Saturday, January 24, 2009

बचपन में मैं गाता था, आज बेटी गाती है "नन्हा मुन्ना राही हूँ देश का सिपाही हूँ बोलो बच्चों मेरे संग जय हिंद जय हिंद...." और गणतंत्र दिवस की ढेरों शुभकामनाएं।

अभी परसों की ही तो बात है बेटी नैना "नन्हा मुन्ना राही हूँ" गा रही थी। मैंने पूछा "बेटा ये किसने बताया" वो बोली "दादू ने।" ये गाना कुछ दिन से इसकी छोटी सी जबान पर है। गाती बस इतना ही है कि "नन्हा मुन्ना राही हूँ देश का सिपाही हूँ।" फिर इसके लिए यह गाना यूटयूब से डाऊनलोड़ किया और इसे सुनाया तो यह खुश हो गई। और मैं अपने बचपन में चला गया। तब यह गाना अक्सर 26 जनवरी के आसपास टीवी और रेडियो पर बजता था। मैं बड़े चाव से इस गाने को सुना करता था। तब नही पता था कि जय हिंद क्या होता है?  देश क्या होता?  देशभक्ति क्या होती हैं? सोचता हूँ क्या अब पता चल गया है इन सबके बारें में? 25 जनवरी को स्कूलों में भी बड़े चाव से जाते थे, स्कूल के कार्यक्रम में  देश भक्ति गाने खूब सुनाए और बजाए जाते थे। और 26 जनवरी को सुबह जल्दी नहा धो तैयार होकर पड़ोसी के टीवी पर परेड देखा करते थे। कमरा लोगों से भर जाया करता था। बच्चे नीचे और बड़ॆ चारपाई पर बैठ जाते थे। और आज ...............................। और फिर बेटी को 26 जनवरी के बारे में बताया एक बच्चा बनकर। फिर बेटी से पूछा कि कल 23 जनवरी है क्या आप देखोगे परेड। घूमने के मामले में बाप पर गई बेटी भला कहाँ चूकती झट कह दिया पापा मैं भी जाऊँगी इंडिया गेट परेड देखने। फिर सोचा ये क्या कह दिया कल की तो छुट्टी भी नही हैं खैर..........। 8 बजे उठने वाली बेटी परेड का नाम लेते ही झट से 7 बजे उठ गई। और हम पहुँच गए राजपथ। पर चाव ही चाव में हम ये भूल गए कि परेड देखने के लिए पास की जरुरत होती है। मोबाईल भी नही की किसी को कहके पास मँगवाए जाए। और भला सुबह सुबह 9 बजे कौन पास देने आऐगा?  ये भी अजीब रुल है कि परेड देखने के लिए पास की जरुरत पड़े वो भी अपने ही देश में?  जी में तो आया कि अभी जाकर किसी पुलिस अफसर से भिड़ जाऊँ। फिर पता नही क्यों गुस्सा शांत हो गया?  वैसे कभी कभी सोचता हूँ कि जो आपकी ताकत होती वही कभी आपकी कमजोरी क्यों बन जाती है?  खैर फिर सोचा कि चलते हैं यार किसी अफसर से विनती करके देख लेगे। फिर वही हुआ जो अक्सर हम सभी के साथ हो जाता है। और हम उसे किस्मत कह कर उस ऊपर वाले को शुक्रिया कहते हुए उसे याद करते है जिसे हमने आजतक देखा नहीं। फिर हम रेल भवन से कृषि भवन की तरफ जाने के लिए रोड पार करने लगे गाडियों की आवाजाही के बीच। तभी किसी ने रुकने के लिए आवाज देकर हमें रोक लिया और हम रुक गए। आवाज देने वाला भी अपने परिवार के साथ परेड देखने जा रहा था पास आकर बोला कि "गाडियों को निकल जाने दो क्यों रिस्क लेते हो।" ऐसे इंसान को क्या कहते है जो आपको नही जानता पर आपकी परवाह कर जाता हैं?  आप सोचो, मैं आगे बढ़ता हूँ उसी इंसान के साथ। वह मेरे से पूछ बैठता है कि ये वी एन ब्लाक किधर पड़ेगा। मैं कहता हूँ कि वही जाकर पुलिस वालों से पता चलेगा। बात बात में वो कहता है कि उसके पास दो कार्ड है वी आई पी कैटिगरी के और हम तीन है इसलिए एक तो अडजैस्ट हो जाऐगा। और मैं कहता हूँ कि कोई बात नही, चलते है वहाँ बैठे अफसर से बात कर लेंगे। फिर शुरु के गेट से इसी पास से अदंर हो जाते है। तभी कुछ दूर चलकर उनकी जानकार एक लेडिज आती है जिसके पास एक पास ज्यादा है और वह हमें वो पास दिलावा देते है। पर वह पास किसी और ब्लोक का होता है। और हम पास लेके निकल पड़ते है धन्यवाद कहते हुए। और मैं उन्हें भी शुक्रिया कह देता हूँ जिसे सभी नीली छतरी वाला कहते हैं। और भावुक अपनी बेटी के माथे को चूम लेता हूँ। सेकड़ो खाली कुर्सियों पर बैठे चंद लोग। एक बेटा बुजुर्ग हो चुकी अपनी माँ को परेड दिखाने लाया हुआ है। यह माँ किस्मत वाली है। नहीं तो आजकल कौन परवाह करता है माँ बाप और उनकी इच्छाओं की?  वही इनसे चंद कुर्सियों दूर एक परिवार गर्व से बैठा है क्योंकि उनका बेटा परेड में शामिल है देश का सिपाही बनकर। और इधर मेरी बेटी बड़े चाव से परेड देख रही है। और बीच बीच में पूछती है कि पापा ये क्या है पापा ये क्या है। जब जब वह कुछ पूछती है मुझे ना जाने क्यों खुशी महसूस होती? कमाड़ो की पद चाप की आवाजें और दिल में जोश भरती उनकी आवाजें से लेकर आकाश में लड़ाकू विमान के रोमांच तक परेड में सब सुन्दर लगा। बेटी से पूछा क्या क्या अच्छा लगा आपको तो उसकी लिस्ट तो देखिए जरा, पी पी, जहाज, Horse,Camel,Helicopter, Balloon,.......................लिस्ट लम्बी है उसकी पसंद की। जाने क्यों एक संतुष्टि का भाव लिए हम घर की तरफ हो लिए?  बहुत दिनों के बाद संतुष्टि भरा दिन। और अब सुनो  सभी शहीदों को नमन करते हुए  हम बाप बेटी की पसंद का ये गाना। साभार-  YouTube ।


