सांझ का सपना
सांझ का सपना,ज़िंदा रखो।
प्यार का जज़्बा, ज़िंदा रखो॥
मैं-मेरे से, ऊपर उठो।
तू-तेरे से, ऊपर उठो॥
ख़ुदग़र्ज़ी का, झंझट छोडो।
देव्ष ईर्ष्या, जड से उखाडो॥
सब को समझो, एक बराबर।
सब को प्यारो, एक बराबर॥
ओस पडोस का, पक्ष न मारो।
इक दूजे का, हक़ न मारो॥
हिस्से आता, काम कराओ।
साथी का भी, बोझ उठाओ॥
हर प्राणी का, दर्द बंटाओ।
जानें वार कर, सांझ पुगाओ॥
प्यार का जज़्बा, ज़िंदा रखो।
सांझ का सपना, ज़िंदा रखो॥
यह सपना साकार हो आओ हम सब कोशिश करें ।
यह गाना नाट्क "बब्बी गई कोहकाफ" से है। नाट्क के लेखक श्री चरणदास सिंधू जी है। यह नाट्क वाणी प्रकाशन से संपूर्ण नाट्क- डा. चरणदास सिंधू के नाम से प्रकाशित हुआ है । धन्यवाद सहित ।
wah...bahut khoob likha hai
ReplyDeleteआभार इस प्रेरक गीत को यहाँ प्रस्तुत करने का.
ReplyDeletebahut badhiya geet...dhanyvaad.
ReplyDeleteसुन्दर जज़्बा...अगर कोई माने तो...
ReplyDelete:-)