उठ जाग मुसाफिर
सुबह को ना जागा , अब तो जाग
जीवन की दोपहर होने को आई है।
सुन साथी
दुनिया पहुँची मंगल पर
फ़िर क्यूं तू ठहरा पेड़ की छाँव में
देख , परख , चल उठ
उठ जाग मुसाफिर
सुबह को ना जागा , अब तो जाग
जीवन की दोपहर होने को आई है।
सुन साथी
जीवन की दोपहर होने को आई है।
सुन साथी
किस गली गुम हो गये तेरे सपने
किस कर टूट गये माँ बाप से किये वादे
किधर खो गई तेरी इन्कलाबी बातें
"किसान है कमजोर, आम जन है बीमार और व्यापारी रहते सदा जवान।
इसलिए नही होती कोई क्रांति अपने देश "
सोच समझ , चल दिल में भर इक जोश
उठ जाग मुसाफिर
सुबह को ना जागा , अब तो जाग
जीवन की दोपहर होने को आई है।
सुन साथी
जीवन की दोपहर होने को आई है।
सुन साथी
शरीर क्या है। इक मिटटी
आत्मा क्या है। इक अमर तत्व
तू क्या है ? तू क्या होगा ?
इक मिटटी या इक अमर तत्व
शेष अभी भी दोपहर और शाम
चल बढ़ा फ़िर से एक कदम
नोट- बस यूँ ही एक बार फिर से।
नोट- बस यूँ ही एक बार फिर से।
बहुत प्रेरक और सार्थक रचना..
ReplyDeletebahut hi prernadayi rachna.
ReplyDeleteवाह एक नया जोश भारती हुई कविता
ReplyDeleteसुन साथी
ReplyDeleteकिस गली गुम हो गये तेरे सपने
किस कर टूट गये माँ बाप से किये वादे
किधर खो गई तेरी इन्कलाबी बातें
"किसान है कमजोर, आम जन है बीमार और व्यापारी रहते सदा जवान।
इसलिए नही होती कोई क्रांति अपने देश "
सोच समझ , चल दिल में भर इक जोश
उठ जाग मुसाफिर
सुबह को ना जागा , अब तो जाग
जीवन की दोपहर होने को आई है।
बहुत प्रेरक और सार्थक रचना..
बहुत जोशीली, प्रेरक और सार्थक रचना. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
BAHUT URJA SE BHAR GAYE .........BAHUT HI SUNDAR
ReplyDeleteप्रेरक....... मन में उमंग भरती सुंदर रचना...........
ReplyDeleteसार्थक चिंतन......जीवन्तता को जगाती रचना....
ReplyDeleteबिल्कुल--इसी का नाम जिन्दगी है..चल, जाग मुसाफिर!!
ReplyDeletebahut badhiya..
ReplyDeleteसुन साथी
किस गली गुम हो गये तेरे सपने
किस कर टूट गये माँ बाप से किये वादे
किधर खो गई तेरी इन्कलाबी बातें
"किसान है कमजोर, आम जन है बीमार और व्यापारी रहते सदा जवान।
इसलिए नही होती कोई क्रांति अपने देश "
सोच समझ , चल दिल में भर इक जोश
aapki kuch layinon to dil ko chhu jati hai..
sundar rachana,,
badhayi!!1
प्रेरणा देती एक बढ़िया रचना लिखी है आपने ..बहुत पसंद आई यह पंक्तियाँ
ReplyDeleteइसलिए नही होती कोई क्रांति अपने देश "
सोच समझ , चल दिल में भर इक जोश
उठ जाग मुसाफिर
सुबह को ना जागा , अब तो जाग
जीवन की दोपहर होने को आई है।
सही कहा ..
सुबह को ना जागा , अब तो जाग
ReplyDeleteजीवन की दोपहर होने को आई है।
बहुप्रेशर जोशीली पंक्तियॉं हैं।
sushilji,
ReplyDeleteyatharth aour darshan dono is rachna me samaye hue he.
किस गली गुम हो गये तेरे सपने
किस कर टूट गये माँ बाप से किये वादे
किधर खो गई तेरी इन्कलाबी बातें
fir
शरीर क्या है। इक मिटटी
आत्मा क्या है। इक अमर तत्व
तू क्या है ? तू क्या होगा ?
