Monday, October 12, 2009

जिंदगी के रंग - मीत जी के संग़

आज मीत जी अपनी "जिंदगी के रंगो" से हमें मिलवा रहे है। 

जिंदगी रंग बिरंगी 


ज़िन्दगी में रंग ही रंग भरे हुए हैं. अगर ये रंग ज़िन्दगी से निकाल दिए जाएँ, तो फिर जीवन का मतलब ही कुछ नहीं रह जायेगा. इन्हीं रंगों को हम दर्द, ख़ुशी, गम, आँसू, और संघर्ष जैसे नामों से पुकारते हैं.....  हर इंसान की ज़िन्दगी में कभी ना कभी ऐसा मोड़ आता है जब वो अपने जीवन में हो रही घटनाओ के सामने मजबूर सा महसूस करने लगता है. उस पल उसे लगता है कि उसने यह जन्म लिया ही क्यों? लेकिन फिर उसी पल एक नयी तुलिका उसके जीवन में एक नया रंग भर देती है. और वह उसी रंग से अपनी जिदंगी की पेटिंग्स में खुशियों के रंग भरने लगता है.

संघर्ष का रंग- कोशिश करने वालों का साथ भगवान भी देता है.

जब मैं रोजगार के लिए संघर्ष कर रहा था. एक नौकरी की तलाश के लिए सुबह घर से निकल जाना और शाम को खाली हाथ लौट आना. रोज की यह दैनिकचर्या मुझे अंदर ही अदंर घुन की तरह खाए जा रही थी. मम्मी पापा के चेहरो पर उदासी का रंग देखा नही जाता था. शायद ज़िन्दगी के दुखों ने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए थे. पता नही क्या क्या सोचते हुए पूरी रात यूँ ही बीत जाती थी. और फिर सुबह वही नौकरी की तलाश के लिए दिल्ली की गलियों में भटकना. पर कुछ दिनों के बाद दिल्ली पुलिस की भर्ती की सूचना का दीपक सूरज सा उजाला लेके आया. मैंने दिल्ली पुलिस भर्ती के लिए फार्म भर दिया. मन ही मन में खुद को हर पल पुलिस वर्दी में देखने लगा. रोज सुबह उठकर दौड़ने जाने लगा. पर एक दिन मुसीबत से भरी बिजली फिर से गिर पड़ी. मेरे फिजिकल टेस्ट से कुछ दिन पहले ही प्रेक्टिस के दौरान दौड़ते समय मेरे पांव में मोच आ गयी. मुझे लगा की जैसे भगवान मेरे साथ यह सब जानबूझकर कर रहे हैं. मैंने गुस्से में प्रेक्टिस बँद कर दी. टेस्ट में अब 5 दिन बाकि थे. एक दिन मैं घर से टहलने के लिए निकला. घर के सामने ही काफी बड़ा पार्क हैं, मैं पार्क में जाकर बैठ गया, वहाँ कुछ बच्चे खेल रहे थे, उन्हीं को देखने लगा. कुछ दी दूरी पर एक लड़की अपनी माँ के साथ बैठी थी. उस लड़की के पाँव में कुछ तकलीफ थी, क्योंकि वो ठीक से चल नहीं पा रही थी. शायद यह परेशानी उसे जन्म से थी. मैं भगवान को कोसता हुआ अपने टेस्ट के बारे में सोच रहा था. तभी कुछ २-३ उच्चकों (अफीमचीयों) ने उस लड़की की माँ का मंगलसूत्र खींचा और वहाँ से भागने लगे. मैं देख कर हैरान रह गया कि जो लड़की ठीक से चल भी नहीं सकती थी. वो मुश्किल से भागी और एक को पकड़ लिया. कुछ पल के लिए हाथापाई भी हुई। यह देखकर आसपास के लोग मदद के लिए आ गए. कुछ देर बाद पुलिस भी आ गई और चोर उच्चके को अपने साथ ले गई. शाम को मैं फिर से पार्क गया. वो लड़की और उसकी माँ अब भी टहलने आये थे. मैंने उस लड़की के पास जाकर उस से बात की. मैंने कहा की आपको डर नहीं लगा अगर वो चोर आपको नुकसान पहुँचा देता तो? वो बोली- नुक्सान पहुँचा देता तो पहुँचा देता. मैंने कहा "आप मदद के लिए शोर मचा सकती थी." वो बोली- भगवान भी उसी की मदद करता है, जो कोशिश करता है. मैंने कोशिश की और देखो भगवान ने मेरी मदद की. वो देखो मेरी माँ के गले में मंगलसूत्र .... उसके उन शब्दों ने मेरी सोच को ही बदल दिया. अब वही पार्क था, वही लड़की थी, वही उसकी माँ थी और उसकी माँ के गले में उस लड़की के संघर्ष द्बारा वापस दिलाया हुआ मंगलसूत्र चमक रहा था. साथ ही मैं भी वही था लेकिन अब मेरे मन में वो भावनाएं नहीं थी, जो सुबह तक थी. मैं मन ही मन निश्चय कर चुका था कि बेशक दौड़ में अंतिम ही क्यों ना आँऊ, पर दौडूंगा जरुर. मैं दोड़ा और छ्ठे स्थान पर भी आया। मुझे दौड़ते वक्त पाँव में बेहद दर्द हुआ, लेकिन दौड़ में छठा स्थान प्राप्त करने के बाद भी जो अनुभूति, जो एहसास, जो ख़ुशी आज तक मेरे दिल में बसी है वो शायद मरते दम तक यूँ ही रहेगी और साथ में उस लड़की द्वारा कही गयी बात भी कि - भगवान भी उसी की मदद करता है, जो कोशिश करता है. मैंने कोशिश की और देखो भगवान ने मेरी मदद की. और ज़िन्दगी का एक रंग और देखिए कि आज में एक पुलिसवाला ना होकर एक डिजाइनर हूँ.


