प्यार और कविता
प्यार करने
और किताब पढ़ने में
कोई अंतर नहीं होता
कुछ किताबों का हम
मुख-पृष्ट देखते हैं
अदंर से बोर करती हैं
पन्ने पलट देते हैं
और रख देते हैं
कुछ किताबें हम रखते हैं
तकिए तले
अचानक जब नींद खुलती हैं
तो पढ़ने लगते हैं
कुछ किताबों का
शब्द-शब्द पढ़ते हैं
उनमें खो जाते हैं
बार-बार पढ़ते हैं
रुह तक घुल-मिल जाते हैं
कुछ किताबों पर
रंग-बिरंगे निशान लगाते हैं
और कुछ किताबों के
नाजुक पन्नो पर
निशान लगाने से भी
भय खाते हैं
प्यार करने और किताब पढ़ने में
कोई अतंर नही होता
सतिंदर सिंह
साभार- किताब का नाम - "ओ पंखुरी" ,चयन व अनुवाद राम सिहं चाहल, प्रकाशन - संवाद प्रकाशन मेरठ (जिन जिन के सहयोग से ये कविताएं हमारे तक पहुँची उन सभी को दिल से शुक्रिया)
बहुत आभार आपका इस कविता को पढवाने के लिये !
ReplyDeleteराम राम !
सही कहा है कविता में,
ReplyDeleteप्रेम भी तो एक किताब ही है, ढाई अक्षर की किताब...
तभी तो कहा गया है ...
पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भयो न कोय...
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े तो पंडित होय...
क्यों सही कहा ना...?
अच्छा रचना से परिचय करवाने के लिए आभार...
---मीत
इस कविता को पढ़कर जाने क्यों रात का वाकया याद आ गया जब मैंने खाली वक़्त बिताने ओर नींद की खुमारी में धर्मवीर भारती की लम्बी कहानी "इस गली का आखिरी मकान "पढ़ना शुरू की.....ओर एक साँस में पढता रहा......लगा जैसे भाषा शिल्प से कई बार संवेदनाये बड़ी होती है.....देर रात तक वो कहानी मेरे साथ रही
ReplyDeleteइन कविताओं को पढ़वाने का शुक्रिया सुशील जी ..बहुत अच्छी लिखी गयीं हैं यह
ReplyDeleteसुन्दर कविता पढवाने के लिये आपका आभार..
ReplyDeleteकभी कभी जिन्दगी कब बीत जाती है पता ही नहीं चलता और कभी कभी एक एक पल भारी लगता है...दोनों ही प्यार या गम के कारण के कारण हो सकते हैं..
शिव बटालवी ने लिखा है
किन्नी वीती ते किन्नी वाकी है
मैनू एयीहो हिसाव ले बैठा
"शिव" नूं इस गम ते ही भरोसा सी
गम तो कोरा जबाब ले बैठा
कुछ किताबों के
ReplyDeleteनाजुक पन्नो पर
निशान लगाने से भी
भय खाते हैं
-kitna sundar likha hai--
satinder ji ko badhayee aur aap ko dhnywaad.
punjaabi bhaasha mein likhi kavita hindi mein anuvadit ho kar bhi apni bhaav-sundarta banaye hue hai.
Achchi kavita hai.Badhai.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है ...धन्यवाद...
ReplyDeleteबडी़ प्यारी कविता पढ़वाई आपने . धन्यवाद.
ReplyDeleteनाजुक पन्नो पर
ReplyDeleteनिशान लगाने से भी
भय खाते हैं
बेहतरीन नज़्म...बहुत बहुत शुक्रिया सुशील जी ऐसी कमाल की नज़्म पढ़वाने के लिए...वाह.
नीरज
बहुत बहुत धन्यवाद इस कविता को हम तक पहुचाने का
ReplyDeletebahut bahut shukriya susheel ji itani badiya rachana se do char karwane ka. aap hamesha achhi rachna lekar aate hai.
ReplyDeleteसुशील जी.....आपके गुरुवर ने बिल्कुल ठीक कहा था आपके बारे में....मैं भी इससे सहमत हूँ....आपका टेस्ट वाकई अद्भुत है....आपकी रचनाएं और आपके द्वारा पसंद की गई रचनाये सब-की-सब बड़ी ही अच्छी लगीं....आपके ब्लॉग के इस पृष्ठ को समूचा ही देख गया मैं....सब कुछ ही तो पसंद आया मुझे....सच....!!
ReplyDeleteवाह! क्या तुलनात्मक चित्रण था। प्यार और किताब के साथ इंसानी जज़्बातों को जिस तरह से आपने जोड़ा है... अद्भुत...
ReplyDeleteaapne bahut hi bada kaam kiya hai , jo in rachnao ko hamse milwa diya hai ...
ReplyDeletekavitayeen padkar man bhaavpoorn ho gaya...
aapko bahut dhanyawad aur badhai
pls visit my blog for some new poems....
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
aapka bahut dhanyavaad aapne yeh kavita padhwayi.........kabhi kabhi aise anokhe tulnatmak mishran milte hain ..........kitab aur pyar........bahut achche
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