Monday, April 19, 2010

मर रही है मेरी भाषा शब्द शब्द- सुरजीत पातर

पिछले दिनों एक सम्मेलन में जाना हुआ जहाँ नामचीन लेखकों का जमावड़ा था। इस सम्मेलन को आयोजित किया था फाउंडेशन आफ सार्क राइटर्स एण्ड लिटरेचर संस्था ने। इस संस्था की कर्ता-धर्ता अजित कौर जी है। इनकी और इनके साथियों की मेहनत का ही नतीजा है कि यह संस्था आज भी सार्थक काम कर रही हैं। और मेरा सौभाग्य था कि मुझे बेहतरीन से बेहतरीन रचनाएं सुनने को मिलीं और नए नए विचारों की रौशनी से रुबरु भी हुआ। उन्हीं में से कुछ रचनाएं जो मैं इक़टठी कर पाया हूँ। उन्हें अपने ब्लोगगर साथियों और उन पाठकों के लिए पेश कर रहा हूँ जो नई नई रचनाओं को पढने के लिए मुझ पागल की तरह बैचेन रहते हैं। और नई नई रचनाएं इन पागलों के लिए दवा का काम करती हैं। तो साथियों आज पेश हैं सुरजीत पातर जी की पंजाबी में लिखी कविताएं "भाषा के परथाए" के नाम से। मैं पातर जी का शुक्रगुजार हूँ उन्होंने अपने कीमती समय में से समय निकालकर  यह कविता भेजी। यह कविता मुझे बहुत पसंद आई। और उम्मीद आपको भी बहुत पसंद आऐगी।

भाषा के परथाए

1.

मर रही है। मेरी भाषा शब्द-शब्द
मर रही हैं। मेरी भाषा वाक्य वाक्य
अमृत वेला
नूर पहर दा तड़का
मूंह हनेरा
पहु फुटाला
धम्मी वेला
छाह वेला
सूरज सवा नेज़े
टिकी दुपहर
डीगर वेला
लोए लोए
तरकालाँ
दीवा वटी
खौपीआ
कोड़ा सोता
ढलदीआँ खित्तीआँ
तारे दा चढाअ
चिड़ी चूकणा
साझरा, सुवखता, र्सघी वेला
घड़िआँ, पहर, पल छिण, बिन्द, निमख बेचारे
मारे गये अकेले टाईम के हाथों
ये शब्द सारे
शायद इस लिए
कि टाईम के पास टाईमपीस था

हरहट की माला, कुत्ते की टिकटिक, चन्ने की ओट, गाठी के हूटे
काँजण, निसार, चककलियाँ, बूढ़े
भर भर  कर खाली होती टिंडे
इन सब को तो बह जाना था
टिऊब वैल की धार में
मुझे कोई हैरानी नहीं
हैरानी तो यह है कि
अम्मी और अब्बा भी नहीं रहे
बीजी और भापा जी भी चले गये
और कितने रिशतें
अकेले आँटी और अँकल कर दिये हाल से बेहाल
और कल पंजाब के एक आँगन में
कह रहा था एक छोटा सा बाल:
पापा अपणे ट्री दे सारे लीव्ज कर रहे ने फाल
हाँ पुत्तर अपणे ट्री दे सारे लीव्ज कर रहे ने फाल
मर रही है अपणी भाषा पत्ता-पत्ता शब्द शब्द
अब तो रब ही रखा हैं अपनी भाषा का
पर रब?
रब तो खुद पड़ा है मरनहार
दोड़ी जा रही हैं उस की भूखी सँतान
उसे छोड़
गौड की पनाह में
मर रही है मेरी भाषा
मर रही हैं बाई गौड











2.
मर रही है मेरी भाषा
क्योंकि जीना चाहते है
मेरी भाषा के लोग
जीना चाहते हैं
मेरी भाषा के लोग
इस शर्त पर भी
कि मरती हैं तो मर जाये भाषा
क्या बँदे का जीते रहना
ज्यादा जरुरी हैं
कि भाषा?
हाँ जानता हूँ
आप कहेंग़े
इस शर्त पर
जो बँदा जीवित रहेगा
वह जीवित तो रहेगा
पर क्या वह बँदा रहेगा?
आप मुझे जजबाती करने की कोशिश मत करे
आप खुद ही बताएँ
अब
जब आपका रब भी
दाने दाने पर
खाने वाले का नाम
अँगरेजी में ही लिखता हैं
तो कौन बेरहम माँ बाप चाहेगा
कि उस की सँतान
डूब रही भाष के जहाज में बैठी रहे

जीता रहे मेरा बच्चा
मरती हैं तो मर जाए
तुम्हारी बूढ़ी भाषा









3.

नहीं इस तरह नही मरेगी मेरी भाषा
इस तरह नहीं मरा करती कोई भाषा
कुछ शब्दों के मरने से
नहीं मरती कोई भाषा
रब नहीं तो न सही
सतगुरु इस के सहाई होगे
इसे बचाऐगे सूफी सँत फकीर
शायर
आशिक
नाबर
योद्धे
मेरे लोग, हम, आप
हम सब के मरने के बाअद ही
मरेगी हमारी भाषा
बलकि
यह भी हो सकता है कि मारनहार हालात में घिर कर
मारनहार हालात से टक्कर लेने के लिए
और भी जीवँत हो उठे मेरी भाषा॥












सुरजीत पातर जी को दिल से शुक्रिया।

19 comments:

  1. भारतीय भाषाओं को बचाने के उपायों में एक उपाय यह भी है कि जिस चीज को अपनी भाषा और लिपि में लिखा जा सकता हो उसे अंग्रेजी भाषा और लिपि में न लिखा जाय बल्कि अपनी भाषा/लिपि में लिख जाय।