शब्दों का रंग-सूरज का टुकड़ा


"तोड़ के सूरज का टुकड़ा,
ओप में ले आऊं मैं!
हो जलन हांथों में, तो क्या!
कुछ अँधेरा कम तो हो..
                         मीत


हँसी का रंग- एक युवराज इधर भी 

मोरी गेट के क्रिकेट ग्राउंड से लगा हुआ एक गर्ल्स इंजीनियरिंग कालेज है. अपने २-3 मैच से ही मैंने वहाँ युवराज की तरह काफी नाम कमा लिया था :) लड़कियाँ मुझे पहचानने लगी थी " यही है वो जिसने उस दिन ८० गेंदों में ११९ रन बनाये थे." एक सुन्दर सी लड़की की सुरीली आवाज कानों में पड़ी थी. उस दिन भी हमारा मैच था. पहले फिल्डिंग करनी थी, मैं थर्ड मेन पर फिल्डिंग कर रहा था, उस दिन भी लड़कियाँ हमारा मैच (खासकर मेरा मैच) देखने के लिए ग्राउंड की दीवार पर बैठी थी. उस दिन ग्राउँड में बरसात की वजह से जगह जगह काफी कीचड़ था.... जहाँ मैं फिल्डिंग कर रहा था वहाँ भी छोटे-छोटे गड्ढों में कीचड का पानी था. मेरी हर फिल्डिंग पर लड़कियाँ तालियाँ बजा रहीं थी. तभी मेरे पास एक बहुत मुश्किल कैच आया जिसे मैंने ना जाने कैसे लपक लिया...लड़कियाँ उछल-उछल कर मेरे लिए तालियाँ बजा रही थी और वेव्स कर रही थी. मैं भी ख़ुशी से उन्हें वेव्स करते हुए पीछे की ओर चल रहा था, मैं वेव्स करते हुए भूल गया कि ग्राउंड में पानी भरा हुआ है कई लड़कियाँ मुझे इशारे से समझा भी रहीं थी पर मैं अति उत्साह में ध्यान ही नहीं दे पाया और कीचड़ से भरे हुए पानी के गड्ढे में गिर गया.. मेरी पूरी सफेद ड्रेस कीचड़ से सन गई...और चारो तरफ सब हँसने लगे. वही बैठी लड़कियों की हँसी जो फूटी बस पूछो मत. शायद उनकी हँसी की आवाज आप तक भी पहुँच रही होगी......

