Thursday, June 12, 2008

छोटी उम्र के बड़े बच्चे


गरीब बच्चे

झुग्गी-झोपिड़यो के बच्चे छोटी सी उम्र में बड़े हो जाते है
दोड़ती भागती सड़को पर जल्दी ही कमाने लग जाते है।
कोई ज्ञान बढाता,कोई प्यास बुझाता, कोई फूलों से महका जाता
ग्राहक हाथ लगते ही चेहरा मोनालिसा सा खिल जाता।
कभी कभी ग्राहक पकड़ने की चाह में आपस मे ही भिड़ जाते
बस दो चार पुरानी गाली देकर चंद मिनटों मे ही फिर से दोस्त हो जाते।
जब कभी आँखो में नींद के बादल उमड़ आते
बना हाथों को तकिया वही सड़क किनारे झट से सो जाते।
गर्मी हो, सर्दी हो या हो फिर बरसात
इनके तन के कपड़े सदा एक ही से नजर आते।
जब कभी कोई अपने रोब में इनको झिड़क देता
तब ये फिल्मी हीरो की तरह मुकाबला करने को तैयार हो जाते।
ग्राहक की बस एक आवाज़ पर
दोड़ती गाड़ियों के बीच से बेधड़क सड़क पार कर जाते।
शाम होते ये अपनी जेबो से दिन की कमाई निकालते
किसी के हाथ चंद सिक्के और किसी के हाथ रुपये आते।

साभार- फोटो www.earthalbum.com से है।

10 comments:

  1. इन बच्चो से मेरी मुलाकात कुछ ज़्यादा ही होती है.. बिल्कुल सही चित्र उकेरा है आपने

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  2. bilkul sahi likha hai aapne.

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  3. सही चित्रण किया है।

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  4. मार्मिक चित्रण.
    क्या कहें.

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  5. बिल्कुल सही दशा को व्यक्त किया है आपने इस रचना में मार्मिक है यह ..

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  6. मुफलिसी आपका बचपन छीन लेती है ..कई बार सोचता हूँ की इश्वर ही इन बच्चो की देखभाल करता है.....ओर इन्हे immunity प्रदान करता है...
    कभी इन बच्चो पर ही लिखा था ....
    मेरी शक्ल से तुम धोखा न खाना
    मेरे तजुर्बे मेरी उम्र से बड़े है दोस्तो...

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  7. मार्मिक रचना एवं सुन्दर शब्द चित्रण.

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  8. "ग्राहक हाथ लगते ही चेहरा मोनालिसा सा खिल जाता।"
    हा हा हा! सही कहा। ग्राहक मिलने की खुशी में मोनालिसा तो क्या विश्व सुंदरी से भी ज़्यादा चमक आ जाती होगी उनके चेहरों पर। अति सुंदर… बहुत खूब।

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  9. सधे शब्द..मार्मिक चित्रण...और क्या कहें?

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  10. सुशील जी
    "ग्राहक हाथ लगते ही चेहरा मोनालिसा सा खिल जाता।"
    बिल्कुल नया प्रयोग किया है आप ने खुशी के इजहार का...बहुत खूब. आप के ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ और सच कहूँ पहली नज़र में ही मुझे भा गया. आप की पसंद और लिखने की शैली लाजवाब है. खुश रहें.
    नीरज

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