इक मिटटी या इक अमर तत्व ../
apane saathi ko prerit karne ke liye, usame josh bharne ke liye shbdo ka esa hi 'chvyanpraash'jaroori hota he/
mujhe pasand aaya.
note- bs yu hi ek baar fir se...BEHATREEN
सुन साथी
ReplyDeleteशरीर क्या है। इक मिटटी
आत्मा क्या है। इक अमर तत्व
तू क्या है ? तू क्या होगा ?
इक मिटटी या इक अमर तत्व
शेष अभी भी दोपहर और शाम
चल बढ़ा फ़िर से एक कदम
बहुत ही भाव पुर्ण, अति सुंदर रचना
धन्यवाद
bahut sunder prerak kavita.
ReplyDeleteGood....! sach ka saamna jaisi :)
ReplyDeleteसच का सामना करने का हौसला बढाती ,उमीदें जगाती , जोश भरी कविता है.
ReplyDeleteजोश से भरी ojsvi rachna आज ase ही geeto कि jarurat है जो आदमी को दिन कि neeid से jga ske .
ReplyDeletebela amrat bhra aalsi सो rha बन abhga
sathi sare jge तू न jaga.
shubhkamnaye
सुन साथी
ReplyDeleteशरीर क्या है। इक मिटटी
आत्मा क्या है। इक अमर तत्व
तू क्या है ? तू क्या होगा ?
इक मिटटी या इक अमर तत्व
शेष अभी भी दोपहर और शाम
चल बढ़ा फ़िर से एक कदम
वाह क्या प्रेरक कविता की है....
कलम का बेहतर उपयोग कर रहे हो...
मीत
बहुत ही सुन्दर व प्रेरक कविता लाजवाब !
ReplyDeletesusheel ji , deri se aane ke liye ksham chahunga ...
ReplyDeletebahut der se aapki ye kavita padh raha hoon aur ek naye josh me apne aapko bharte dekh raha hoon...
bahut hi umda aur jeevant abhivyakti aur ye aaj ke daud-bhaag waale jeevan me ek tonic ka kaam kar rahi hai ...
aapko bahut si badhai ..
aabhar..
vijay
आप कई बार चकित करते हो सुशील जी...
ReplyDelete"किसान है कमजोर, आम जन है बीमार और व्यापारी रहते सदा जवान...
इसलिए नही होती कोई क्रांति अपने देश "
एक अनूठी रचना, यकीनन!
अजी सुशील जी,
ReplyDeleteये क्या आपने मेरे बारे में लिखा है? आपको कैसे पता कि "जीवन की दोपहर होने को आई है."
अभी तक तो मैंने किसी को बताया ही नहीं कि परसों मेरा 21 वां बड्डे है.
चलो इस बड्डे पर मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि जो अभी अभी मैंने पढ़ा है उसे अपने शेष जीवन में उतारूंगा.
सुन साथी
ReplyDeleteशरीर क्या है। इक मिटटी
आत्मा क्या है। इक अमर तत्व
bahut sahi......
kya likha hai aapne...... dil ko chhoo gaya sab
Shaandar rachna Badhayi.
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
Is prabhavi rachna ke liye badhai.
ReplyDeleteसुन्दर कविता।
ReplyDeleteसुन साथी
ReplyDeleteशरीर क्या है। इक मिटटी
आत्मा क्या है। इक अमर तत्व
तू क्या है ? तू क्या होगा ?
इक मिटटी या इक अमर तत्व
शेष अभी भी दोपहर और शाम
चल बढ़ा फ़िर से एक कदम
बहुत प्रेरक और सार्थक रचना....!!
July 14, 2009 12:12 PM
In sab diggajon ke baad kya alagse kahun?
ReplyDeleteraat hogi tumhari aankhon mein , neend bahar tehal rahi hogi...
ReplyDeletebahut hi behatreen prayog !!
well written !!
ReplyDeleteAapki is rachna mein waqayi bahut gahri baat hai
ReplyDeleteisiliye nahi hoti koi kranti ..........
सुन साथी
शरीर क्या है। इक मिटटी
आत्मा क्या है। इक अमर तत्व
तू क्या है ? तू क्या होगा ?
इक मिटटी या इक अमर तत्व
शेष अभी भी दोपहर और शाम
चल बढ़ा फ़िर से एक कदम
itni gahri soch padh kar bahut prabhavit hoon
UTH JAAG MUSAAFIR,
ReplyDeleteAB TO UTH ....
ARE BHAI KUCHH NAYA LIKHATE KYO NAHI?????
kuch naya to likho sir ji , aapki post ke intjaar me hoon ...
ReplyDeleteregards
vijay
please read my new poem " झील" on www.poemsofvijay.blogspot.com