Wednesday, January 21, 2009

वो कौन थी ?

दोस्तों की फरमाईश पर यह पोस्ट दुबारा की जा रही है। कल रात विजय जी ने काफी जोर देकर कहा कि यार इसे दुबारा पोस्ट कर दो। वैसे बड़े बुजुर्गों ने कहा है कि दोस्तों के कहे को टाला नहीं करते । इसलिए पेश हैं।

मेरी कौन थी वो



मैं नहीं जानता कौन थी वो
क्या रिश्ता था मेरा उसका ।
समझ नहीं आता, जान नहीं पाता
किसी भी एक रिश्ते में ढाल नही पाता ।
किसी दिन जब मैं उससे रुठ जाता
दोस्त बन अपने कान पकड़ मनाया करती थी वो ।
जब मैं जीवन से निराश होता भविष्य से उदास होता
मैडम बन जीवन से लड़ना सिखाती थी वो ।
कभी कभी आँखें बँद कर मुँह खोलने को कहती
प्रेमिका बन मुँह में हरी मिर्च डाल भाग जाया करती थी वो।
कभी कभी गुड्डे गुड़िया का खेल खेलने का मन करता था
पत्नी बन, रख गोद में सिर मेरा, बना बालों को काले बादल, मेरे तपते चेहरे पर जम कर बरसा करती थी वो ।
भूख लगती थी जब  मुझे जोरों से
माँ बन, अपने हाथों से रोटी बना खिलाया करती थी वो ।
जब भी मुझे किताबें लाने के लिए पैसे की कमी पड़ जाती
पिता बन टयूशन पढ़ाकर कमाये पैसों में से पैसे दिया करती थी वो ।
मगर
दार्शनिक बन एक दिन बोली " अपना जीवन अपना नहीं दूसरों का भी होता हैं "
मैं देख रहा था किसी अनहोनी को उसकी सुजी हुई लाल आँखो में ।
बेटी बन फिर वो बोली " मैं दूर कहाँ जा रही हूँ, यही हूँ तुम्हारे पास, जब बुलाओगे दोड़ी चली आऊँगी "
मैं उसको बुला ना सका
वह लौट कर आ ना सकी ।

Wednesday, January 14, 2009

"हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते"

"जिंदगी एक पढ़ाई की तरह हैं। जहाँ खुद ही पढ़ना पड़ता हैं। खुद ही समझना पड़ता हैं। और हमेशा फर्स्ट आना होता हैं।"



"जब दो इंसान प्यार करते हैं। तो कभी भी बराबर प्यार नहीं करते। एक ज्यादा करता है। तो दूसरा उससे थोड़ा कम। और जो ज्यादा प्यार करता है। वह कमजोर होता है। और जो कम प्यार करता है वह ताकतवर होता हैं। और जो ज्यादा प्यार करता है। वह समझता है। और जो कम प्यार करता है। वह समझाता है।"