मीत जी के ब्लोग का डाक पता तुम्हारा मीत

29 comments:

Alpana Verma said...

'भगवान भी उसी की मदद करता है, जो कोशिश करता है.'
बिलकुल सही लिखा है,जीवन में हमें अक्सर कुछ न कुछ सीख अपने आस पास से मिलती है लेकिन कुछ घटनाएँ जीवन की दिशा बदल देती हैं.जैसे इस ghtna ने meet को यह सीख दी.
---
dusre रंग में rangi mazedaar ghatna padhkar बहुत hansi aayi !

-Sushil जी,post prastuti बहुत achchee है.

-Meet की ख़ास बात जो मुझे samjh आती है wo यह की unmein seekhne की lagan बहुत है.
मेरी शुभकामनायें हैं.

Alpana Verma said...

@Naina के लिए--आप school बस से जाती हो achchha है न..अपनी saheliyon से मिल leti हो..papa से तो घर में मिलती ही हो..bike/car से school ले कर जायेंगे तो आप बस में friends के साथ shor और masti नहीं कर paOgi.
isliye जैसे Mummy Papa School bhejte हैं waise school जाओ..ok..No shikayat..:)...Sneh sahit,

विनोद कुमार पांडेय said...

प्रेरणा से भरी रोचक संस्मरण..आदमी को कोशिश ज़रूर करनी चाहिए कम से कम एक आशा की किरण तो अंत तक बनी रहती है..और क्या पता उस पल भगवान भी आपके साथ हो आपका सपर्पण देख कर...तो निसचीत रूप से सफलता आपकी होगी..

अमिताभ श्रीवास्तव said...

हिम्मत वालों का साथ ही भगवान देता है। मैं बचपन से सुनता और मानता आया हूं। सो मीत भैया, आपके रंग में भी यह देख सुकून हुआ कि मैं अब तक गलत नहीं हूं। यानी सही सोचता हूं। खैर..अच्छे हैं रंग। जीवन में कुछ सीखने को मिल जाये, काफी है जीने के लिये।
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नैना बिटिया
अच्छा आपके पापा आपको बाइक से स्कूल नहीं ले जाते? यानी आपको उनके साथ ज्यादा रहने को मिलता है। सब् बच्चों को मिलता है क्या? घर से फुर्र्र स्कूल...और आप पापा के साथ पैदल, तो कभी गोद में...आराम से बात करते हुए..खाने पीने की चीज खरीदते हुए...है न। मुझे तो इसमे ज्यादा मज़ा दिखता है। देखो..औरों की है ऐसी किस्मत। तो बजाओ ताली।

कुश said...

आपके इस अनूठे प्रयास की सार्थकता उजागर होती दिख रही है.. मीत भाई के बारे में जानना सुखद रहा..
और एक सीख भी मिली कि कीचड़ वाले मैदान में लड़कियों कि तरफ ध्यान नहीं देना चाहिए..

अविनाश वाचस्पति said...

रंग सब जीवन में मौजूद हैं

बस उन्‍हें अपने अनुसार तलाशने की जरूरत है

और यह तलाशी अभियान सुशील भाई ने

बखूबी चला रखा है। मीत से मिलना घटनाक्रम के संदर्भ में बहुत पसंद आया। ऐसी और रोचक और मन मोहक वाकयों का इंतजार रहेगा। सुशील जी से एक निवेदन : मुझे तो अपनी नई पोस्‍ट की सूचना मेरी मेल में ही भेज दिया करें। आभारी रहूंगा।

दर्पण साह said...

to ye convoy amitabh se meet tak (via anil ) aa hi pahoonchi....
...ab apni bhi kuch original likh dijiye sushil ji.
:)

vaise bloggers ke baare main jaankari acchi lagi....

मीत said...

