Wednesday, July 23, 2008

मेरा शहर

इस शहर को ना जाने क्या होने लगा हैं

छोटी-छोटी बात पर अपना आपा खोने लगा हैं ।


जिधर देखो आदमी के चेहरे ही चेहरे

फिर ना जाने क्यों आदमी अकेला होने लगा हैं।


जिसे देखो वही आईना दिखा रहा

फिर ना जाने क्यों अपना चेहरा छुपा रहा।


हर मोड़ पर आँशू पोछंने वाले मिल जाऐंगे

फिर ना जाने क्यों इसका भी दाम वसूला जा रहा।


चारों तरफ बाबाओं के प्रवचन ही प्रवचन गूंज रहे

फिर ना जाने क्यों ताकतवर कमजोर को मसल रहा।

13 comments:

Ila's world, in and out said...

सुशीलजी, ये तो सब के शहरों की हकीकत बयां कर दी आपने.पहली बार आपके चिट्ठे पर आई,सभी कवितायें बहुत अच्छी लगीं.

कुश said...

समाज का एक आईना दिखती हुई रचना.. बहुत बधाई सुशील जी आपका लेखन हमेशा ताज़गी भरा होता है

नीरज गोस्वामी said...

एक संवेदनशील इंसान को जो आज के हालत को देख कर तकलीफ होती है वो दिखाई दे रही है आप की रचना में. बहुत इमानदारी से आप ने अपने दिल की बात कही है.
नीरज

डॉ .अनुराग said...

सही कहा भाई हम लोग भी असहिष्णु हो रहे है ओर हमारा शहर भी.....जीवन की आपाधापी बहुत कुछ ले रही है बदले में हमसे

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर व बढिया अभिव्यक्ति है।जीवन की आपाधापी को बखूबी पेश किया है।

जिधर देखो आदमी के चेहरे ही चेहरे

फिर ना जाने क्यों आदमी अकेला होने लगा हैं।


जिसे देखो वही आईना दिखा रहा

फिर ना जाने क्यों अपना चेहरा छुपा रहा।

रंजू भाटिया said...

सही कहा आपने इतनी भीड़ है तब भी सब तनहा हैं आज के हालत की सुंदर शब्द रचना लिखी है आपने सुशील जी

राजीव तनेजा said...

शहरी लोगों की दशा को ...व्यथा को...
उनके मंथन को...उनके चिंतन को
आपने बखूबी दर्शाया है ....बधाई स्वीकार करें

Anonymous said...

bhut sundar. achha likh rhe hai. badhai ho. jari rhe.

Anonymous said...

सुंदर भाव
अभिव्‍यक्ति अंदर
व्‍यक्ति बाहर।

अकेला नहीं
आदमी
पकेला हो
रहा है।

धीर रखे
तो
सहज पके
सो मीठा होय.

- अविनाश वाचस्‍पति

Udan Tashtari said...

एक इमानदार रचना...बहुत खूब!!

Atul Pangasa said...

जिधर देखो आदमी के चेहरे ही चेहरे

फिर ना जाने क्यों आदमी अकेला होने लगा हैं।

Behad khoobsoorat Rachana....... aadam ko aaine se roobroo karaati hui.......
Humaari daad kubool ho

विक्रांत बेशर्मा said...

बहुत अच्छी रचना है सुशील जी.

شہروز said...

पहली बार इस तरफ आया, लेकिन आना सार्थक लगा.
ब्लॉग ने रचनाधर्म को निसंदेह नयी दिशा दी है.
आपके लेखन में ताजगी लगी.
कभी समय हो तो इधर रुख करें और

www.hamzabaan.blogspot.com पर पढें खतरे में इसलाम नहीं और www.shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com पर आदमी...

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails