Tuesday, August 5, 2008

एक जिदंगी यह भी

रोज देखता हूँ
इस औरत को
इसके छोटे-छोटे बच्चों को
जो पलते हैं सड़क किनारे
धूप होती तो चले जाते पेड़ की छावों में
ठंड़ होती तो दोड़े जाते माँ की बाहों में
इनकी जिदंगी यही रुकी रहती
वाहनो पर बैठी जिदंगी दोड़ती रहती
आज शाम
जैसे ही पहुँचा इस औरत के ठीये के पास
राम जी बरसने लगे बड़ी जोरों से
यह औरत दोड़ी, उतार पेड़ से एक काली तिरपाल
बना छत उसे, बच्चों संग खड़ी हो गई उसके नीचे
तभी एक स्कूटर रुका, खड़ा कर उसे
एक आदमी और एक लड़की खड़े हो गए इसी पेड़ के नीचे
उन्हें भीगता देख इस औरत ने खोल दिऐ दिल के दरवाजे
बुला लिया बाप बेटी को अपनी तिरपाल की छत के नीचे
बारिश बढ़ती गई
क्या आम क्या खास
सब आते गये इसकी छत के नीचे
औरत सिमटती रही
छत फैलती गई
कुछ समय बाद बारिश थमी
लोग निकलते गऐ
छत सिमटती रही
फिर से
इसकी जिदंगी यही रुकी रही
वाहनों की जिदंगी दोड़ती रही

15 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

सुशील जी,बहुत ही संवेदना से भरी रचना है।अच्छी लगी।

डॉ .अनुराग said...

राम जी फ़िर बरसेगे
छत फ़िर खड़ी होगी
ओर फ़िर कोई आसरा लेगा ....

सड़क की तरह चलेगी जिंदगी
ये जिंदगी सोती नही है...

रंजू भाटिया said...

दर्द हो या खुशी यह जिंदगी यूँ ही चलती रहती है ..भावपूर्ण रचना लगी यह ...

कुश said...

kitne masoom jajbato ko bandh diya aapne is rachna mein.. bahut khob

vineeta said...

कुछ समय बाद बारिश थमी
लोग निकलते गऐ
छत सिमटती रही
बहुत भावुक...

vipinkizindagi said...

Bahut sunder. Bahut hi achhi

bhuvnesh sharma said...

यही है जिंदगी....जो सिल्‍वर स्‍क्रीन, मॉल्‍स, रेस्‍त्रां में नहीं होती....ढ़ूंढ़ रही होती है अपना अस्तित्‍व किसी कूड़े के ढेर या फुटपाथ पर

Anil Pusadkar said...

sateek.shabdon ki tulika se bana jeevant chitra.badhai ho

Ila's world, in and out said...

क्या कहूं ?लफ़्ज़ नहीं मिल रहे ज़िन्दगी की तस्वीर देखने के बाद.

Ila's world, in and out said...

क्या कहूं ?लफ़्ज़ नहीं मिल रहे ज़िन्दगी की तस्वीर देखने के बाद.

Udan Tashtari said...

भावपूर्ण रचना ...बहुत उम्दा.

शोभा said...

लोग निकलते गऐ
छत सिमटती रही
फिर से
इसकी जिदंगी यही रुकी रही
वाहनों की जिदंगी दोड़ती रही
बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई स्वीकारें।

राजीव तनेजा said...

संवेदनशील रचना...सरल लेकिन प्रभावपूर्ण शैली....और क्या कहें?

Anonymous said...

जिन घटनाओं पर
नहीं जा पाती है निगाह
आपने किया है आगाह
वाह भाई वाह, वाह वाह।।

भीगने से बच कर
सब चले जाते हैं
पर घटना का ब्‍यां
न कर पाते हैं या
करने के काबिल नहीं
पाते हैं, पर आपने
खोल दिए हैं अपने
ब्‍लॉग के दरवाजे
उनकी तिरपाल की तरह
बिल्‍कुल बेपरवाह
इसीलिए सराहना मिली
है, अराधना की तरह।
- अविनाश वाचस्‍पति

Advocate Rashmi saurana said...

bhut gahari rachana. likhte rhe.

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