती हो लेकिन आमना-सामना तो हो ही जाता था. और उसे इसी बात से सुकून मिल जाता था कि वो ठीक है. स्वस्थ है.
और इस बार उसकी मुलाकात उसके दोस्त से हो गई थी. वो दोनों के कॉमन दोस्तों के बीच खड़ा था. उसका दोस्त आया और सबसे हाथ मिलाता रहा. जब उससे हाथ मिलाने की बारी आई तो उसके दोस्त का हाथ उससे हाथ मिलाने को बढ़ा ही नहीं. शायद कोई वजह रही होगी. कोई गिला रहा होगा.
खैर उसने यह बात कहकर बात को आगे बढ़ाया कि ' क्या बात जो मेरे से हाथ नहीं मिलाया.
' खैर उसके दोस्त का हाथ बढ़ा. यह कहते हुए कि ''आप' लोग तो वीआइपी हो. बड़े लोग हो. 'आप' लोगों से मैं कहां हाथ मिला सकता हूं.'
'आप' शब्द की ध्वनि उसके कानों में से ऐसे गुजरी जैसे किसी ने उसे कुछ भला-बुरा कह दिया हो. या फिर किसी ने उसके दिल पर चोट कर दी हो. वो 'आप' शब्द की टिस लिए अपने दोस्त से बोल उठा कि 'मैं तेरे लिए कब से 'आप' हो गया.
' उसका दोस्त बोला,' जब से मुझे दुनियादारी की समझ आ गई है.
' वो कटाक्ष पर कटाक्ष सुनता रहा और अंदर ही अंदर बिलखता रहा. और फिर जब उससे रहा नहीं गया तो एक साइड होकर आसमां की तरफ देखता रहा. शायद दोस्ती के पुराने दिनों को याद कर मानो बोल रहा हो,'दोस्ती क्या सिर्फ लेन-देन से होती है! यानि जब तक एक दूसरे के काम आते रहो, एक हाथ दो, दूसरे हाथ लेते रहो.या फिर दूसरे हाथ से लेते रहो, पहले हाथ से देते रहो तो ठीक वरना एक बार साथ ना दे पाओ तो दोस्ती टूट जाती है!'
खैर अपने मन को हल्का कर वो फिर से ग्रुप में शामिल हो गया. हम सब हंस बोल रहे थे. वो अब गूंगा-सा बिना बोले ही हम सबकी बातें सुनता रहा. और जब चलने यानि विदा होने की बारी आई तो उसके दोस्त ने अबकी बार भी सबसे हाथ मिलाया सिवाय इसके. और उसका दोस्त बायं राह की तरफ मुड़ गया. और ये मेरे साथ हाथ ना मिलाने की टिस लिए दाएं राह की तरफ चल दिया.
और मैं यह सब लिखते हुए सोच रहा हूं कि जीवन के रंग कितने अजीब होते हैं. बेटी 'तू' कहने से परेशान थी. और मेरा दोस्त 'आप' कहने से परेशान है!