"इश्क और शादी कभी भी खाली और बिजी औरत से नहीं करनी चाहिए। क्योंकि खाली इतनी खाली होती कि वह कुछ करने नहीं देगी। और बिजी इतनी बिजी होती है। कि वह तुम्हें खुल्ला छोड़ देगी।"
एक नाट्क को फिर से देखने की इच्छा हुई तो ये पोस्ट करनी पड़ी। यह नाटक आता था सोनी चैनल पर। कई बार प्रसारित हुआ था। नाटक का नाम था "स्पर्श"। जिसे श्री रवि राय जी ( कृष्णा इमेज) ने बनाया था। जिसमें श्री इरफान खान, दिव्या सेठ, मृणाल कुलकर्णी, एक अदाकार और जो मैन रोल में थे नाम याद नही आ रहा। यह नाटक मुझे बहुत ही अच्छा लगा। मैं यह जानना चाहता हूँ कि वह नाटक इंटरनेट की दुनिया में कहाँ से मिल सकता है। जहाँ से उसे डाऊनलोड करके जब मन चाहे दुबारा देखा जा सके। जैसे यूटयूब पर तो पूरी की पूरी फिल्म ही मिल जाती है। वैसे मैने काफी सर्च मार कर देखा है।  पर कहीं भी कोई आशा की किरण नजर नही आई। पर उम्मीद पर दुनिया कायम है और हम भी। देखते है कौन हमारी ख्वाहिश को पूरी करता हैं। और जो इंसान इस इच्छा को पूरी करेगा,उन्हें ज़ज़्बातों से भरी एक रचना इसी ब्लोग पर पढ़वाई जाऐगी।

नोट- ऊपर दी गई पंक्तियाँ "स्पर्श" नाटक से ली गई हैं। उन लेखक का नाम नही पता जिन्होने ये लिखी हैं पर उन्हें दिल से शुक्रिया। और साथ ही सोचा अगर उस नाटक में प्रयोग एक गाना "हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते" जोड़ दूँ तो यह पोस्ट सुरीली भी हो जाऐगी और मैं अपनी बात भी कह पाऊँगा। इसलिए यह गाना जोड़ दिया। यह गाना "मरासिम" एल्बम से है और YouTube से लिया गया है इस पोस्ट के लिए।तो यूटयूब का भी दिल से शुक्रिया। 

Monday, January 12, 2009

पत्नी की कमाई अच्छी या बेईमानी की ?

कल शाम को चाय की चुस्कीयों के साथ फिल्म "इज़ाज़त" देख रहा था। तभी किसी ने मेरा नाम लेकर मुझे पुकारा, आवाज जानी पहचानी थी। देखा तो मुँह से एकदम निकल गया "तू"। मैं बोला " सुना बहुत दिनों के बाद, क्या बात? सब ठीक तो हैं ना? " वह बोला "मौजा ही मौजा हैं यार, पहले तो चाय बोल दे और कुछ समोसे मंगा ले।"  फिल्म रोक दी गई। और दोस्तों वाली बातें शुरु हो गई। चाय आती रही बातें होती रही। तभी एक सवाल गूँजा " पत्नी की कमाई अच्छी या बेईमानी की ? " सवाल चौंकाने वाला था। मैं चौंका भी। इस सवाल ने चंद पल में ही कमरे का वातावरण ही बदल दिया। मैं सोचने लगा कि दोस्तों वाली बातों में ये जिदंगी की फू-फां क्यों आ जाती हैं?  मैं बोला "यार तू ये क्यों पूछ रहा हैं।" समझ तो आ रहा था पर ...।  वो बोला "पहले तू इसका जवाब तो दें।"  मैं बोला " यार तुझे तो पता ही होगा मेरा जवाब क्या होगा फिर क्यों पूछ रहा हैं? " वो बोला फिर "वो लोग" क्यों कहते हैं कि "बहू की कमाई खाने लगें हैं।" सारा मामला समझ आ गया था।  भाभी जी नौकरी करने लगी थी। कुछ दिनों पहले उसने फोन करके पूछा भी था कि "यार हम दोनों का ये प्लान हैं तू क्या कहता हैं।" मैं बोला "अगर भाभी जी राजी हो तो कोई हर्ज नही है।" वो बोला "यार उन्होंने ही तो कहा हैं जब ही तो तेरे से पूछ रहा हूँ। यार तुझे तो पता ही हम सभी का ऐसा कुछ खास खर्चा नही है, पर भविष्य में आगे खर्चे बढेंगे ही। बेईमानी से तो हमसे पैसा कमेगा नहीं, किसी ना किसी को तो कमाना ही पड़ेगा जब ही पैसा आऐगा। अगर पैसा पास हो तो दस लोग सहायता करने आ जाते है और अगर पैसा ना हो तो कोई नही पूछता।"  मैं बीच ही में बोल पड़ा "सा.. मैंने कब साथ नही दिया तेरा।" तो वो बोला "कि तू ठहरा आठँवा अजूबा।"  फिर उस दिन के फोन के बाद आज मुलाकात हुई। "वो लोग" और कोई नहीं बस उसके ताऊ, चाचा के परिवार के लोग और पड़ोसी होगें। मैं बोला "यार तू क्यूँ चिंता करता हैं ऐसे लोगो की।" वो गुस्सें में बोला " कौन सा..(गाली देते हुए) चिंता करता इन ..... (गाली) की।" मैं बोला "तो फिर किसकी चिंता है।" यार जब ये सब बातें माँ तक पहुँचती हैं तो वो नहीं सुन पाती ऐसी बातें और परेशान हो जाती है। आकर तेरी भाभी से बताती हैं। पुराने जमाने की औरत हैं समझती तो सब हैं पर यार माँ को वो बात कचोटती रहती हैं। कभी कह के अपने मन का गुबार निकाल देती है और कभी नही। पर साथ ही नौकरी भी तो नहीं छोड़ने देती। कहती है कि" उनके पीछे क्या हम खाना छोड़ देंगे।" पैसे की जरुरत को समझती है। उन्होने वो दिन भी देखे है जब एक एक पैसे जोड़ने के लिए क्या क्या जुगत करनी पड़ती थी। पर जब वो उन बातों से परेशान होती है, तो वो भी तो नहीं देखा जाता। जिदंगी की फू-फा की बातें करते करते कब रात के 12 बज गए पता ही नही चला। और आखिर में मैं बोला  "जिदंगी कोहलू है और हम बैल हैं जब तक जैसे भी मालिक चला रहा है,चलते रहो बस।"  और यही निर्णय लिया गया जैसा चल रहा है चलने दो और दोस्त को विदा किया। आप क्या सोचते हैं? क्या करना चाहिए?  आपके और मेरे आसपास भी बसते होंगे ये "वो लोग"। और साथ सोचिए "पत्नी की कमाई अच्छी या बेईमानी की"।

