Monday, May 12, 2008

गुब्बारे वाला













गुब्बारे वाला


पी-पो करता गुब्बारे वाला हर सुबह गली में आता है
गली के नुक्कड़ पर खड़े होकर गुब्बारों में हवा भरता जाता है
एक बच्चा अपनी माँ का पल्लू खींचकर तुतला के बतलाता है
दूसरा बच्चा अपने पापा की उंगलियाँ पकड़कर इशारों से समझाता है
कोई माँगे लाल, कोई माँगे पीला, और कोई माँगे नीला
छोटे गुब्बारें का एक रुपया और बड़े का दो रुपया गुब्बारे वाला लेता हैं
गुब्बारें पाते ही बच्चों के चेहरे खुशी से खिल जाते है
मानों जैसे बच्चों चाँद सूरज मिल जाते है
गुब्बारे वाला ऐसे ही गली मोहल्लों में खुशियाँ बाँटता है
और अपने बच्चों के लिए दाल-रोटी भी कमाता फिरता है
काश ऐसा हम सब भी करते
अपने धंधे से पेट भी भरते,
और सबकों खुशियों के रंगीन गुब्बारें भी देते

4 comments:

Prabhakar Pandey said...

काश कि ऐसा हर कोई करता अपने धंधे से पेट भी भरता और सबको खुशी के मोती भी देता ॥

सुंदरतम। यथार्थ । शिक्षाप्रद।

Dr Parveen Chopra said...

वाह, सुशील जी ,आप की कलम से भी क्या निकल गया.........काश कि ऐसा हर कोई करता अपने धंधे स पेट भी भरता और सबको खुशी के मोती भी देता। जब मेरा छोटा बेटा छोटा था तो एक बुढ़िया मां सुबह सुबह रोज बाजा सा बजाते हुये हमारे गेट पर आ जाया करती थी ...और हम रोज़ाना उस से गुबारा लेते थे। मुझे उस की हालत देख कर बहुत तरह के विचार आते थे लेकिन आज सुशील आप ने सही याद दिला दिया कि वे विचार कैसे थे.........लेकिन जब मेरा बेटा बड़ा हो गया तो गुब्बारों से उस का मन बहलना बंद हो गया , तो मुझे यह बात बड़ी कटोचती थी कि अब वो हमारे यहां नहीं आया करेगी । वह औरत हमेशा चुपचाप रहती थी......आज दोस्त आप ने उस महान आत्मा की याद दिला दी। धन्यवाद। सोचता हूं कि जो बात मैं दो हज़ार शब्द लिख कर भी नहीं कर पाता हूं आप कवि लोग चंद शब्दों में ही हिला देते हो ...पता नहीं मुझे कभी कवि कहनी आयेगी या नहीं !!!....कविता कहने के कुछ गुर ही सिखा दो भई।

राजीव तनेजा said...

आपकी कविता पढकर मैँ किशोर कुमार का गाया गीत"प्यार बाँटते चलो... अनायस ही गुनगुनाने लग गया...

आपने सही कहा कि अगर हर कोई अपने काम के साथ-साथ प्यार और खुशियाँ भी एक दूसरे के साथ शेयर करे तो कितना अच्छा हो

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

सुन्दर दृष्टि पायी है आपने। और दिखाने की कला भी। साधुवाद।

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