Thursday, February 19, 2009

रुसी कवयित्री- मरीना त्स्वेतायेवा

कुछ रातें

कुछ रातें प्रिय के बिना
कुछ रातें अप्रिय के बिना
कुछ बड़े बड़ॆ तारे
दहकते हुए सिर के ऊपर
और कुछ हाथ
बढ़ते हुए उसकी तरफ जो सदियों से रहा नहीं और न होगा
जो सम्भव नहीं पर जिसे होना चाहिए ...................
बच्चे का एक आँशू
नायक के लिए
और नायक का एक आँशू बच्चे के लिए
पत्थरीलें पहाड़ हैं उसकी छाती में
उसे उतर आना चाहिए अब नीचे
जानती हूँ-जो हुआ
जानती हूँ-जो होगा,
जानती हूँ पूरी तरह
गूंगे-बहरे उस रहस्य को
तुतली और अबोध भाषा में जिसे
कहा जाता है जीवन

रुसी कवयित्री- मरीना त्स्वेतायेवा

साभार- वरयाक सिंह ( आधार प्रकाशन हरियाणा)

14 comments:

Alpana Verma said...

गूंगे-बहरे उस रहस्य को
तुतली और अबोध भाषा में जिसे
कहा जाता है जीवन
रुसी कवियत्री मरीना' की अनुवादित कविता समझने के लिए दो बार पढ़ी.
इस भावपूर्ण कविता हेतु सुशील जी आप को धन्यवाद

रंजू भाटिया said...

गूंगे-बहरे उस रहस्य को
तुतली और अबोध भाषा में जिसे
कहा जाता है जीवन

बहुत गहरे भाव हैं इस रचना के इसको पढ़वाने का शुक्रिया

ताऊ रामपुरिया said...

अत्यंत गहन बोध की कविता पढवाने के लिये आपका बहुत आभार.

रामराम.

मीत said...

जानती हूँ-जो हुआ
जानती हूँ-जो होगा,
जानती हूँ पूरी तरह
गूंगे-बहरे उस रहस्य को
तुतली और अबोध भाषा में जिसे
कहा जाता है जीवन
यह स्वर्ण शब्द हैं...
मीत

vandana gupta said...

jeevan ko vyakat karte gambhir aur bahut gahre bhav padhvane ke liye shukriya.

कुश said...

वाह! जबरदस्त है.. पढ़वाने के लिए आभार आपका.

Anonymous said...

bahut gehre bhav bahut achhi rachana

डॉ .अनुराग said...

दिलचस्प !

दिगम्बर नासवा said...

गहरी भावनाएं लिए शशक्त रचना

शोभा said...

बहुत ही सुन्दर।

Unknown said...

पढ़वाने के लिए आभार आपका.

kumar Dheeraj said...

काफी दिनों के बाद आपका ब्लाग पढा । आपके लेखन का कायल हूं मै । इसी तरह लिखते रहिए आभार

गौतम राजऋषि said...

कई बार पढ़ गया....शब्द संयोजन-अनुवादित शब्द-संयोजन पर चमत्कृत हूँ,मगर पूरी कविता समझ नहीं पा रहा...
फिर से पढ़ता हूँ बाद में

अविनाश वाचस्पति said...

कविता जीवन को

वन से बाहर
लाने

और प्रभाव जमाने

में पूर्णत: सफल।

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