Monday, January 5, 2009

नए साल पर मिला नैना को एक उपहार

नैना
    
छोटी सी ये नैना मेरी
प्यारी सी ये नैना मेरी
मेरे दिल के बाग़ की ये मैना मेरी
प्यारी सी ये बिटिया नैना मेरी।
Zjg15ti
सुंदर सी इसकी आँखे
प्यारी सी इसकी नाक
छोटे छोटे इसके होंठ
और प्यारे से मीठे इसके बोल
आँखे ही ज्यादा बातें करें,
इसलिए नाम हैं इसका नैना।
Z7wm9d
दूध माखन खाए ये
घर भर में घूम आए ये
कभी मम्मी, तो कभी पापा को
जी भर के सताए ये
और पुकारते रहे रात दिन
बस नैना ओ नैना

नए साल में क्या पोस्ट करुँ यही सोच रहा था| विजय जी ने शनिवार को बताया कि वो अभी नैना पर कुछ लिख रहें हैं। और कुछ देर में आपको मेल भेज रहा हूँ।  यह नैना को मेरी तरफ से नए साल का उपहार। जब कुछ देर बाद उनका मेल आया। नैना पर लिखी उनकी रचना को पढ़कर भावुक हो गया।।  इंसानी रिश्तों की कहानी भी बड़ी निराली होती हैं। किसी का दिल कब किस से मिल जाए कुछ पता नहीं। फिर नैना को बताया कि चुनमुन बेटा विजय अकंल जी( बीच में ही बोल पड़ी कौन?)  ने आप पर एक कविता लिखी हैं। हल्की सी मुस्कराई,सरमाई और बोली दिखाओ दिखाओ। मैं पढ़कर उसे सुनाता रहा और वो मंद मंद मुस्कराती रही। और आखिर में मैंने पूछा कि चुनमुन कैसी लगी। अच्छी या खराब। तो बोली " अच्छी" और सरमा गई। फिर सोचा नए साल पर इससे अच्छी पोस्ट और क्या हो सकती है। अपने ब्लोग की शुरुआत भी मैंने अपनी बेटी पर लिखी एक तुकंबदी से की थी। और साल की शुरुआत भी इसी से की जाए तो क्या बुरा हैं। वैसे भी बेटियाँ बाप की लाडली होती हैं। साथ ही इस उम्मीद के साथ कि .......।

नया साल आऐगा
खुशियों के मोती लाऐगा
हर झोली में मोती चमकेंगे
फिर हम सब झूमेंगे
ऐसा नया साल आऐगा।
 

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails