Wednesday, January 21, 2009

वो कौन थी ?

दोस्तों की फरमाईश पर यह पोस्ट दुबारा की जा रही है। कल रात विजय जी ने काफी जोर देकर कहा कि यार इसे दुबारा पोस्ट कर दो। वैसे बड़े बुजुर्गों ने कहा है कि दोस्तों के कहे को टाला नहीं करते । इसलिए पेश हैं।

मेरी कौन थी वो



मैं नहीं जानता कौन थी वो
क्या रिश्ता था मेरा उसका ।
समझ नहीं आता, जान नहीं पाता
किसी भी एक रिश्ते में ढाल नही पाता ।
किसी दिन जब मैं उससे रुठ जाता
दोस्त बन अपने कान पकड़ मनाया करती थी वो ।
जब मैं जीवन से निराश होता भविष्य से उदास होता
मैडम बन जीवन से लड़ना सिखाती थी वो ।
कभी कभी आँखें बँद कर मुँह खोलने को कहती
प्रेमिका बन मुँह में हरी मिर्च डाल भाग जाया करती थी वो।
कभी कभी गुड्डे गुड़िया का खेल खेलने का मन करता था
पत्नी बन, रख गोद में सिर मेरा, बना बालों को काले बादल, मेरे तपते चेहरे पर जम कर बरसा करती थी वो ।
भूख लगती थी जब  मुझे जोरों से
माँ बन, अपने हाथों से रोटी बना खिलाया करती थी वो ।
जब भी मुझे किताबें लाने के लिए पैसे की कमी पड़ जाती
पिता बन टयूशन पढ़ाकर कमाये पैसों में से पैसे दिया करती थी वो ।
मगर
दार्शनिक बन एक दिन बोली " अपना जीवन अपना नहीं दूसरों का भी होता हैं "
मैं देख रहा था किसी अनहोनी को उसकी सुजी हुई लाल आँखो में ।
बेटी बन फिर वो बोली " मैं दूर कहाँ जा रही हूँ, यही हूँ तुम्हारे पास, जब बुलाओगे दोड़ी चली आऊँगी "
मैं उसको बुला ना सका
वह लौट कर आ ना सकी ।

26 comments:

रंजू भाटिया said...

बहुत सुंदर है यह रचना .बहुत कुछ कहती सुनती ..

Vinay said...

साहब बस होंट सिल गये, कुछ कहकर इस कविता की गरिमा को क्षति नहीं पहुँचाऊँगा!

---आपका हार्दिक स्वागत है
चाँद, बादल और शाम

कुश said...

निशब्द कर दिया आपने तो..

Anonymous said...

Bahut khoob likha aapne, gala rundh sa gaya hai,aankhe nam ho gayi hai, dil ki dhadkane tham si gayi hai, bahoot khoob,

Aapne sahi kaha hai ki.....
Aansu nikal aaye to khul hi ponchiye, aayenge ponchane to souda karenge,

Dilip Gour
Gandhidham

अविनाश वाचस्पति said...

आंखों के भीतर

कुछ गीलापन सा

आ गया है

जाने से।

Udan Tashtari said...

दुबारा पढ़ लिया...और फिर से निकला--

’गजब’

दिगम्बर नासवा said...

बहुत गहरी बात लिखी है........

Science Bloggers Association said...

बहुत सुन्‍दर कविता, दुबारा पढकर भी मजा आया।

Vineeta Yashsavi said...

मैं उसको बुला ना सका

वह लौट कर आ ना सकी ।

bahut achhi kavita

mamta said...

एक-एक शब्द बेमिसाल ।

Unknown said...

bahut sundar rachna....

ताऊ रामपुरिया said...

भाई इस कविता ने तो मौन मे उतार दिया. बहुत क्या बल्कि लाजवाब लगी.

रामराम.

ghughutibasuti said...

बहुत सुन्दर! गज़ब!
घुघूती बासूती

विवेक सिंह said...

बहुत सुंदर है यह रचना !

विवेक सिंह said...

बहुत सुंदर है यह रचना !

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुंदर रचना ,
धन्यवाद

vijay kumar sappatti said...

susheel yaar ,

Dhanywad.....

ye kya likh diya .. meri aankhen bhar gayi yaar..

man bhari ho gaya hai ...

मगर

दार्शनिक बन एक दिन बोली " अपना जीवन अपना नहीं दूसरों का भी होता हैं "

मैं देख रहा था किसी अनहोनी को उसकी सुजी हुई लाल आँखो में ।

बेटी बन फिर वो बोली " मैं दूर कहाँ जा रही हूँ यही हूँ तुम्हारे पास, जब बुलाओगे दोड़ी चली आऊँगी "

मैं बुला ना सका
वह लौट कर आ ना सकी ।

kya ye sirf lines hai , zindagi ka koi hissa nahi ......

kya kahun , ultimate . aapki lekhni ko mera salaam ...

lekin main distrub ho gaya yaar..

bahut kuch likhna chaah raha hoon ,lekin , gala rundh gaya hai ...

mujhe ekaant chahiye kuch der ke liye ...

rongte kadhe hai mere... aankhen nam hai ...

main aur kuch nahi kahunga ...

vandana gupta said...

rongte khade ho gaye ..........bemisaal , adbhut,prashansniya aur na jaane kya kya,yahan shabd bhi kam pad gaye hain........aapne to dil hila diya aaj.............aankhon mein nami ke sath itna hi kahungi..........ek bar batao to sahi wo kaun thi..........sach use talashna kya itna aasan hai........jante huye bhi koi nhi janta ya janna nhi chahta.

नीरज मुसाफ़िर said...

सुशील जी,
अब तो कुछ कहना ही नहीं है, लेकिन फिर भी ये लो लिखित सबूत

Ashutosh said...

गणतंत्र दिवस पर आपको भी ढेर सारी शुभकामनाएं

डॉ .अनुराग said...

भावुक व्यक्ति है आप......बेहद भावुक.....

प्रकाश गोविंद said...

अहसासों की गहराई और
ऐसा अंदाजे बयाँ कि कोई भी
इन्हे पढ़कर अकस्मात
आह और वाह कहने से
ख़ुद को रोक नही पाता !
......
......
......

दुःख तुमको क्या तोडेगा
तुम ख़ुद दुःख को तोड़ दो
केवल अपनी ही आंखों को
औरों के स्वप्नों से जोड़ दो !!

Atul Sharma said...

यह चेहरे भी बहुत अजीब होते हैं
क्‍योंकि यह किसी न किसी मुखौटे से ढके होते हैं जब तक हम उन्‍हें समझ पाते हैं
वह हमसे बहुत दूर होते हैं ।

vijay kumar sappatti said...

susheel ji , pune mein baithkar socha ,phir ek baar aapki ye nazm padhkar aankhe gili kar loon .....let me tell you bhaiyya.. ye aapki kaaljayi rachana hai .. kya kahun.. aapki lekhni ko phir se salaam ...

ab aap " talaash " par kuch likhiye .. yahi jo aapke intro men likha hai ....

bulbul ko mera pyaar [ choklate ke saath ] dijiyenga .
namaskaar

Alpana Verma said...

मैं उसको बुला ना सका

वह लौट कर आ ना सकी ।

-दिल को छू गई आप की रचना.

Prateek said...

पढ़कर कहीं टीस उठी.
कहाँ?.....पता नहीं

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