1.
हांफती सांसों से
कांपते हाथों से
एक बुजुर्ग पिता
सुबह से शाम तक
लगा रहता है
कुछ पुराना तोड़ता हुआ
कुछ नया रचता हुआ
वहीं मैं बस
खड़ा रहता हूं
एक गिल्ट के सहारे.
2.
बहुत से पिता अपनी जरूरतों के बारे में नहीं बताते. दरअसल उन्होंने शुरू से घर चलाने के चक्कर में अपनी जरूरतों को कम करके जीना सीख लिया होता है. उनकी जरूरतों को समझने के लिए आपको उन्हें समय देना होता है. उनसे बात करनी होती है. फिर बातों में से बातें निकालकर थोड़ा-थोड़ा समझना पड़ता है. फिर उनके लिए उन चीजों को बिना बताए लाना होता है. क्योंकि पूछने पर वे मना कर देते हैं. कहते हैं 'इसकी क्या जरूरत है.' लेकिन एक बार चीज आ जाती है तो वे खुशी-खुशी उसका उपयोग करने लग जाते हैं. वरना तो वे समझते हैं कि बुढ़ापा है, बुढ़ापे में क्या ही करना इन सब चीजों का. बुढ़ापा है धीरे-धीरे कट जाएगा.
[ तस्वीर प्रतीकात्मक है.]