Tuesday, July 14, 2009

उठ जाग मुसाफिर

उठ जाग मुसाफिर


उठ जाग मुसाफिर
सुबह को ना जागा , अब तो जाग
जीवन की दोपहर होने को आई है।

सुन साथी
दुनिया पहुँची मंगल पर
फ़िर क्यूं तू ठहरा पेड़ की छाँव में
देख , परख , चल उठ
उठ जाग मुसाफिर
सुबह को ना जागा , अब तो जाग
जीवन की दोपहर होने को आई है।

सुन साथी
किस गली गुम हो गये तेरे सपने
किस कर टूट गये माँ बाप से किये वादे
किधर खो गई तेरी इन्कलाबी बातें
"किसान है कमजोर, आम जन है बीमार और व्यापारी रहते सदा जवान।
इसलिए नही होती कोई क्रांति अपने देश "
सोच समझ , चल दिल में भर इक जोश
उठ जाग मुसाफिर
सुबह को ना जागा , अब तो जाग
जीवन की दोपहर होने को आई है।

सुन साथी
शरीर क्या है। इक मिटटी
आत्मा क्या है। इक अमर तत्व
तू क्या है ? तू क्या होगा ?
इक मिटटी या इक अमर तत्व
शेष अभी भी दोपहर और शाम
चल बढ़ा फ़िर से एक कदम

नोट- बस यूँ ही एक बार फिर से।

34 comments:

  1. बहुत प्रेरक और सार्थक रचना..

    ReplyDelete
  2. वाह एक नया जोश भारती हुई कविता

    ReplyDelete
  3. सुन साथी
    किस गली गुम हो गये तेरे सपने
    किस कर टूट गये माँ बाप से किये वादे
    किधर खो गई तेरी इन्कलाबी बातें
    "किसान है कमजोर, आम जन है बीमार और व्यापारी रहते सदा जवान।
    इसलिए नही होती कोई क्रांति अपने देश "
    सोच समझ , चल दिल में भर इक जोश
    उठ जाग मुसाफिर
    सुबह को ना जागा , अब तो जाग
    जीवन की दोपहर होने को आई है।


    बहुत प्रेरक और सार्थक रचना..

    ReplyDelete
  4. बहुत जोशीली, प्रेरक और सार्थक रचना. शुभकामनाएं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  5. BAHUT URJA SE BHAR GAYE .........BAHUT HI SUNDAR

    ReplyDelete
  6. प्रेरक....... मन में उमंग भरती सुंदर रचना...........

    ReplyDelete
  7. सार्थक चिंतन......जीवन्तता को जगाती रचना....

    ReplyDelete
  8. बिल्कुल--इसी का नाम जिन्दगी है..चल, जाग मुसाफिर!!

    ReplyDelete
  9. bahut badhiya..
    सुन साथी
    किस गली गुम हो गये तेरे सपने
    किस कर टूट गये माँ बाप से किये वादे
    किधर खो गई तेरी इन्कलाबी बातें
    "किसान है कमजोर, आम जन है बीमार और व्यापारी रहते सदा जवान।
    इसलिए नही होती कोई क्रांति अपने देश "
    सोच समझ , चल दिल में भर इक जोश

    aapki kuch layinon to dil ko chhu jati hai..

    sundar rachana,,
    badhayi!!1

    ReplyDelete
  10. प्रेरणा देती एक बढ़िया रचना लिखी है आपने ..बहुत पसंद आई यह पंक्तियाँ
    इसलिए नही होती कोई क्रांति अपने देश "
    सोच समझ , चल दिल में भर इक जोश
    उठ जाग मुसाफिर
    सुबह को ना जागा , अब तो जाग
    जीवन की दोपहर होने को आई है।

    सही कहा ..

    ReplyDelete
  11. सुबह को ना जागा , अब तो जाग
    जीवन की दोपहर होने को आई है।

    बहुप्रेशर जोशीली पंक्तियॉं हैं।

    ReplyDelete
  12. sushilji,
    yatharth aour darshan dono is rachna me samaye hue he.
    किस गली गुम हो गये तेरे सपने
    किस कर टूट गये माँ बाप से किये वादे
    किधर खो गई तेरी इन्कलाबी बातें
    fir
    शरीर क्या है। इक मिटटी
    आत्मा क्या है। इक अमर तत्व
    तू क्या है ? तू क्या होगा ?
    इक मिटटी या इक अमर तत्व ../
    apane saathi ko prerit karne ke liye, usame josh bharne ke liye shbdo ka esa hi 'chvyanpraash'jaroori hota he/
    mujhe pasand aaya.

    note- bs yu hi ek baar fir se...BEHATREEN

    ReplyDelete
  13. सुन साथी
    शरीर क्या है। इक मिटटी
    आत्मा क्या है। इक अमर तत्व
    तू क्या है ? तू क्या होगा ?
    इक मिटटी या इक अमर तत्व
    शेष अभी भी दोपहर और शाम
    चल बढ़ा फ़िर से एक कदम
    बहुत ही भाव पुर्ण, अति सुंदर रचना
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  14. सच का सामना करने का हौसला बढाती ,उमीदें जगाती , जोश भरी कविता है.

