Wednesday, March 24, 2010

मेरी माँ बोली "हरियाणवी" में एक कहानी

महादे-पारवती ( महादेव- पार्वती) 

एक बर की बात सै। पारबती महादे तैं बोल्ली - महाराज, धरती पै लोग्गाँ का क्यूँक्कर गुजारा हो रहया सै? हमनै दिखा कै ल्याओ। 
महादे बोल्ले- पारबती, इन बात्ताँ मैं के धरया सै? अडै सुरग मैं रह, अर मोज लूट। धरती पै आदमी घणे दुखी सैं। तू किस- किस का दुख बाँट्टैघी। 
पारबती बोल्ली- महाराज, मैं नाँ मन्नू। मैं तै अपणी आँख्या तै देक्खूँगी। संदयक देक्खे बिना पेट्टा क्यूक्कर भरै? 
महादे बोल्ले- तै चाल पारबती।  देख धरती की दुनियाँ दारी। न्यूँ कह कै वे दोन्नूँ अपणे नाधिया पै बैठ, थोड़ी हाण मैं आ पोंहचे धरती पै। उन दिनाँ गंगाजी का न्हाण था।  पारबती बोल्ली- महाराज, मैं बी गंगाजी न्हाँगी। गंगा न्हाण का बड़ा फल हो सै। जो गंगा न्हाले उननै थम मुकती दे दयो सो। मरयाँ पाच्छै वो आदमीं सूदधा सुरग मैं जा सै। अड़ै आए-ऊए दो गोत्ते बी मार ल्याँ गंगा जी मैं। 
महादे बोल्ले- पारबती, लोग हमनैं पिछाण लैंघे। अक न्यूँ कराँ, दोन्नूँ अपणा-अपणा भेस बदल ल्याँ। न्यूँ कह कै दोनुवाँ नै मरद-बीर का भेस भर लिया। भेस बदल कै दोन्नूँ चाल पड़े, गंगाजी कैड़। 
राह मैं पारबती नैं देख्या दुनियाँ ए गंगाजी न्हाण जा सै। कोए गाड्डी जोड़ रहे, तै कोए मँझोल्ली, कोए रह्डू , तै कोए पाहयाँ एक पाहयाँ चाल्ले जाँ सै। लुगाई गंगाजी के गीत गामती जाँ सै। अक जड़ बात या थी, सारी ए खलखत पाट्टी पड़ै थी गंगाजी के राह मै। 
पारबती बोल्ली- महाराज, धरती पै तै घणा एक धरम-करम बध रहया सै। देक्खो नाँ, टोल के टोल आदमीं गंगाजी न्हाण जाण लाग रहे। मेरै तै एक साँस्सै सै। थम कहो थे- जो गंगा न्हागा वो सूदधा सुरग मैं जागा। जै ये सारे न्हाणियाँ सुरग मैं आगे तै सुरग मैं तै तिल धरण की जघाँ बी नाँ रहैगी। सुरग मैं तै खड़दू रुप ज्यागा। 
महादे हँस्से अर बोल्ले- पारबती, तूँ तै भोली की भोली ए रही। ये सारे आदमी गंगाजी न्हाण कोन्या आए। कोए तै मेला-ठेला देक्खण आया सै। कोए खेत-क्यार के काम तैं बच कै आया सै। कोए-कोए अपणा बड्डापण जितावण ताँहीं आया सै। कोए- कोए अपणा मैल काट्टण आया सै। कोए बेट्टे माँगण ताँही आया सै, तै कोए पोत्ते माँगण ताँही। कोए बेट्टी नैं परणा कै सुख की साँस लेण आया सै। कोए अँघाई एक करण ताँही आया सै। गंगाजी न्हाणियाँ तै इनमैं उड़द पै सफेददी जितणा कोए-कोए ढूँढ्या पावगा। 
महादे की बात सुण कै पारबती बोल्ली- महाराज, थम तै मेरी बात नैं न्यूँ एँ टालो सो। कदे न्यूँ बी हुया करै? 
