Monday, December 29, 2008

कभी कभी ऐसा भी होता हैं। कैसा। अजी ऐसा।

कभी कभी ऐसा भी होता हैं घर में, गली में, चौराहों पर, स्कूल में , कालेज में, बस में,  बस स्टेण्ड पर, ...................................।

1. आप किसी बस स्टेड़ पर खड़े उस लड़की के आने का इंतजार कर रहे हैं। जो आपको अच्छी लगने लगी हैं। जिधर से वह आती हैं बस उधर ही देखते जा रहे हैं  और जब वह काफी देर तक ना आए। फिर आप अपने  पर  गुस्सा करे कि पाँच मिनट पहले आ जाता। और एकदम गुस्सें में पीछे मुड़े और देखे कि वही लड़की आपके पीछे ही खड़ी हैं। तो ....................................................................................................................................................।
एक घबराहट की लहर पूरे शरीर में दोड़ जाती हैं। 
2.आपका दोस्त कहे चल यार बाहर चलते हैं बहुत पढ लिए। आप कहे कि तू चल मैं आया। और आप दो मिनट के बाद पहुँचते है। फिर आपका दोस्त कहे कि यार लेडिज बाथरुम कोई लड़का घुसा हैं मामला कुछ गड़बड़ लगता है जरा आवाज तो मार। आप आवाज मारते हैं। और फिर एकदम से एक लड़की निकल आए।
तो.....................................................................................................................................................।
आप अपनी गलती पर शर्मिदा होते हैं दोस्त को भला बुरा कहते हैं और उस लड़की से जाकर सारी बात बता देते हैं।
3. एक अप्रैल के दिन आप कई दोस्तों का अप्रैल फूल बनाने के बाद एक लड़की का अप्रैल फूल बनाने के लिए उसके पास जाए और कहे कि आपको फला लड़की बुला रही हैं। वापस हँसते हुए अपनी सीट पर आकर मद मद मुस्कराते हैं। और फिर वही लड़की रुहाँसी सी सूरत लेकर आपके पास आकर कहे कि आपको ऐसा नही करना चाहिए था और आप कहे कि क्या हुआ, और वह बोले कि हम दोनों के बीच बातचीत नही रही और वो कह रही हैं कि " मुझे कोई पागल कुत्ते ने काटा है जो तुझे बुलाँऊगी"।
तो....................................................................................................................................................।
आप माफी माँगते हैं और कहते हैं कि मुझे नही पता था कि आप दोनो के बीच बातचीत नही रहीं।
4. आप किसी मार्किट( मान लो सरोजनी नगर की मार्किट) में शापिंग कर रहे हैं और सामने कुछ दूरी पर आपकी तरफ पीठ किए हुए आपकी गर्ल फ्रेंड खड़ी हो और आप उसके पास जाए और कंधे पर हाथ मारकर कहे अरे.... तुम यहाँ क्या कर रही हो? और फिर वो मुड़े तो वो कोई ओर निकले। तो ..................................................................................................................................................।
आपके मुँह से कुछ नही निकलता हैं और घबराए से चल पड़ते हैं। 
5. आप अपने दोस्त के साथ कहीं ( मान लो मंसूरी मानने में क्या जाता हैं) घूमने जाए। और किसी मार्किट में घूमने निकल जाए। तभी आपका पेट धोखा दे जाए और आप समान ढूंढने के बजाय पखाना ढूंढने लग जाए और जब पखाना नजर आए तो आप उधर ही दोड़ जाए। और आपका दोस्त पास ही बैठे चाय वाले से दो चाय बोल दें। कुछ देर बाद आप सड़ा सा मुँह बनाते हुए बाहर आए। और चाय वाले को बोले यार तू कैसे करता होगा यहाँ.....। तुम्हारा पखाना तो बहुत ही गंदा हैं। मैं तो बेहोश होते-होते बचा, मजबूरी ना हो तो मैं यहाँ मूतू भी नही। और बाद में आपका दोस्त कहे कि जिससे तू बात कर रहा था वह पेंट कमीज पहने  लड़का नही लड़की हैं। देख जरा गौर से।
तो .................................................................................................................................................।
