Wednesday, September 9, 2009

रिश्तें नाते

रिश्तें

रिश्तों के धागे उधड़ने लगे हैं
ना जाने कैसे रिश्तें बनने लगे हैं।

खेले थे जिनकी गौद में कभी
अब वही भारी होने लगे है।

सोचा था बुढ़ापे में मिल जाऐगी दो रोटी
अब तो रोटी के साथ ताने भी मिलने लगे हैं।

कैसी अजब समय की घड़ी है
पैसे रिश्तों को सीँचने लगे है।

कल मिला "सुशील" रास्तें में, बोला
"अब तो माँ बाप के भी बँटवारे होने लगे हैं।"


कुछ दिनों से कुछ घटनाओं को देख कर मन विचलित सा था। सोच रहा था आप साथियों से साँझा कर लूँ। पर दिमाग में शब्द घूम रहे थे पर कागज पर उतरने से मना कर रहे थे। पर कल रात 1 बजे अचानक ही ये शब्द निकलते चले गए और ये तुकबंदी बन गई। पहले सोच रहा था एक लेख लिखूँगा इन घटनाओं पर, पर लिख नही पाया। उससे पहले ही ये तुकबंदी बन गई। देखिए वो लेख कब आता है?

नोट- नैना की पोस्ट को भी देखा जाए जोकि सीधे हाथ पर सबसे ऊपर हैं।

32 comments:

  1. वाह सुशील जी बहुत खुब। आपने इस रचना के माध्यम से वर्तमान समय की सच्चाई को उकेर कर रख दिया। लाजवाब

    ReplyDelete
  2. कैसी अजब समय की घड़ी है
    पैसे रिश्तों को सीँचने लगे है।

    यह तो आज की सच्ची सच्चाई है जी .सही उतरा है आपने इन्हें अपनी पंक्तियों में ..बहुत समय बदल रहा है ..पैसा सच में बहुत बढ़ी चीज बन गया है आज कल

    ReplyDelete
  3. बिलकुल सही कहा है आपने रिश्ते नाम मतलव के रह गये हैं शुभकामनायें

    ReplyDelete
  4. तारीफ के लिये शब्द कम पड़ रहे है…………………………ज़िदगी की यथार्थ सच्चाइयों से रु-ब-रु कराती है रचना ……………………………आज ना जाने किस मोड़ पर आ गये है रिश्ते।
    ऐसा कभी सोचा तो ना था,फिर भी ऐसा हो रहा है।

    ReplyDelete
  5. बहुत सटीक और सामयिक लिखा आपने.

    रामराम.

    ReplyDelete
  6. सोचा था बुढ़ापे में मिल जाऐगी दो रोटी
    अब तो रोटी के साथ ताने भी मिलने लगे हैं......

    RISHTON KE BEECH AB PAISAA AANE LAGA HAI .... BAOOT HI BHAAVOK LIKHA HAI .... LAJAWAAB

    ReplyDelete
  7. याद दिलाया वो गीत :
    "क़स्मे वादे प्यार वफ़ा , सब बातें हैं ,
    बातोंका के ?
    कोई किसीका नही , ये झूठे नाते हैं ,
    नातों का क्या ?"
    अपने जीवन में येभी देखा,कि, कई बार माँ पिता भी अपनी औलाद को नही बख्शते ....जब पराधीनता आ जाती है, तब, उन्हें भी समझ आती है...सिक्के की एक बाज़ू यह भी है..
    एक पीढी तक औलाद ने ज़रूर अपनी ज़िम्मेदारियाँ, हर हाल में निभायी...अब नही..अब ' carrier' अधिक ज़रूरी है..माँ वृद्धाश्रम में जा के रह सकती है..पैसे मिल जायेंगे...वो भी एक मर्यादा के भीतर..

    ReplyDelete
  8. खेले थे जिनकी गौद में कभी
    अब वही भारी होने लगे है।

    ये कविता नहीं है सुशील जी आज का कडुवा भद्दी सच है...इंसान का रवईया अपने ही माता पिता के प्रति कैसे इतना रूखा हो सकता है सोच कर हैरानी होती है...लगता है हमारी संवेदनाएं मर चुकी हैं और हमें सिर्फ और सिर्फ अपना ही सुख दिखाई देता है...
    नीरज

    ReplyDelete
  9. pahle hamari bitiya naina ke liye-
    aapne haath me english ka paper rakhaa he aour pariksha de rahi he hindi ki?? ese kese chalega betu? kher..bahut achhi dikh rahi ho..bhagvaan aapko bahut khoosh aour hamesha avval rakhe.

    to janaab sushilji..ab aapki baari-
    rishto ko lekar jab bhi kuchh likha jata he aap bahut bhaavnamay hokar tatha gahri chije sochkar likhate he/
    अब तो माँ बाप के भी बँटवारे होने लगे हैं।"
    is ek baat ne sach me zahan ko hilakar rakh diya/ sach ko bilkul sachche dil se parosa he aour sochne par mazboor kar diya he/ sach yah bhi he sushilji ki yadi ham is baare me gambhirta se sochate he to isake liye kadam uthaa hi lena chahiye/ kuchh esa kiya jana chahiye jo hamari jimmedaari me sharik ho jaye/
    bahut kuchh likhana chah rahaa hu, aour likhunga bhi..magar baad me/tab tak ke liye chhota sa breck

    ReplyDelete
  10. "कैसी अजब समय की घड़ी है
    पैसे रिश्तों को सीँचने लगे है।"
    ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं...बहुत बहुत बधाई...