महादे बोल्ले- तूँ मेरी बात नैं बिचास कै देख ले, जै मेरी बात न्यूँ की न्यूँ साच्ची नाँ लिकड़ै तै। 
पारबती बोल्ली- महाराज, बात नैं बिचास्सो। महादे बोल्ले- बिचास ले। 
इतणी कह कै महादे नैं कोड्ढी का रुप धारण कर लिया अर पारबती रुपमती लुगाई बण गी। राह चालते नहाणियाँ नैं वो कोड्ढ़ी अर लुगाई देक्खी। बीरबान्नी तै हाथ मल मल कै रहगी। देख दुनियाँ मैं कितणा कुन्या सै? सुरत सी बीरबान्नी कोड्ढ़ी कै पल्लै ला दी। डूबगे इसके माई-बाप। के सारी धरती पाणी तैं भरी सै जो इसनैं जोड़ी का बर नाँ मिल्या? 
कोए उनतैं अँघाई करकै लिकड़ै। कोए कहै छोडडै नैं इस कोड्ढ़ी नैं। मेरै साथ चल, राज उडाइये। 
वा लुगाई सब आवणियाँ-जाणियाँ ताँही एक्कैं बात कहै- सिअ कोए इसा धरमातमाँ जो इसनैं कोड्ढी की जूण तैं छुटवादे। इसका हाथ पकड़ कै गंगीजी मैं झिकोला लवा दे? जै कोए इसनैं गंगाजी मैं नुहादे उसका राम भला करैगा। वो दूदधाँ न्हागा अर पूत्ताँ फलैगा। गंगाजी मैं न्हात्याँ हे इस की काया पलट हो ज्यागी। सै कोए धरमातमाँ जो इसका कस्ट मेट्टै? सब महादे-पारबती की बात सुणै अर मन मन मैं हँस्सैं। 
उस लुगाई की बात दुनियाँ सुणै पर मुंह फेर कै लीक्कड़ ज्या। जिसके हाड हाड मैं कोढ़ चूवै उसनैं कूण छूहवै। 
अक जड़ बात या थी अक कोए बी उसकै हाथ लावण नैं त्यार नाँ हुआ। लाक्खाँ न्हाणियाँ डिगरग़े अर वा लुगाई न्यूँ की न्यूँ खड़ी डिडावै। 
जिब भोत्तै हाण होली जिब एक धरमातमाँ उत आया। उस बिचारे नैं बी उस बीरबान्नी की गुहार सुणी। कोड्ढ़ी नैं देख कै उसका मन पसीज ग्या। उसनै सोच्या- हे परमेस्सर, इसे कूण से पाप करे अक यो कोड्ढ़ी बण्या? अर कूण से आच्छे करम के थे अक इतणी सुथरी बहू मिल्ली। उस आदमी नैं जिनान्नी की सारी बात सुणी अर बोल्या- जै इसका कोढ़ गंगा मैं न्हवाए तैं मिट ज्यागा तै मैं इसका झिकोला लगवा दयूँगा। थारा दोनुवाँ का अगत सुधर ज्यागा। तूँ न्यूँका, एक कान्नी तैं तै तू इसकी बाँह पाकड़ और दूसरी कान्नी तै मैं थांभूँगा। 
उस आदमी का तै उस कोड्ढ़ी कै हाथ लावणा था अर वो तैं साँच माँच का सिबजी भोला बणकैं खड़ या हो ग्या,अर बोल्या- देक्ख्या पारबती! मैं तत्तैं कहूँ था नाँ, अक सारे माणस गंगाजी न्हाण नहीं आमते।  लाक्खाँ मैं कोए कोए पवित्तर भा तैं गंगा न्हाण आवै सै जिसा यो आदमी लिकड़या। 
सिबजी भोले नैं उस आदमी ताँही आसीरबाद दिया अर वै दोन्नूँ अंतरध्यान होगे।  
नोट- यह कहानी हरियाणवी हिन्दी कोश से ली गई है जिसके लेखक डा. जय नारायण कौशिक और प्रकाशक - हरियाणा साहित्य अकादमी है।

12 comments:

सुशील छौक्कर said...