ज़िन्दगी के रंग तो यूं ही फीके ओर गहरे पड़ते रहेंगे...
हमें तो अपने-अपने फर्जों को ओर पहचानना है और निभाना है...
सुशील जी के इस कदम से कितने ही लोग एकदूसरे की ज़िन्दगी से कुछ न कुछ रंग जरुर लेंगे....
उनका प्रस्तुतीकरण बेहद प्रशंसनीय है...
उम्मीद है की आगे भी ओर प्रेरणात्मक किस्से पढने को मिलेंगे...
और बिटिया नैना आप क्यों चिंता करती हो अगर पापा नहीं ले जाते तो...
आप एक काम करो बाइक चलानी सीख लो फिर चाचा ओर आप सर्राते से दौडायेंगे...
और अगर पापा की ही बीके पे जाना है तो कोई बात नहीं हम कहेंगे उनको अगर नहीं मने तो फिर कल से उनकी बाइक मम्मी की बटन लगाने वाली सुई से पंक्चर कर दी जायेगी...
मीत

vandana gupta said...

meet ji ne jo kaha bailkul sahi kaha ......har insaan ko kahin na kahin se to prerna milti hi hai.meet ji ki zindagi ke rang wakai bahut badhiya rahe.......badhayi.

naina bitiya
papa se4 kaho agar wo aapko bike pa rnhi le jayege to aap unse baat nhi karengi..phir dekhna kitni jaldi lekar jayenge papa kyunki wo aur sabke bina to rah sakte hain magar aapse baat kiye bina nhi rah sakte.

अनिल कान्त said...

मीत जी के जिंदगी के रंगों से परिचय करने के लिए शुक्रिया
युवराज :)

सही बात है हर किसी की जिंदगी बहुत रंग बिरंगी है

राज भाटिय़ा said...

भगवान भी उसी की मदद करता है, जो कोशिश करता है.
बिलकुल सच कहा आप ने,अरी नैना बिटीयां पहले जाते थे, अब छोड दिया बच्चो की भलाई के लिये कम से कम बच्चे कुछ पेदल तो चले.... अपने आप को मोसम के सेंट तो कर सके ज्यादा नाजुक ना बने, हम कोन सा हमेशा उन के साथ रहेगे... अच्छे ओर समझ दार मां वाप बच्चो को इन बातो के लिये आजाद छोडते है, आप के पापा भी ठीक करते है

सुशील छौक्कर said...

@ अविनाश जी " जिंदगी के रंग" हर सोमवार को प्रस्तुत किये जाते है। आने वाले सोमवार के बाद महीने का पहला सोमवार और तीसरे सोमवार को "जिदंगी के रंग़" प्रस्तुत किये जाऐगे। आपके आभार के लिए शुक्रिया।
@दर्पण जी मैं भी अपनी जिदंग़ी के रंग जरुर प्रस्तुत करुँगा पर अभी नही।
@मीत जी, और वंदना जी सही सलाह दे रहे आप दोनो अपनी बिटिया को :) उसके पापा का नही सोच रहे, ये अच्छी बात नही है :)

नीरज गोस्वामी said...

ज़िन्दगी के ये खट्टे मीठे रंग ही इसे दिलचस्प बनाये रखते हैं...बहुत अच्छा लगा मीत जी के संस्मरण पढ़ कर, प्रेरक और रोचक....
नीरज

Manish Kumar said...

bahut khoob sansmaran raha meet aapka.

परमजीत सिहँ बाली said...

प्रेरणा से भरा रोचक संस्मरण!बहुत बढिया पोस्ट।

राजीव तनेजा said...

हिम्मत ए मर्दां मदद ए खुदा
आपने सही कहा कि भगवान भी उन्हीं की मदद करता है जो खुद मेहनत करते हैँ...