आप सकपका जाते हैं और दूसरी तरफ मुँह करके चाय पीने लगते हैं। और बाद में खूब हँसते हैं।
6. आप अपने दोस्त के साथ किसी मार्किट(मान लो कमला नगर की मार्किट) में बर्गर और पेटीज खा रहे हैं। तभी एक लड़की बर्गर वाले से पूछे कि भईया 100 रुपये के खुलले हैं और बर्गर वाला मना कर दे और लड़की आगे बढ़ जाए पर आपका दोस्त कहे कि मेरे पास है खुलले तू बुला तो सही उस लड़की को और आप उस लड़की आवाज मारकर बुलाते हैं। वह 100 का नोट आपकी तरफ बढा दे और फिर आपका दोस्त कह दे मेरे पास खुलले नही हैं।
तो .................................................................................................................................................।
आप झेंप जाए और लड़की के जाने के बाद आप दोस्त को खूब गालियों दें। और आपका दोस्त हँसते हँसते अपना पेट ही पकड़ ले। 
7. आप अपनी बाईक पर अपनी दोस्त को पीछें बैठा कही घूमने जा रहे। किसी रेड लाईट पर आपको रुकना पड़े और पीछे से आपकी दोस्त कहे कि ..... आगे वाली गाड़ी पापा की हैं और वो मुंड मुंड के पीछे ही देख रहे हैं क्या करे फंस गए बुरे। ना ही आगे भाग सकते हैं ना ही पीछे भाग सकते हैं और आपकी दोस्त मुंह छुपाए बैठी हो और तभी उनके पापा गेट खोल कर उतर जाए और पीछे की तरफ आए।
तो ..................................................................................................................................... ...........।
उनके पापा पीछे के टायर को फटाफट देख कर अपनी सीट पर बैठ जाते हैं। और एकदम ग्रीन लाईट हो जाती हैं। और आप दोनों की सांस में सांस आती हैं। 
8. आपकी कोई नई नई दोस्त बनी हो और उसका फोन आ जाए कि घर से कुछ खाने की चीजें लेते आना। आप मारे खुशी के उछलने लगे और ढेरों ख्वाब बुनने लगे। और जब वह मिले हाय हेल्लो हो और वो कहे कि घर से क्या क्या लाए हो मुझे दे दो घर जाके खाऊँगी अभी घर से फोन आ गया हैं। जल्दी घर जाना हैं।
तो .................................................................................................................................................।
आप बस उसे जाते हुए देखते रह जाते हैं।
 9. आप किसी दिन अपनी छोटी चचेरी बहन के साथ बस में बैठे कहीं जा रहे हो। और आपके आगे वाली सीट पर एक सुन्दर मार्डन लड़की बेठी हो एक बड़ा सा जूड़ा बनाए हुए। और वह पलट पलट के बार बार आपको देखे। और आपकी समझ में ना आए कि बात क्या हैं? फिर अचानक वह लड़की उठे और इंगलिश में उल्टा सीधा कहने लगे। और बस में बैठी सारी सवारी की आँखे आपको देखने लगे।
तो..................................................................................................................................................।
काफी कुछ सुनने के बाद पता चले कि आपकी छोटी बहन उसके जूड़े को बार बार छेड़ रही थी और वो लड़की समझ रही थी कि आप उसके जूड़े को छेड़ रहे थे।
10. किसी  दिन आपका टीचर आपकी शैतानी पर सजा के तौर मुर्गा बनने को कहे और वो भी लड़कियों की क्लास के गेट के सामने।
तो .................................................................................................................................................।
आप मुँह उठा उठा कर देखते हैं कि कुछ लड़कियाँ हँस रही हैं और आप पानी पानी हो रहे हैं। पर उसमें एक लड़की की हँसी आपको अपनी सी लगती हैं। और हर रोज की प्रार्थना सभा में आप हाथ जोड़कर प्रार्थना करें और आँखे खोलकर उसके चेहरे को निहारते रहे।

इन खट्टी मिटठी यादों को लिखने का विचार अनुराग जी की एक पोस्ट जिदंगी की दोड़ मगर बदस्तूर जारी हैं। और विजय जी की एक पोस्ट कुछ महान कार्य इन्हें अवश्य आजमाएं। से आया। कभी कभी संगत का भी असर हो जाता हैं। फिर अपनी और दोस्तों की यादों को यहाँ साझा कर दिया। यह साल जा रहा हैं इसलिए कुछ ऐसा याद किया जिसे पढकर हँसी भी आए, एक ठंड़ी आह भी निकले, ..........................................।
आप सभी से गुजारिश हैं टिप्पणी के साथ आप भी अपनी खट्टी मिटठी यादें यहाँ अवश्य बाँटे।

Saturday, December 27, 2008

बस स्टैड़ वाली लड़की

lodhigardenbusstopvj9
रोज सुबह मैं बस पकड़ता था
मोरी गेट के बस स्टैंड से अपनी लाइब्रेरी जाने को
तुम भी बस पकड़ती थी अपने ऑफिस जाने को
हर सुबह नौ बजकर बीस मिनट पर।
इससे पहले मेरी आँखे तुम्हें तलाशती इधर- उधर
तुम्हारी एक झलक पाने को।
कभी- कभी तुम दिखती नही
तब रह-रह कर तुम्हारी याद आती थी।
वो तुम्हारा सुंदर साधारण चेहरा
और उस पर तोते सी नाक।
वो तुम्हारी गोल लम्बी सुराई सी गर्दन
और जिस पर एक सुन्दर रेशम का धागा
वो रेशम का धागा मैं भी ले आया था।
वो तुम्हारे पहनावे में पूरब,पश्चिम का सुंदर मिलन
जो मेरे दिल को बहुत भाया था।
जब कभी मैं तुम्हारी इन यादों के किनारे
अमृता प्रीतम को पढ़ता था
तो मेरे प्यार का फूल खिलता था।
परन्तु
नहीं थी हिम्मत इतनी भी कि पूछ सकता नाम तुम्हारा।

नोट- यह तुकबंदी ब्लोग की शुरुआत में पोस्ट की थी। तब कम ही ब्लोगर इसको पढ पाए थे। इसलिए दुबारा से पोस्ट की हैं।
और यह फोटो www.skyscrapercity.com से ली गई हैं इसलिए इनका और गूगल का शुक्रिया।

Monday, December 15, 2008

पंजाब की प्रेम कविताएं का आखिरी भाग

प्यार और कविता

प्यार करने

और किताब पढ़ने में

कोई अंतर नहीं होता

कुछ किताबों का हम

मुख-पृष्ट देखते हैं

अदंर से बोर करती हैं

पन्ने पलट देते हैं

और रख देते हैं

कुछ किताबें हम रखते हैं

तकिए तले

अचानक जब नींद खुलती हैं

तो पढ़ने लगते हैं

कुछ किताबों का

शब्द-शब्द पढ़ते हैं

उनमें खो जाते हैं

बार-बार पढ़ते हैं

रुह तक घुल-मिल जाते हैं

कुछ किताबों पर

रंग-बिरंगे निशान लगाते हैं

और कुछ किताबों के

नाजुक पन्नो पर

निशान लगाने से भी

भय खाते हैं

प्यार करने और किताब पढ़ने में

कोई अतंर नही होता

   

                   सतिंदर सिंह

साभार- किताब का नाम - "ओ पंखुरी" ,चयन व अनुवाद राम सिहं चाहल, प्रकाशन - संवाद प्रकाशन मेरठ (जिन जिन के सहयोग से ये कविताएं हमारे तक पहुँची उन सभी को दिल से शुक्रिया)

Thursday, December 11, 2008

पंजाब की प्रेम कविताएं भाग-2

रोशनी की तलवार


पता नही वह किस-किस का जिस्म पहनकर आता हैं
और हर बार मुझसे
मेरा घर छीनकर चौराहे पर खड़ा होकर कहता हैं
देखो कितनी आवारा-गर्द है
कभी घर नही लौटती ......


मैं चौराहे पर खड़े हर ऐरे गैरे से
अपने घर का पता पूछती हूँ


भीड़ में से
एक निकलकर कहता हैं
मेरे जेहन में कई कमरे हैं


एक कमरे का दूसरे कमरे की तरफ
कोई दरवाजा नही खुलता
तू एक कमरे में रह सकती हैं
मैं उसकी चोर निगाह की ओर घूर कर देखती हूँ


इतने में दूसरा खड़ा होकर कहता हैं
किसी के साथ गुज़रे हुए कुछ खूबसूरत पल
क्या काफ़ी नही होते बची हुई उम्र के लिए
फिर घर के बारें में क्या सोचना हुआ


इतने में तीसरा खड़ा होकर कहता हैं
हर मर्द चोरी छिपे अपने घर से दूर भागता रहता हैं
उस शून्य घर का क्या करोगी
मैं उसकी ओर गौर से देखती हूँ


इतने में चौथा खड़ा होकर कहता हैं
घर तो झूठे रिश्तों पर सुनहरी लेबल हैं
मस्तक की लपट को 'झूठ' लेबल के साथ
कैसे रौशनाएगी? मैं घबरा जाती हूँ


इतने में पाचँवा खड़ा होकर कहता हैं
घर तो जेल का दूसरा नाम हैं
पंछी, पवन एंव पवित्र विचारों को
घर की मोहताजी की ज़रुरत नही होती
घर का साथ छोड़ो
और फिर तेरी रोशनी की तलवार
जो सच माँगती हैं
उस का वार भला कौन झेल सकता है


मैं चौराहे पर ही
चीख चीख कर कह रही हूँ
मुझे मेरा घर चाहिए


वह पता नही
किस किस का जिस्म पहनकर आता हैं
हर बार मुझसे मेरा घर छीनकर
चौराहे पर खड़ा होकर कहता हैं
देखो कितनी आवारा-गर्द हैं
कभी घर ही नही लौटती

                             मनजीत टिवाणा

साभार- किताब का नाम - "ओ पंखुरी" ,चयन व अनुवाद राम सिहं चाहल, प्रकाशन - संवाद प्रकाशन मेरठ (जिन जिन के सहयोग से ये कविताएं हमारे तक पहुँची उन सभी को दिल से शुक्रिया)

Tuesday, December 9, 2008

बहुत हो चुका, अब कुछ कर जाना


अब कुछ कर जाना हैं
 
यह वक्त नहीं शौक मनाने का
अब वक्त हैं कुछ कर जाने का।
अब इंतजार नहीं करेंगे हम
और जिदंगीयों के जाने का।
इन नेताओं में तो अब जंग लग चुका
अब वक्त हैं खुद ही जंग लड़ जाने का।
आओ अपने अदंर भी झांक लें
अपने कर्तव्यों को पहचान लें।
हिंदू-मुस्लिम, जात-पात, छोटा-बड़ा से ऊपर उठकर
आओ मिलकर रखें एक नये भारत की नींव हम।
     
26 नवम्बर की घटना के बाद तीन दिन तक तो आँख, कान  न्यूज चैनल पर ही लगे रहे। अलग अलग भावों से गुजरा। जब लिखने बैठा तो ये चंद पंक्तियाँ काग़ज पर उतर गई।  ऐसे ही कुछ मिलते जुलते ज़ज़्बात 7 अगस्त की पोस्ट में पेश किये थे। उन्हें भी नीचे पेश कर रहा हूँ।

बुत

देखो उस बुत को
कैसा चमक रहा है
कितनी जगह घेरे है
कितना पैसा खर्च किऐ हैं
अपनी शान के नाम पर
बिल्कुल तुम्हारी तरह
कुछ समय बाद देखना उस बुत को
कोई थूकेगा
पक्षी बीट करेंगे
बच्चे पत्थर से हिट करेंगे
इसलिए
नेताओं  
अब भी समय है
संभल जाओ
कुछ ऐसा कर जाओ
आने वाली पीढ़ियाँ नाज़ करें 
शान से तुम्हारी बात करें

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