    ReplyDelete
  15. जोश से भरी ojsvi rachna आज ase ही geeto कि jarurat है जो आदमी को दिन कि neeid से jga ske .
    bela amrat bhra aalsi सो rha बन abhga
    sathi sare jge तू न jaga.
    shubhkamnaye

    ReplyDelete
  16. सुन साथी
    शरीर क्या है। इक मिटटी
    आत्मा क्या है। इक अमर तत्व
    तू क्या है ? तू क्या होगा ?
    इक मिटटी या इक अमर तत्व
    शेष अभी भी दोपहर और शाम
    चल बढ़ा फ़िर से एक कदम
    वाह क्या प्रेरक कविता की है....
    कलम का बेहतर उपयोग कर रहे हो...
    मीत

    ReplyDelete
  17. बहुत ही सुन्दर व प्रेरक कविता लाजवाब !

    ReplyDelete
  18. susheel ji , deri se aane ke liye ksham chahunga ...

    bahut der se aapki ye kavita padh raha hoon aur ek naye josh me apne aapko bharte dekh raha hoon...

    bahut hi umda aur jeevant abhivyakti aur ye aaj ke daud-bhaag waale jeevan me ek tonic ka kaam kar rahi hai ...

    aapko bahut si badhai ..

    aabhar..

    vijay

    ReplyDelete
  19. आप कई बार चकित करते हो सुशील जी...
    "किसान है कमजोर, आम जन है बीमार और व्यापारी रहते सदा जवान...
    इसलिए नही होती कोई क्रांति अपने देश "

    एक अनूठी रचना, यकीनन!

    ReplyDelete
  20. अजी सुशील जी,
    ये क्या आपने मेरे बारे में लिखा है? आपको कैसे पता कि "जीवन की दोपहर होने को आई है."
    अभी तक तो मैंने किसी को बताया ही नहीं कि परसों मेरा 21 वां बड्डे है.
    चलो इस बड्डे पर मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि जो अभी अभी मैंने पढ़ा है उसे अपने शेष जीवन में उतारूंगा.

    ReplyDelete
  21. सुन साथी
    शरीर क्या है। इक मिटटी
    आत्मा क्या है। इक अमर तत्व


    bahut sahi......

    kya likha hai aapne...... dil ko chhoo gaya sab

    ReplyDelete
  22. Is prabhavi rachna ke liye badhai.

    ReplyDelete
  23. सुन साथी
    शरीर क्या है। इक मिटटी
    आत्मा क्या है। इक अमर तत्व
    तू क्या है ? तू क्या होगा ?
    इक मिटटी या इक अमर तत्व
    शेष अभी भी दोपहर और शाम
    चल बढ़ा फ़िर से एक कदम

    बहुत प्रेरक और सार्थक रचना....!!

    July 14, 2009 12:12 PM

    ReplyDelete
  24. In sab diggajon ke baad kya alagse kahun?

    ReplyDelete
  25. raat hogi tumhari aankhon mein , neend bahar tehal rahi hogi...

    bahut hi behatreen prayog !!

    ReplyDelete
  26. Aapki is rachna mein waqayi bahut gahri baat hai

    isiliye nahi hoti koi kranti ..........


    सुन साथी
    शरीर क्या है। इक मिटटी
    आत्मा क्या है। इक अमर तत्व
    तू क्या है ? तू क्या होगा ?
    इक मिटटी या इक अमर तत्व
    शेष अभी भी दोपहर और शाम
    चल बढ़ा फ़िर से एक कदम

    itni gahri soch padh kar bahut prabhavit hoon

    ReplyDelete
  27. UTH JAAG MUSAAFIR,
    AB TO UTH ....
    ARE BHAI KUCHH NAYA LIKHATE KYO NAHI?????

    ReplyDelete
  28. kuch naya to likho sir ji , aapki post ke intjaar me hoon ...


    regards

    vijay
    please read my new poem " झील" on www.poemsofvijay.blogspot.com

    ReplyDelete

जो भी कहिए दिल से कहिए।