Monday, June 21, 2010

बम्बई वाला मेरा दोस्त

कुछ इंसान यूँ मिलते हैं कि उस नीली छतरी वाले की तरफ मुँह उठाकर पूछना पड़ता हैं कि यार गज़ब खेल है तुम्हारा। और फिर उस इंसान से ऐसा तालमेल बैठता है कि आप याद करें या वो, मोबाइल की घंटी बज ही उठती हैं। जैसे अभी अभी हवाओं के साथ संदेश गया हो कि यार आपका दोस्त याद कर रहा हैं आपको। और हम फिर से मुँह उठाकर उस नीली छतरी वाले की तरफ देखते हैं। तो आज उन्हीं दोस्त की एक रचना पेश कर रहा हूँ जो मेरे जन्मदिन पर पिछले साल लिखी गई थी। और यह रचना मुझे हर वक्त हौंसला देती है. 





तुम निडर हो, तुम अडिग हो
पथिक तुम, चलते जाना।

जीवन पथ की दुख व्यथा से
तनिक भी न तुम घबराना।

इस प्रलय के वक्ष स्थल पर  
चढ़कर तुम हुंकार लगाना। 

हँसते रहना, चलते रहना
दुख को अमृत सा पी जाना।

तुम शक्ति हो, तुम भक्ति हो
धर विश्वास तुम बढ़ते जाना।

सच्चे मन से मीत तुम्हारे लिए
मेरी बस यहीं शुभकामना।
 -अमिताभ श्रीवास्तव


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