    ReplyDelete
  11. बहुत कड़वा सच लिखा है आपने...
    आज जहाँ देखो ऐसा ही देखने को मिलता है माता-पिता बुधे हुए नहीं की बस... आगे कहने को दिल नहीं करा.. सराहनीय रचना...
    मीत

    ReplyDelete
  12. sushil ji,
    ham to in kaduwe rishto se door hi rahte hain.
    waise main soch raha tha ki aaj metro waali post aa gayi hai. chalo agli baar aa jayegi.

    ReplyDelete
  13. सुशील भाई एकदम सही लिखा है आपने..
    पहले लोग मां-बाप के साथ रहा करते थे आजकल मां-बाप उनके साथ रहते हैं...आैलादें इतनी बड़ी जो हो गई हैं

    ReplyDelete
  14. बहुत ही सही लिखा है .......आज कितना कुछ बदल गया है कोई भी चीज आपने जहग पर फिट नही है .......सबकुछ बेमानी सा है ....

    ReplyDelete
  15. सोचा था बुढ़ापे में मिल जाऐगी दो रोटी
    अब तो रोटी के साथ ताने भी मिलने लगे हैं

    अजी नही ...

    अब तो रोटियो की व्जाये गालिया भी मिलने लगी है.
    बहुत खुब लिखा आप ने आप की रचना पढ कर आंखो मै कुछ झलक सा गया... है राम..
    आप का धन्यवाद

    ReplyDelete
  16. नैना बिटिया इस दुनिया ने इतने पाठ पढा दिये कि अब हम यह सब भुल से गये है, ओर तु तो अभी बडी छोटी सी कली है ओर अभी से पढाई कर रही है ?? बहुत प्यारी लग रही है हमारी बिटिया रानी. अकल आंटी की तरफ़ से बहुत सा प्यार

    ReplyDelete
  17. aap jaisi samvedansheelta agar samaj mein bani rahe to log parents se aisa sulook nahin karenge.

    ReplyDelete
  18. ''पैसे रिश्तों को सीँचने लगे है।"

    सही लिखा है...ऐसा होना आम हो गया है.
    -भावभरी रचना.
    ऐसे किस्सों को सुनकर मन भर आता है..न जाने आगे और क्या क्या होगा?

    ReplyDelete
  19. ओर कितना सच लिखे भाई.....कितना ?

    ReplyDelete
  20. Naina bitiya ka post to gajab ka hai.. aapaka post to kahin nahi thaharta hai uske samne.. :)

    use kahiyega ki PD chachoo jald hi uska gana bhej denge.. abhi 1-2 dino me net connection aane vala hai, phir sabse pahle kaam vahi hoga.. :)

    ReplyDelete
  21. सुशील जी,

    नैना बिटिया को जिन्दगी के सारे इम्तेहानों में अव्वल रहने की दुआओं के ढेर।

    जो कुछ लिखा गया है वह महज तुकबंदी नही है, दिल में भरी हुई व्यथा है जो शब्दों में ढल हम तक पहुँची है।

    सोचा था बुढ़ापे में मिल जाऐगी दो रोटी
    अब तो रोटी के साथ ताने भी मिलने लगे हैं।

    बहुत छूता है यह अशआर।

    सादर,


    मुकेश कुमार तिवारी

    ReplyDelete
  22. ये महज तुकबंदियाँ कहाँ सुशील साब....एक सशक्त रचना है
    ’खेले थे जिनकी गौद में कभी / अब वही भारी होने लगे है’...वाह!

    और नैना के पोस्ट ने दिल छू लिया| "पेपर" के साम्य ने ठठा कर हँसने पे बाध्य कर दिया...

    ReplyDelete
  23. bhut shi likha hai .mera nam jokar ka vo geet yad aata hai .mal jiska khata hai geet jiske gata hai uske hi seene me bhokta ktar hai .
    amitabhji ne likha hai kuch karna chhiye to shubhsy sheeghrm .
    kal ka intjar kyo?
    naina bitiya ko khub pyar ashirwad .

    ReplyDelete
  24. apki is rachna se prerit hokar malne ak lghukatha likhi hai aapke nam ke sath use post kar skti hoo kya ?
    dhanywad

    ReplyDelete
  25. naina bitiya,

    aap to bahut badhiya padhna jante ho................hamein bhi sikhaogi........hamein to ab kuch yaad hi nahi rahta.

    ReplyDelete
  26. अच्छी रचना है भाई

    ReplyDelete
  27. "कैसी अजब समय की घड़ी है
    पैसे रिश्तों को सीँचने लगे है।
    "
    Gautam ji ki baat se sehmat....

    ye wakai nazm hai.

    "Deep water flows slowly"

    ReplyDelete
  28. susheel ji

    main kya kahun

    rishte bus ab kuch aise hi ban gaye hai .. bahut hi touchy post .. maine kai baar ise padha ,lekin kuch kah nahi paaya.. aaj bhi kuch kah paane ke stithi me nahi hoon ..

    vijay

    ReplyDelete

जो भी कहिए दिल से कहिए।