अगर किसी साथी को हरियाणवी समझ ना आए। तो उसका हिंदी अनुवाद भी लगा दिया जाऐगा कमेंट में। आप बताए। पर कोशिश कीजिए हरियाणवी में ही पढ्ने की, उसका आनंद ही अलग होगा। वैसे भी हरियाणवी समझ में आ ही जाती है।

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

सु्शील जी,
हम तो जमा ही हरियाणवी सां
म्हारे तो सारी समझ मै आग्यी।
और घणी समझ मै आवैगी तो
सुरग मैं तै खड़दू रुप ज्यागा।
सारी नगरी बैकुंठ पुंच ज्यागी।

भोत बढिया कहाणी सु्णाई।
जय बो्ल्लो महादे पारबती की।
इसी दो चार और सुणाओ

राम-राम

vandana gupta said...

बहुत बढिया सन्देश दिया है………………तभी तो कहा गया है ---------जो मन चंगा तो कठौती में गंगा।
सच्चे मन से कोई भी कर्म करने वाले बहुत ही कम हैं।
नैना बिटिया को बहुत बहुत प्यार्……………अब तो नयी कक्षा मे जाने वाली होगी।

Manish Kumar said...

सच्चे धर्मात्माओं का तो अकाल है ही। स्वर्ग में भगवान फिलहाल एकाकी महसूस कर रहे होंगे। सारे कमरे खाली ही होंगे।

ताऊ रामपुरिया said...

आज तो इस किस्से ने कती चाल्हे से पाड दिये भाई. और भी लगाते रहो इस बरगे किस्से.

रामराम.

मुनीश ( munish ) said...

I follow haryanvi and i thank u for letting me read this fabulous story once again .

अमिताभ श्रीवास्तव said...

mhari to samjh me nya aai jee
, kuchh kuchh aagyi, jese mahadev-paarvati ke kahani.../ kher..sushilbhai..thodi bahut samjh me aai magar is samjhne ke chakkar me kahaani ka poora poora maza nahi mil saka../ hindi me bhi chahiye jee...par hnaa ek baat jaroor he ki hariyanvi bahut meethi lagti he..../

naina beti sahi kahti he- santare me namak lagana jaroori hota he kyoki vo school jaati he aap nahi..samjhe.

राज भाटिय़ा said...

आप ने तो आरी बात सच सच लिख दी है जी कि कोई कुछ मांगने आया है तो कोई किसी ओर कारण से.
बहुत सुंदर कहानी

हरकीरत ' हीर' said...

लो सुशील जी आप भी गज़ब करने लग पड़े अब .......ये कहानी तौबा ......!!

लोक कथा जैसी ...समझने में कोई परेशानी नहीं हुई शिव जी और पार्वती के गंगा स्नान की लिखी है आपने कैसे वे कोढ़ी का रूप धारण कर लोगों का इम्तिहान लेते हैं .....प्रेरणा देती कहानी ......बहुत खूब ......!!

ग़ज़ल में तो हमें भी महारत हासिल नहीं है इसलिए तो नज़्म कहा ग़ज़ल नहीं ....यूँ सुबीर जी ग़ज़ल की क्लास लेते हैं ....!!

Alpana Verma said...

Haryanavi bilkul bhi samjh nahin aati Sushil ji!:(

Alpana Verma said...

do lines padhne mein kitni dikkat ho rahi hai..aur aap kah rahe hain ki padh kar dekhen!yah jyadati hai!...

Hindi anuvaad dijeeye..please!!

Alpana Verma said...

@Naina,
तुम्हारी तस्वीर तो बहुत सुन्दर है...और जो बात तुमने कहीं न पापा से !बिलकुल सही कहा.
आप स्कूल जाती हो इसलिए आप को ज्यादा ज्ञान है...

बहुत पसंद आई आप की मासूम सी हाज़िरजवाबी !
ढेर सारा आशीष .

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