    "FOUNDATION OF SAARC WRITERS AND LITERATURE" को 'फॉउन्डेशन ऑफ सार्क राइटर्स ऐण्ड लिटरेचर' लिखना अधिक श्रेयस्कर होता (खासकर आप जैसे आदमी के लिये)

    और इसका पूर्णत हिन्दीकरण करके भी लिखा जा सकता था। वह भी बेहतर होता।

    हम यह क्यों सोचते हैं कि हिन्दी के पाठक को रोमन और अंग्रेजी आना जरूरी है।

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  2. अनुनाद सिंह जी आपकी राय का महत्व समझते हुए उसे बदल दिया गया। इस बात का टाईप करते वक्त ध्यान ही नही गया। शुक्रिया आपका। वैसे रचना कैसी लगी आपको?

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  3. यक़ीनन एक बेहतरीन आदमी के दिल से निकली एक पीड़ा कविता के रूप में बाहर आयी है .पहली कविता अच्छी लगी

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  4. बेहतरीन्………………शानदार्…………………दिल का सारा दर्द उतर आया है।

    नैना
    मम्मी को कहो आपको किताबें दे दें नही तो पापा से शिकायत कर देना…………हा हा हा।

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  5. बहुत बढ़िया ....शुक्रिया इसको यहाँ पोस्ट करने का ...हर लफ्ज़ सच्चा है

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  6. बहुत सुंदर ढंग से आप ने हम सब के दिल का दर्द इस लेख मै लिखा है, हम जिस देश मै रहते है, जिस भाषा मै जन्मे पले उस भाषा से बहुत प्यार हो जाता है, जब कोई उसे खराब करे तो दुख होता है.वो भाषा ही हमारी पहचान होती है
    धन्यवाद

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  7. दिल को छू लेने वाले भाव। अफसोस होता है जब अपनी ही भाषा से विमुख लोगों से मिलते है। रोज़मर्रा में भी जिन्हें इसे बोलने में कष्ट होता है ऐसे में भाषा के प्रति संवेदनशीलता तारीफेकाबिल है।

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  8. पीड़ा को मुखरित करती बेहतरीन कविता. आभार आपका.

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  9. बहुत ही सशक्त, शुभकामनाएं.

    रामराम

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  10. सुंदर प्रस्‍तुति‍

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  11. नहीं इस तरह नही मरेगी मेरी भाषा
    इस तरह नहीं मरा करती कोई भाषा
    कुछ शब्दों के मरने से
    नहीं मरती कोई भाषा
    रब नहीं तो न सही
    सतगुरु इस के सहाई होगे
    इसे बचाऐगे सूफी सँत फकीर
    शायर
    आशिक
    नाबर
    योद्धे
    मेरे लोग, हम, आप
    हम सब के मरने के बाअद ही
    मरेगी हमारी भाषा...


    सुरजीत जी की लेखनी के तो हम भी फैन हैं ......!!

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  12. अनमोल रचनाएँ हैं...कुछ शब्द तो अन्दर तक गुदगुदा गए...भूले बिसरे शब्द जो मेरी माँ दादी बोला करती थी...वो भाषा जिस के शब्द सुन कर रोआं रोआं खिल जाए कैसे मर सकती है भला?
    बहुत बहुत शुक्रिया सुशील जी इन अद्भुत रचनाओं को पढवाने के लिए...देर से आया लेकिन देरी का मलाल नहीं रहा...इतना कुछ मिला यहाँ जो कहीं नहीं मिला....
    नीरज

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  13. Bahut Accha Prayas hai, rachna bahut acchi lagi aapki... shubkamnaye

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  14. बस क्या कहूँ इसके लिए मैं... आपका शुक्रगुजार हूँ की आपने इन रचनाओ से हमें अवगत कराया...
    आप पहले भी ऐसी बेहतरीन रचनाओ से मिलवाते रहें हैं... और उम्मीद है आगे भी परिचय करवाते रहेंगे..
    @ नैना
    नैना बिटिया आपने कितनी किताबे फाड़ी अबतक... मम्मी ने नहीं दी क्या... अरे कोई बात नहीं.. मम्मी को आप मन लो... दे ही देंगी...
    मीत

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  15. भाषा पर लिखी कविता कवि के ही नहीं ना जाने कितने दिलों की बात कह रही है.
    सुरजीत पातर जी की लिखी सभी रचनाएँ बेहद पसंद आई.
    ऐसे ही अपनी पसन्द की उम्दा रचनाएँ पढ़वाते रहीएगा.
    abhaar

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  16. @नैना की शिकायत अभी तक दूर नहीं हुई?कोई नयी बात बताओ नैना..नयी क्लास में क्या हुआ?कौन सी टीचर सब से अच्छी लगती हैं..कितनी सहेलियाँ बनी?

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  17. हम पागलों के लिए आपकी ये दावा काम कर गयी...बहुत ही खूबसूरत...बहुत ज्यादा पसंद आयीं सारी रचनाएँ .....:)

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  18. सुरजीत पातर जी पंजाबी साहित्य के बड़े हस्ताक्षर हैं.उनकी अपनी शैली है, बात कहने की. उनकी रचनाएं पढ़वाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार.

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  19. "जीता रहे मेरा बच्चा
    मरती हैं तो मर जाए
    तुम्हारी बूढ़ी भाषा"

    Kyaa bolaa hai Baap!!!
    Bilkul item hai!!
    :-))

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जो भी कहिए दिल से कहिए।