Thursday, October 2, 2008

माँ

एक दिन मैं साहित्य अकादेमी की लाईब्रेरी में हिंदी की पत्रिकाओं को उलट- पुलट रहा था। तो वहाँ किसी पत्रिका में एक कविता पढ़ी जो " माँ " पर लिखी गई थी। उसमें एक लाईन थी "माँ तू मेरी बेटी हैं।" उस लाईन ने मुझे अपनी तरफ खींचा। जब पढ़ी तो अच्छी लगी। यह कविता तुषार धवल जी की लिखी हुई थी और आखिर में उनका मेल पता लिखा था। मेल से सम्पर्क किया गया। बातें हुई। और ईद के दिन ऐसे ही ख्याल आया क्यों ना इस कविता को ब्लोग पर डाला जाए। फिर उनसे अनुमति लेकर आज आपके सामने पेश कर दी हैं।


माँ

तू मेरी माटी की गाड़ी
तू मेरे आटे की लोई
माँ तू मेरी बेटी हैं

उगा तुम्हीं से
तू बह रही सरल
समय बदलता रहा अर्थ
तेरा मेरी आँखों में

गालों को तेरे चूमा नोचा
खेल झमोरा बालों को
माँजे तुम संग बासी बर्तन

तू रोई जब मैं रोया
तेरी आँखों में आकाश पढ़ा

तू मेरा पहला '' हैं
मेरा ''
मेरा वन तू
माँ तू मेरी जोड़ी हैं

देह नहीं तू
बस धारा हैं
बह कर तुम में अनगिन जीवन
घुघुआ मैना खेल रहे हैं

कब बड़ा हुआ जो कभी मरुँगा
मेरी तू नस नाड़ी अमर
अलता बिन्दी सिन्दूर टिकली
तू रचना के पार खड़ी हैं
भाषा में अनकही अनन्त

तू उँगली डगमग कदमों की
मेरा जूता गंजी जंघिया
तू मेरी
कागज की नौका
तू मेरे गुब्बारे गैस के
तू लोरी काली रातों में
तू मेरा विस्तार प्यार का
माँ तू मेरी बेटी हैं

तू मेरी माटी की गाड़ी
तू मेरे आटे की लोई
माँ तू मेरी बेटी हैं

तुषार धवल

8 comments:

  1. बहुत अच्छी कविता। सचमुच पढने के बाद आप कुछ पल सोचते रह जाते हैं।

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  2. गजब की कविता तुषार जी की. बहुत आभार.

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  3. अद्भुत कविता है...बेहद असर दार शब्द और भाव...धन्यवाद आप का पढ़ने के लिए...
    नीरज

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  4. बहुत अच्‍छी कविता ढ़ूंढ़कर लाये....अच्‍छा लगा पढ़कर

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  5. दिल कुछ नम हो आया है भाई......कहाँ से लाये हो निकलकर .....निदा साहिब की वो नज़्म याद आ रही है....खट्टी चटनी जैसी मां

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  6. सुशिल जी बहुत ही उम्दा रचना से परिचय करवाया है... उसके लिए आभार!
    और तुषार जी को भी इतनी अच्छी रचना के लिए बधाई...
    वैसे बिलकुल ऐसी ही कविता निदा फाजली जी ने भी लिखी है, कभी पढियेगा दिल खुश हो जायेगा...
    उस कविता की लाइन ठीक से तो याद नहीं पर हलकी सी कुछ ऐसे हैं...
    बेसन की सोंधी रोटी सी माँ...
    कभी वक्त निकल के पढियेगा.. उम्मीद है आपको पसंद आयेगी...
    या हो सका तो में आपको पढ़वा दूंगा...

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  7. सुन्दर रचना है।

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