बहुत ही बढिया...रोचक शैली में लिखा गया संस्मरण...
अरे!...मुझे तो आज ही पता चला कि आप डिज़ायनर भी हैँ और क्रिकेटर भी...
तभी मैँ कहूँ कि ब्लॉगजगत में भी आप चौके-छक्के कैसे लगा लेते हैँ
बहुत बढिया

vijay kumar sappatti said...

susheel ji ,

aapke dwara shuru ki gayi ye shrunkla hum sab ko bahut bhaa rahi hai .. main aapko is nayi shuruwaat jo ki hame hamare blogger bhaiyo se hamara parichay jeevan ke rango ke dwara karwaayengi , par bahut badhai deta hoon..

meet bhai , aapse jab mila tha to hamari mitrata itni jaldi kyon ho gayi thi , uska kaaran ab pata chala hai .. jeevan in rango se aapne apne jeevan ko ranga hai aur bakubi sangharsh ko jeetkar , shabdo se likhkar aur hansi ke dwara jeevan me khushiya bharkar aap ek saarthak jeevan ji rahe hai ..

aur ye sach hai ki bhagwaan bhi unhi ki madad karta hai jo khud ki madad karta hai..

aapke behatreen jeevan ki shubkaamnaaye ..

naina beti . aap chinta mat karo , bahut jaldi hum aapke papa ki gaadi kharab kar denge .. meet bhai gali baar mera ye kaam kar dena..susheel ji ki bike ko kharab kar do ..naina beti ko koi shikayat nahi honi chahiye ..

Regards

Vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com

नीरज मुसाफ़िर said...

बिलकुल सही जी,
कोशिश करने वाले की कभी हार नहीं होती.
हाँ तो मीत जी, क्या आप अब भी उस कॉलेज में जाते हो?

रंजू भाटिया said...

बढ़िया प्रेरणा देने वाला प्रसंग है ..बहुत अच्छा लग रहा है सबके बारे में इस तरह से पढना ...नैना की शिकायत बहुत मासूम है :)

मीत said...

@ neeraj jaat ji
nahin neeraj ji ab mein wahan nahin jata...
kisi wjh se cricket ko hamesha ke liye alvida kah diya hai..
meet

PD said...

अभी इकट्ठे ही जिंदगी के सारे रंग पढ़ डाले.. अपके द्वारा किया गया यह कार्य सराहणीय है.. हर पोस्ट से जीने के लिये एक नया उत्साह पैदा होता है..

Creative Manch said...

बहुत ही बढिया
रोचक शैली में लिखा गया संस्मरण

सुख, समृद्धि और शान्ति का आगमन हो
जीवन प्रकाश से आलोकित हो !

★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए
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क्रियेटिव मंच

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

कोशिश करनेवालों की कभी हार नहीं होती.
जिंदगी के रंगों को आपने खूब समझा.

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आपको दीपावली की शुभकामनाएं !!
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

- सुलभ सतरंगी
(यादों का इंद्रजाल)

विनोद कुमार पांडेय said...

बढ़िया रचना..दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ!!

sandhyagupta said...

Dipawali ki dheron shubkamnayen.

गौतम राजऋषि said...

ये लाजवाब सीरीज शुरू किया है आपने सुशील जी...मीत भाई का ये अनूठा रंग हैरान कर गया।

हरकीरत ' हीर' said...

वाह ...मीत तो आप क्रिकेटर हैं.....??

बहुत दिलचस्प किस्सा सुनाया आपने ....गढे में गिरने का ....हा...हा...हा.....!!!

हरकीरत ' हीर' said...

सुशील जी ,


मैं अपनी ही नज़्म जितनी बार पढ़ती हूँ रोने लगती हूँ क्योंकि यह खेल हम बचपन में खेला करते थे ....तब नहीं पता होता बड़े होकर नसीब में क्या लिखा होगा .....हर लड़की का सपना होता है कि कोई राजकुमार आएगा और वह रानी बन कर रहेगी ......शायद रितिका का भी यही सपना रहा हो ......दो मासूम बच्चे हैं उसके जो बेघर हो गए हैं ....क्या कहूँ ....सोचती हूँ तो दिमाग कि नसें फटने लगतीं हैं ......!!

श्रद्धा जैन said...

waah bahut achcha lekh
bhagwaan usi ki madad karta hai jo koshish karte hain
bahut achcha laga padhna

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