कुछ इंसान यूँ मिलते हैं कि उस नीली छतरी वाले की तरफ मुँह उठाकर पूछना पड़ता हैं कि यार गज़ब खेल है तुम्हारा। और फिर उस इंसान से ऐसा तालमेल बैठता है कि आप याद करें या वो, मोबाइल की घंटी बज ही उठती हैं। जैसे अभी अभी हवाओं के साथ संदेश गया हो कि यार आपका दोस्त याद कर रहा हैं आपको। और हम फिर से मुँह उठाकर उस नीली छतरी वाले की तरफ देखते हैं और कहते हैं ................. तो आज उन्हीं दोस्त की एक रचना पेश कर रहा हूँ जो मेरे जन्मदिन पर पिछले साल लिखी गई थी। और यह रचना मुझे हर वक्त हौंसला देती हैं पिछले काफी दिनों से ब्लोग की इस प्यारी दुनिया से कुछ दूर था तो कई साथियों के संदेश आये कि क्या बात हैं उन्हीं के प्यार की बदौलत अपनी हाजिर लगाने आ गया हूँ अपने प्यारे दोस्त का तौहफा आप सबको दिखाने। अब आप सोच रहे होंगे ये दोस्त कौन हैं तो कुछ देर सोचिए फिर आगे बढिए और नाम जानिए। और हाँ साथियों अभी कुछ दिनों के लिए और दूर रहना पडेगा आप सब साथियों से, उसके लिए माफी चाहूँगा साथियों।
तुम निडर हो, तुम अडिग हो
पथिक तुम, चलते जाना।
जीवन पथ की दुख व्यथा से
तनिक भी न तुम घबराना।
इस प्रलय के वक्ष स्थल पर
चढ़कर तुम हुंकार लगाना।
हँसते रहना, चलते रहना
दुख को अमृत सा पी जाना।
तुम शक्ति हो, तुम भक्ति हो
धर विश्वास तुम बढ़ते जाना।
सच्चे मन से मीत तुम्हारे लिए
मेरी बस यहीं शुभकामना।
अमिताभ श्रीवास्तव
अमिताभ जी आजकल तो रोज ही गुनगुनाता हूँ आपके इन शब्दों को।